Menstrual Leave Bill 2025: कर्नाटक सरकार का बड़ा कदम - हर महीने एक दिन पीरियड्स लीव, जानें बिल में क्या है खास?
Karnataka Menstrual Leave Bill 2025: कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार चल रहे शीतकालीन सत्र में विरोध के बावजूद एक बिल पेश करने वाली है, जो सरकारी दफ्तरों और प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं को हर महीने पेड पीरियड लीव देगा और सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में लड़कियों को 2% अटेंडेंस में छूट देगा.
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने Menstrual Leave Policy 2025 को मंजूरी दी है, जिसके तहत राज्य में कामकाजी महिलाओं को हर महीने एक दिन की सवेतन (paid) मासिक धर्म अवकाश दी जाएगी. यह नीति सरकारी कार्यालयों, निजी उद्योगों, फैक्ट्रियों, आईटी कंपनियों और अन्य प्रतिष्ठानों तक लागू होगी. इसके अलावा, सरकार अब एक व्यापक बिल (जिसका नाम संभावित रूप से Karnataka Women Wellbeing Leave Bill 2025 हो सकता है) लाने जा रही है, जो कर्मचारियों के अलावा छात्रों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी कवर करेगा.
क्या है पीरियड लीव बिल?
कर्नाटक महिला कल्याण अवकाश विधेयक 2025 में लिखा है, "मासिक धर्म के दौरान लाभ देना जरूरी है, जिसे शिक्षण संस्थानों, प्राइवेट संस्थानों और सरकार के तहत सेवाओं में काम करने वाली महिलाओं को मासिक धर्म के लक्षणों जैसे ऐंठन, पीठ दर्द, थकान, मतली, ब्लीडिंग आदि से निपटने में मदद करने के लिए विकसित करने की जरूरत है. इससे जुड़े मामलों के लिए प्रावधान करना है."
कर्नाटक सरकार कानून विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बिल के ड्राफ्ट पर कुछ समय से काम चल रहा थ. फिलहाल, कर्नाटक में पीरियड्स लीव पॉलिसी एक कार्यकारी आदेश के जरिए लागू है जो सिर्फ कुछ कंपनियों पर लागू होता है. इस आदेश को कर्नाटक हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह किसी भी कानून के दायरे में नहीं आता है.
किस-किस ने किया बिल का विरोध
बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन और SASMOS HET टेक्नोलॉजीज, अविराटा डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड, अविराटा AFL कनेक्टिविटी सिस्टम्स लिमिटेड, और फेसिल एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के मैनेजमेंट ने भी पिछले हफ्ते बिल के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था. मंगलवार को कोर्ट ने शुरुआती दलीलें सुनने के बाद बिल पर अंतरिम रोक लगा दी.
हालांकि, कुछ घंटे बाद राज्य के एडवोकेट जनरल शशि किरण शेट्टी ने कोर्ट से इस पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया, जिसके बाद कोर्ट ने अपना आदेश वापस ले लिया. बुधवार को, जस्टिस ज्योति एम ने साफ किया कि आदेश सुनवाई के बाद ही पारित किया जाएगा. मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी को होगी.
बिल में क्या कहा गया है?
सूत्रों के अनुसार, बिल में "मासिक धर्म वाली व्यक्ति" को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें लड़कियों, महिलाओं और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल किया गया है, जिससे रोजगार और शिक्षा के सभी क्षेत्रों में समावेशी कवरेज सुनिश्चित हो सके. बिल के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्ति का मतलब ऐसा व्यक्ति है जिसका जेंडर जन्म के समय दिए गए जेंडर से मेल नहीं खाता है और इसमें ट्रांस पुरुष, ट्रांस महिलाएं (चाहे उस व्यक्ति ने सेक्स-रीअसाइनमेंट सर्जरी या हार्मोन थेरेपी और लेजर थेरेपी जैसी कोई थेरेपी करवाई हो या नहीं), इंटरसेक्स वेरिएशन वाले व्यक्ति, जेंडर क्वीर व्यक्ति और किन्नर, हिजड़ा, अरावनी और जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले लोग शामिल हैं.
