कारगिल विजय दिवस 2025: भारत पर जबरन थोपा गया कारगिल युद्ध, यही पाकिस्तान के डूब मरने की वजह बना: ले. कर्नल जेएस सोढ़ी
26 जुलाई 2025 को भारत 26वां कारगिल विजय दिवस मना रहा है. यह सिर्फ जीत की याद नहीं, बल्कि एक इतिहास है जहां पाकिस्तान की दशकों पुरानी साजिश को भारत ने वीरता और रणनीति से मात दी. रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी ने स्टेट मिरर से खास बातचीत में बताया कि यह जंग 1971 की हार का पाकिस्तान का जवाब था, जिसे भारत ने करारा सबक बना दिया.

भारत आज (26 जुलाई 2025) 26वां ‘कारगिल विजय दिवस’ (Kargil Vijay Diwas 2025) मना रहा है. उसी युद्ध की याद में जो पाकिस्तान द्वारा भारत के ऊपर जबरिया थोपा गया था. एक तरफ तब के भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान-भारत के बीच सौहार्द-बस-सेवा शुरू कर रहे थे. उनके साथ पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे थे.
दूसरी ओर पाकिस्तान का मक्कार और घाघ सेना प्रमुख जनरल मुशर्रफ भारत के लिए कांटे-कीलें बो रहा था. इसी कारगिल युद्ध के रूप में जिसकी यादें आज भारत ताजा करने के लिए मना रहा है विजय दिवस. ऐसे मौक पर जिक्र उसी कारगिल युद्ध का जो कालांतर में भारत के लिए बन गया सबक और पाकिस्तान के लिए अपने मुंह पर खुद ही थुकवाने की वजह. इस मौके पर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर ने विशेष बात की भारतीय थल सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जे एस सोढी से. कारगिल वॉर के दौरान ले. कर्नल जे एस सोढी तब पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं की हिफाजत में जुटे थे.
1971 में ही गई थी साजिश की शुरुआत
लेफ्टिनेंट कर्नल सोढ़ी बताते हैं कि कारगिल वॉर भले ही सीधे तौर पर भारत के ऊपर 3 मई 1999 को ही थोपा गया हो. इसका षड्यंत्र मगर 1971 में यानी करीब 28 साल पहले (1999 में युद्ध शुरु होने के वक्त से) बुना जाना शुरू कर दिया गया था. 16 दिसंबर सन् 1971 को जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में धूल चटाई, और जिसकी वजह से पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने बांग्लादेश बनवा दिया था. इस कारगिल युद्ध की नींव तो सच पूछिए उसी तारीख से पड़ चुकी थी. उस घटना ने पाकिस्तान को कभी न मिटने वाला जख्म दिया था. पाकिस्तान समझ चुका था कि भारत को वह कभी भी अपने बलबूते नहीं हरा सकेगा. पूर्वी पाकिस्तान को काटकर बांग्लादेश बनाए जाने के अगले ही महीने यानी 24 जनवरी सन् 1972 को पंजाब शहर (पाकिस्तान) के मुल्तान शहर में एक कांफ्रेंस हुई थी, जिसकी अगुवाई अध्यक्षता पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी. उस बैठक में पाकिस्तान के भविष्य को ध्यान में रखते हुए तीन अहम निर्णय लिए गए.
