'Same Sex Couple' को भी परिवार बनाने का हक... मद्रास HC की बड़ी टिप्पणी
Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने एक समलैंगिक कपल के मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने कहा, समलैंगिक जोड़े परिवार बना सकते हैं. कोर्ट ने पुलिस से याचिकाकर्ता और पीड़िता को जरूरत पड़ने पर सुरक्षा प्रदान करने को भी कहा.

Madras High Court: देश में अक्सर समलैंगिक विवाह लेकर बहस देखने को मिलती है. सामाजिक तौर पर कभी भी ऐसे रिश्तों को अपनाया नहीं गया, लेकिन उसके बाद भी बहुत से ऐसे कपल हैं, जो अपने किसी दोस्त या सहेली के साथ प्यार में हैं और कई बार तो शादी भी कर लेते हैं. ऐसे ही एक मामले पर मद्रास हाई कोर्ट ने सुनवाई की.
हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान समलैंगिक विवाह को वैध नहीं किया है. कोर्ट ने कहा, समलैंगिक जोड़े परिवार बना सकते हैं. जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन और जस्टिस वी. लक्ष्मीनारायण की बेंच ने यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि सुप्रिया चक्रवर्ती भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध नहीं किया, लेकिन समलैंगिक जोड़े परिवार बना सकते हैं.
क्या है मामला?
22 मई को एक महिला (25) ने कोर्ट ने याचिका दायर की और अपने प्रेमिका को बचाने की मदद मांगी. याचिका में आरोप लगाया था कि उसकी समलैंगिक प्रेमिका के पिता ने उसे उसकी इच्छा के खिलाफ बंदी बना लिया है. अब वह कोर्ट से उसकी पार्टनर को स्वतंत्र करने की अपील की रही थी.
पीड़िता ने अदालत को बताया कि घर में उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया. उसे पीटा गया और उसे सामान्य बनाने के लिए कुछ अजीगरीब उपायों से गुजरने के लिए मजबूर किया गया. उसने यह कहा कि वह याचिकाकर्ता यानी अपने प्रेमिका के साथ वापस जाना चाहती है.
कोर्ट का फैसला
दोनों की बातें सुनकर और पीड़िता की इच्छा को ध्यान समझा. अदालत ने याचिका को रद्द कर दिया. साथ ही पीड़िता जो अपने घर में कैद है, उसके परिवार को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने से रोक दिया. कोर्ट ने पुलिस से याचिकाकर्ता और पीड़िता को जरूरत पड़ने पर सुरक्षा प्रदान करने को भी कहा.
अदालत ने यह भी कहा कि परिवार की अवधारणा को समझा जाना चाहिए और विवाह एकमात्र तरीका नहीं है परिवार बनाने का. अदालत ने समलैंगिक व्यक्तियों के लिए 'क्वीर' शब्द का उपयोग करने में असहजता व्यक्त की और कहा कि समलैंगिक व्यक्ति की यौन प्रवृत्ति उसके लिए पूरी तरह से सामान्य होना चाहिए और यह 'क्वीर' शब्द से क्यों जुड़ा होना चाहिए, जो अजीब या असामान्य का अर्थ है. कोर्ट ने कहा कि हमें बंदी की भावनाओं को समझना चाहिए कि न की उसे प्रताड़ित करना चाहिए. वह बड़ी है और उसे अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है.