हमें एतराज नहीं लेकिन लश्कर से... TRF को लेकर अमेरिका के सामने पाकिस्तान के बदल गए सुर, विदेश मंत्री ने क्या कहा?
पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले टीआरएफ को अमेरिका ने आतंकी सूची में डाला तो पाकिस्तान ने विरोध नहीं किया. विदेश मंत्री इशाक डार बोले- हमें कोई दिक्कत नहीं, पर टीआरएफ को लश्कर से जोड़ना गलत. अमेरिका-पाक के बीच आतंकवाद, व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी चर्चा हुई. पाकिस्तान की दोहरी नीति एक बार फिर उजागर हुई है.

पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) को अमेरिका द्वारा आतंकी सूची में डाले जाने के बाद पाकिस्तान ने बेहद सतर्क और दोहरे रवैये वाला बयान दिया है. पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार ने कहा कि अमेरिका को ऐसा करने का अधिकार है और पाकिस्तान को इससे कोई आपत्ति नहीं. लेकिन उन्होंने सावधानी से यह भी जोड़ दिया कि टीआरएफ को लश्कर-ए-तैयबा से जोड़ना सही नहीं है. यह वही बयानबाज़ी है जो पाकिस्तान अक्सर अंतरराष्ट्रीय दबाव के वक्त दोहराता है.
इशाक डार ने अमेरिका में दिए गए अपने बयान में कहा कि अगर टीआरएफ आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है और इसके खिलाफ सबूत हैं, तो अमेरिका का फैसला स्वागत योग्य है. पाकिस्तान ने पहली बार खुलकर किसी आतंकी संगठन को लेकर ऐसी सहमति जताई है, लेकिन यह बयान उस वक्त आया है जब डार अमेरिका के दौरे पर हैं और वहां उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की है. यह बयान अंतरराष्ट्रीय दबाव के तहत ‘डैमेज कंट्रोल’ की तरह देखा जा रहा है.
लश्कर से दूरी बनाने की कोशिश
हालांकि पाकिस्तान ने एक बार फिर वही पुरानी लाइन दोहराई कि टीआरएफ का लश्कर-ए-तैयबा से कोई लेना-देना नहीं है. डार ने दावा किया कि पाकिस्तान में टीआरएफ पहले ही खत्म हो चुका है और उससे जुड़े लोगों को सज़ा भी दी जा चुकी है. उन्होंने यह भी कहा कि संगठन को जड़ से खत्म कर दिया गया था. गौरतलब है कि भारत और अमेरिका दोनों टीआरएफ को लश्कर का ही फ्रंट मानते हैं. पाकिस्तान की यह स्थिति एक बार फिर उसकी भूमिका पर संदेह खड़ा करती है.
अमेरिका-पाक संबंधों में आतंकवाद पर नई बातचीत
डार और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बीच मुलाकात के दौरान कई मुद्दों पर चर्चा हुई. अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार, आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को गहराने की दिशा में बातचीत हुई, खासकर आईएसआईएस-के के खतरे से निपटने को लेकर. दोनों देशों ने इस्लामाबाद में अगस्त में होने वाली द्विपक्षीय आतंकवाद-रोधी वार्ता की तैयारियों पर भी विचार किया. यह वार्ता ऐसे समय हो रही है जब पाकिस्तान खुद आतंकी नेटवर्क के खिलाफ अपनी साख साबित करने की कोशिश कर रहा है.
ईरान, खनिज और व्यापार भी एजेंडे में शामिल
रुबियो ने बैठक के दौरान पाकिस्तान की ईरान के साथ बातचीत में ‘रचनात्मक मध्यस्थता’ की इच्छा की सराहना की और कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. इसके साथ ही दोनों नेताओं ने व्यापारिक रिश्ते, महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों और खनन क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं पर भी चर्चा की. यह साफ दिखाता है कि अमेरिका-पाक रिश्तों में सिर्फ आतंकवाद ही नहीं, आर्थिक हित भी केंद्र में हैं.
छवि सुधारने की रणनीति या दबाव का परिणाम?
टीआरएफ को लेकर पाकिस्तान का यह बदला हुआ रुख उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को लेकर बढ़ती चिंताओं का संकेत है. अमेरिका के साथ संबंध सुधारने की कोशिश में पाकिस्तान अब पहले जैसे स्पष्ट विरोध की बजाय रणनीतिक स्वीकारोक्ति और सीमित असहमति की लाइन पर चल रहा है. हालांकि, भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह वक्त सतर्कता का है – क्योंकि आतंक के विरुद्ध असली कार्रवाई बयानबाज़ी से नहीं, ज़मीनी साक्ष्यों और ठोस कार्रवाई से तय होती है.