बांग्लादेश बनाए जाने से बहुत दुखी थे
पहला, आने वाले वक्त में पाकिस्तान को चाहे रोटियों के ही लाले क्यों न पड़ जाएं. भले ही पाकिस्तानी जनता भूखी-प्यासी सड़कों पर मारी-मारी क्यों न फिरे. इसके बाद भी पाकिस्तान परमाणु हथियार जरूर बनाएगा. पाकिस्तान आने वाले वक्त में (पूर्वी पाकिस्तान को काटकर बांग्लादेश बनाए जाने के बाद से) पाकिस्तान हर हाल में भारत में मौजूद कश्मीर के हिस्से को हड़पने के लिए जंग करेगा. भारत में अशांति-अस्थिरता फैलाने के लिए पाकिस्तान हर हाल किसी भी हद तक गिरकर, आतंकवादी गतिविधियों का खुलकर समर्थन करेगा. इस अहम बैठक के 5 साल बाद 1977 में जनरल जिया उल हक ने जब पाकिस्तान की सत्ता संभाली, तब जियाउल हक ने मुल्तान बैठक का जो बिंदु नंबर-3 था यानी हर हाल में भारत को अशांत-अस्थिर करने के लिए कश्मीर में आतंकवाद को पनपाने की जिद, को उसने एक मिलिट्री डॉक्ट्रीन के तहत कागज पर लिखवाया. जिस पर पाकिस्तानी थलसेना, वायुसेना, जलसेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई आज तक आंख मूंदकर अमल कर रही हैं. भले ही उनकी इस भस्मासुरी जिद में क्यों न पूरे का पूरा पाकिस्तान ही भस्म हो जाए.
कोयटा कॉलेज में पढ़ाई जाती है आतंकवाद की पढ़ाई
यही वजह है कि आज भी पाकिस्तान के कोयटा कॉलेज में आज भी वहां की फौज को, भारत के खिलाफ आतंकवाद को मजबूत करने की पढ़ाई अमल में लाई जा रही है. भारत के खिलाफ अपने मैल मंसूबों को कामयाबी हासिल कराने के लिए, पाकिस्तान के कम-दिमाग हुक्मरानों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. क्योंकि उनकी मंशा के मुताबिक अब तक भारत के पंजाब राज्य में आतंकवाद फैलने लगा था. उस अशांति की आड़ में ही पाकिस्तान ने खुद सामने आए बिना ही खालिस्तान राज्य बनाने की मांग को जोर पकड़वा दिया. बाद में पाकिस्तान ने जब खालिस्तान की मांग करने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले की खुलकर मदद करना शुरू कर दिया. तब तय हो गया कि अब पाकिस्तान आसानी से बाज नहीं आएगा. उसे उसी की भाषा में जवाब दिया जाना जरूरी है. भारत ने भी वही किया कि पाकिस्तान के मैले मंसूबों को जमींदोज करने के लिए, भारत ने काफी मशक्कत के बाद पंजाब से आतंवकाद की चूलें हिलाने में कामयाबी हासिल कर ही ली. हालांकि पाकिस्तान की मदद से पंजाब में फैला जा चुके आतंकवाद को काबू करने में हिंदुस्तानी हुकूमत को 15 साल लग गए.
1980 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद की एंट्री
1980 के दशक के अंत में जैसे ही पंजाब में आतंकवाद खतम होने की ओर बढ़ा तो, पाकिस्तान ने उसे छोड़कर भारत के हिस्से वाले कश्मीर में आतंकवाद फैलाना शुरू कर दिया. 1989 से कश्मीर घाटी में पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया आतंकवाद आज भी कभी-कभार अपनी गर्दन ऊंची उठाकर अपना भयानक रूप भारत को दिखा ही देता है. जैसे ही भारत ने कश्मीर घाटी में बढ़ते आतंकवाद की आंतें निकालनी शुरू कीं. वैसे ही हड़बड़ाई पाकिस्तानी सेना ने तय किया कि अब कश्मीर में खून खराबा जारी रखने के लिए कुछ और बड़ा किया-सोचा जाए. इसके बाद पाकिस्तान के चार बड़े ओहदेदार अफसरों ने एक अहम बैठक की . जिसे नाम दिया गया ‘कारगिल-क्लिक’. उस बैठक में पाकिस्तानियों ने “ऑपरेशन कोपायमा” का षडयंत्र रचना शुरू किया.