अगर इसे लागू किया जाता है, तो यह राज्य सरकार के तहत सभी सेवाओं के साथ-साथ फैक्ट्रियों, दुकानों, अस्पतालों, होटलों और सभी शैक्षणिक संस्थानों, प्राइमरी स्कूलों और विश्वविद्यालयों से लेकर ट्रेनिंग सेंटरों, ट्यूशन या कोचिंग सेंटरों और शिक्षा या वोकेशनल ट्रेनिंग देने वाले किसी भी संस्था पर लागू होगा, चाहे वह सरकारी हो, सहायता प्राप्त हो या बिना सहायता प्राप्त हो.यह महिला कर्मचारियों को छुट्टी लगातार (अन्य प्रकार की छुट्टियों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता) या रुक-रुक कर लेने का विकल्प भी देता है.
हालांकि, प्रस्तावित कानून सालाना सीमा 12 दिन तय करता है. अगर कोई कर्मचारी छुट्टी नहीं लेना चाहता है, तो कानून उन्हें घर से काम करने की अनुमति देता है. अगर नियोक्ता ऐसी सुविधाएं देता है. जबकि बिल में यह बताया गया है कि छुट्टी लेने की पात्रता मेनोपॉज या 52 साल की उम्र (जो भी पहले हो) पर खत्म हो जाती है, इसमें न्यूनतम उम्र का जिक्र नहीं है. यह छुट्टी लेने के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं करता है और न ही कर्मचारियों को बिना इस्तेमाल की गई छुट्टी को अगले महीनों में आगे ले जाने की अनुमति देता है.
छुट्टी के लिए ईमेल ही काफी
बिल में कहा गया है कि "सुपरवाइजर को एक साधारण अनुरोध या ईमेल ही काफी होगा, क्योंकि यह तरीका प्रक्रिया में देरी और जटिलताओं से बचाता है." यह सरकारी विभागों, शैक्षणिक संस्थानों और निजी संस्थानों को बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी उत्पाद जैसे पैड, मेंस्ट्रुअल कप और टैम्पोन, साथ ही कचरा निपटान की उचित सुविधाएं अपने खर्च पर प्रदान करने का भी आदेश देता है. यह आगे सरकारी और निजी दोनों संस्थानों को हर साल 28 मई को वर्कशॉप और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करके मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के रूप में मनाने की आवश्यकता पर जोर देता है.
देश के किन-किन राज्यों में है ऐसा कानून?
इस समय भारत में जिन राज्यों में 'पीरियड लीव' यानी मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान है. जिन राज्यों में यह प्रावधान है, उनमें ओडिशा, बिहार, केरल और सिक्किम का नाम शामिल है. ध्यान रहे कि इसको लेकर नीतियां हर राज्य में एक समान नहीं है. कहीं सरकारी कर्मचारियों के लिए; किसी में निजी और सरकारी दोनों तो किसी में सिर्फ छात्राओं/शिक्षण संस्थानों के लिए है.
जैसे बिहार में 1992 से मासिक धर्म अवकाश का प्रावधान है. सरकार की महिला कर्मचारियों को हर महीने 2 दिन पीरियड लीव के रूप में मिलता है. कर्नाटक में हर महीने 1 दिन सवेतन (paid) मासिक धर्म अवकाश, यानी वर्ष में कुल 12 दिन. ओडिशा में अगस्त 2024 में नीति घोषित. नीतियों के अनुसार सरकारी और निजी दोनों सेक्टर में 1 दिन मासिक धर्म अवकाश देने का प्रावधान है. केरल में 2023 से उच्च शिक्षा संस्थानों (विश्वविद्यालयों, कॉलेजों) में छात्राओं (और कुछ मामलों में स्टाफ) के लिए पीरियड लीव का प्रावधान है. सिक्किम में भी महिला कर्मचारियों को ये सुविधा है.





