हम बचा नहीं सके... कोई मदद को नहीं आया, बेंगलुरु स्टेडियम हादसे के चश्मदीदों की बात सुनकर कांप उठेगा कलेजा
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में आरसीबी की जीत के जश्न के दौरान मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए. गेट टूटने से फैली अफरातफरी में लोग कुचले गए. चश्मदीदों ने बताया कि पुलिस और आयोजकों की लापरवाही से भीड़ बेकाबू हुई. महिलाओं और बच्चों तक को नहीं बख्शा गया.

बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में आरसीबी की जीत के बाद का नजारा किसी खौफनाक हादसे से कम नहीं था. मैदान के बाहर बिखरे पड़े जूते-चप्पल, खून से सने कपड़े और फटे बैग इस बात की गवाही दे रहे थे कि कुछ ही देर पहले यहां जश्न नहीं, मातम पसरा था. भगदड़ में घायल लोग दर्द से चीख रहे थे, और कई लोग अपने प्रियजनों को तलाशते हुए पागलों की तरह इधर-उधर भाग रहे थे. कुल 11 लोगों की मौत और 50 से ज्यादा लोग घायल हो चुके थे.
यह हादसा तब हुआ जब हजारों क्रिकेट प्रशंसक स्टेडियम के भीतर दाखिल होने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे. गेट पर काफी भीड़ जमा हो चुकी थी और सुरक्षा प्रबंध पूरी तरह विफल दिखे. स्टेडियम का एक छोटा सा द्वार टूट गया, जिसके बाद भीड़ बेकाबू हो गई. लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे, कुछ दब गए, तो कुछ को गर्मी और घुटन ने लहूलुहान कर दिया. भगदड़ इतनी तीव्र थी कि किसी को संभलने तक का वक्त नहीं मिला.
क्या था पुलिस का रोल?
मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने घायलों को एंबुलेंस में डाला, लेकिन सड़कों पर पहले से ही इतना ट्रैफिक था कि एंबुलेंस को अस्पताल पहुंचने में काफी देरी हुई. कई एंबुलेंस जाम में फंसी रहीं और कई घायल लोग तड़पते रहे. चश्मदीदों का कहना है कि पुलिस की संख्या नाकाफी थी और हालात पर नियंत्रण पूरी तरह से छूट चुका था. हादसे के बाद प्रशासनिक लापरवाही भी सवालों के घेरे में है.
हमारी गलती क्या थी: रमेश
रमेश नाम के एक चश्मदीद ने बताया, “मुझे नहीं समझ आ रहा कि हमारी गलती क्या थी? हमारे पास टिकट थे, हम सिर्फ जश्न देखने आए थे. लेकिन जिस तरह महिलाओं को बेहोश होकर गिरते देखा, वह दृश्य भूल नहीं सकता. लोग एक-दूसरे को रौंदते हुए भाग रहे थे. हममें से कुछ ने कोशिश की कि किसी को उठाएं, पर भीड़ ने किसी को मौका नहीं दिया.”
कोई उन्हें उठाने नहीं आया: महेश
एएनआई से बातचीत करते हुए महेश ने कहा, “मैं विराट कोहली और आरसीबी को देखने आया था. बहुत सी लड़कियों ने गेट पर धक्का दिया और अंदर जाने की कोशिश की. मैंने तीन लड़कियों को गिरते देखा, लेकिन कोई उन्हें उठाने नहीं आया. पुलिस भी उस भीड़ में कुछ नहीं कर पा रही थी, सब कुछ उनके हाथ से बाहर हो चुका था.”
लोग पागलों की तरह अंदर घुस रहे थे: इनायत
लिंगराजपुरम निवासी इनायत ने बताया, “गेट नंबर 1 को आंशिक रूप से खोला गया था. लोग पागलों की तरह अंदर घुसने लगे. बहुत से लोग बिना पास के भी अंदर घुसना चाह रहे थे. गेट पर कोई नियंत्रण नहीं था. कई लोग गिरते गए, कोई उन्हें उठाने वाला नहीं था. वहां बैठने की जगह नहीं बची थी, फिर भी लोगों को रोका नहीं गया.”
कौन है जिम्मेदार?
इस हादसे की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आयोजकों और सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है. जब इतनी बड़ी संख्या में दर्शक आने वाले थे, तो उचित इंतजाम क्यों नहीं किए गए? गेट का आकार छोटा क्यों रखा गया? सुरक्षा कर्मियों की संख्या कम क्यों थी? क्या भीड़ प्रबंधन की कोई रणनीति नहीं थी? यह सब सवाल अब कर्नाटक सरकार और पुलिस प्रशासन की जवाबदेही पर भारी पड़ रहे हैं. लोग जानना चाहते हैं कि 11 जिंदगियां किसकी लापरवाही की भेंट चढ़ीं?