इसे ऑपरेशन कोपायमा कहती है पाकिस्तानी फौज
भारत में जिस कारगिल युद्ध को “ऑपरेशन-विजय” कहा जाता है उसी को पाकिस्तानी फौज और वहां की हुकूमत “ऑपरेशन कोपायमा” कहती है. कोपायमा का मतलब उर्दू में होता है जो इंसान ऊंची-भीमकाए पहाड़ियां चढ़ सकता है. 1998 के अंत में पाकिस्तानी सेना मुख्यालय में चार वरिष्ठ अफसरों “कारगिल-क्लिक” बैठक में प्लानिंग शुरू की, कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की. यह कारगिल पहाड़ियां 13-14 या 15 हजार तक की ऊंचाई पर मौजूद हैं. सर्दियों के मौसम में भारतीय जवान इन दुर्गम पहाड़ियों से नीचे उतर आते थे. यह बात पाकिस्तानी फौज को भली भांति पता थी. मतलब, भारतीय फौज उस वक्त में इन पहाड़ियों के ऊपर तैनात नहीं होती थी तब कुछ वक्त के लिए. सर्दियों के मौसम में भारत की ओर से कारगिल की पहाड़ियों के मोर्चे मजबूरन खाली कर दिए जाते थे. जैसे ही इन पहाड़ियों के ऊपर से बर्फ पिघलने लगती थी हमारी फौज फिर से मोर्चे पर जा डटती थी.
कई सालों तक रखी नजर
बकौल रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जे एस सोढ़ी, “भारतीय फौज की सोच थी कि सर्दियों में जब हम ही नहीं रुक पा रहे हैं तो ऐसे मे भला पाकिस्तानियों की क्या औकात जो वे. कारगिल की इन दुर्गम जानलेवा बर्फीली पहाड़ियों के ऊपर चढ़कर अपनी अकाल मौत को दावत देने की हिमाकत भी कर सकेंगे. पाकिस्तान, कई साल से भारत पर नजर रख रहा था कि हमारी फौज ठंड के दिनों में कब से कब तक कारगिल की पहाड़ियों को छोड़कर ऊंचाई से नीचे चली जाती है.”
“कारगिल-क्लिक” वाली बैठक में मौजूद था पाकिस्तानी फौज का चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ, पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, पाकिस्तानी फौज का लेफ्टिनेंट जनरल महमूद, जोकि जनरल ऑफ अफसर कमांडिंग-10 कोर का था, चौथा ब्रिगेडियर जावेद हसन, जोकि एफसीएनए का कमांडर था. यानी फोर्स कमांड नार्दन इंडियाज. जिसकी गिलगिट और उसके आसपास मौजूद भारत की सीमा से जुड़े पाकिस्तानी इलाकों की हिफाजत करना था. इन चारों ने मिलकर ऑपरेशन कोपायमा की प्लानिंग शुरू कर दी थी.
अंत खूबसूरत तरीके से किया
अब इसे जाने-अनजाने बड़ी चूक ही कहेंगे कि जो हमारी एक कमजोरी, मौकापरस्त पाकिस्तान के लिए कुछ वक्त के लिए ही सही, मगर तुरुप का पत्ता तो साबित हो ही गई. जिसने कारगिल वॉर का ब्लू-प्रिंट बना डाला. और नतीजा दुनिया के सामने रहा. कारगिल वॉर की शुरूआत भले ही मक्कार पाकिस्तान ने की थी. उसका अंत लेकिन भारत ने बेहद खूबसूरत तरीके से किया आज ही की तारीख में अब से 26 साल पहले. इसी खूबसूरत याद में भारत आज भी कारगिल विजय दिवस मना रहा है. और दुनिया भर में कारगिल युद्ध को लेकर अपने मुंह पर थुकवाए बैठा पाकिस्तान आज कहीं भी मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचा है. पाकिस्तान ने सोचा था कि कारगिल का छद्म युद्ध भारत के ऊपर जबरिया ही थोपकर वह दुनिया में हीरो बन जाएगा. लेकिन कारगिल में भारत ने उसकी जिस जबरदस्त तरीके से पिटाई की. यह पाकिस्तान ने तो खुद भोगा है और दुनिया ने देखा है. इसमें भारत को अब और कुछ सही सिद्ध करने की जरूरत नही है.