ISRO का PSLV‑C61 मिशन अधूरा, तीसरे चरण में अटकी उड़ान; मंजिल तक नहीं पहुंचा EOS‑09
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का PSLV‑C61 मिशन तकनीकी गड़बड़ी के कारण अधूरा रह गया. EOS‑09 उपग्रह को कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका. लॉन्च के तीसरे चरण में इंजन थ्रस्ट कम होने पर प्रणोदन रोका गया. ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने मिशन को “डेटा-ड्रिवन पॉज़” बताया। अब वैज्ञानिक डाटा विश्लेषण कर अगली रणनीति तय करेंगे.

पहली ही उड़ान में ख़ामोशी नहीं, सीख छोड़ गया PSLV‑C61. श्रीहरिकोटा से तड़के 5:59 AM पर उठा रॉकेट निर्धारित गति तक पहुंचा, मगर तीसरे चरण में इंजन के मानक दबाव से नीचे आते ही ऑटोपायलट ने प्रणोदन बंद कर दिया. नतीजा: EOS‑09 कक्षा में स्थापित नहीं हो सका और रॉकेट सुरक्षित “सबसे निचली” सब‑ऑर्बिटल पाथ पर ही गिरा. मिशन अधूरा रहा, लेकिन रेंज सेफ़्टी प्रोटोकॉल ने किसी मलबे या ज़मीन‐जनित ख़तरे को रोक दिया.
ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने इसे “डेटा‑ड्रिवन पॉज़” कहा, असफलता नहीं. उनका तर्क है कि जियो‑सिंक्रोनस ट्रैक से हटते ही सिस्टम ने ख़ुद को रोक लिया, जिससे दोष का सटीक स्नैपशॉट मिल गया. अब वही रॉ‑टेलीमेट्री टीम को अगले लॉन्च‑विंडो से पहले आवश्यक सुधार तय करने में मदद करेगी. इस प्रक्रिया में समय तो लगेगा, पर पीएसएलवी के ‘लाइट‑लिफ्ट’ वर्ग को नई इमर्जेंसी फ़ॉल्ट‐आइसोलेशन क्षमता भी मिलेगी.
पाइपलाइन में है सेटेलाइट का रिपीट मॉडल
EOS‑09 को खोना बेशक अफ़सोसजनक है, मगर मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्यों कृषि, वन‐निगरानी और आपदा मूल्यांकन को पूरी तरह धूमिल नहीं माना जा रहा. इस सेटेलाइट का रिपीट मॉडल पहले से उत्पादन पाइपलाइन में है और कई अंतरराष्ट्रीय ग्राहक भी उसी बस‐आर्किटेक्चर पर सवार पेलोड भेजने को तत्पर हैं. लिहाज़ा यह ठहराव भारतीय स्पेस इकोसिस्टम के लिए झटका कम, व्यापक सुधार का ट्रैफिक लाइट ज़्यादा साबित होगा. अगर ये सफल हो जाता तो इन 5 चीजों पर काम करना बेहतर हो जाता.
- पहला फोकस शहरी नियोजन और पर्यावरणीय निगरानी पर रहता. तेज़ी से फैलते महानगरों में जल निकासी, हरित क्षेत्र संरक्षण और अवैध निर्माणों की पहचान अब कहीं अधिक सरल हो जाती. ये उपग्रह से प्राप्त डेटा स्मार्ट‑सिटी परियोजनाओं के लिए आधार तैयार करता और नीति‑निर्माताओं को समयबद्ध निर्णय लेने में मदद करता. इससे प्रदूषण फैलाने वाले औद्योगिक कॉरिडोर की भी निगरानी सशक्त होती.
- दूसरा पहलू कृषि एवं जल सुरक्षा का था. ईओएस‑09 खेतों की नमी, फसल स्वास्थ्य और सिंचाई पैटर्न पर नज़र रखते हुए किसानों को बेहतर सलाह उपलब्ध कराता. मानसूनी अनियमितताओं के बीच ऐसे रेडार चित्र सूखा या बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत बनाते हैं. इससे खाद्यान्न उत्पादन में स्थिरता लाने और आपूर्ति‑शृंखला को सुरक्षित रखने में सहूलियत होती.
- आपदा प्रबंधन इसकी तीसरी प्रमुख भूमिका थी. भूकंप, भूस्खलन, चक्रवात या तटीय तूफ़ानों के दौरान रडार इमेजरी बादलों के बीच से भी साफ़ दृश्य देती. क्षतिग्रस्त सड़कों, पुलों और आवासीय क्षेत्रों की पहचान मिनटों में होती, जिससे राहत सामग्री को सही दिशा में भेजने में बहुमूल्य समय बचता . यही क्षमता जंगल की आग जैसी घटनाओं में भी सटीक निगरानी प्रदान करती.
- चौथा आयाम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा था. ईओएस‑09 अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और समुद्री मार्गों पर लगातार नज़र रखते हुए संदिग्ध हलचलों की तुरंत जानकारी दे देता. रडार उपग्रहों के मौजूदा नेटवर्क में जुड़कर यह तैनाती भारत के सामरिक चित्रण को और व्यापक बनाती. मिशन जीवन पाँच वर्ष तय है, पर पर्याप्त ईंधन आरक्षित रखा गया था ताकि संचालन के बाद उपग्रह को मलबा‑मुक्त कक्षा में भेजा जा सके.
- अंततः ईओएस‑09 औद्योगिक विकास, खाद्य‑सुरक्षा और भू‑राजनीतिक स्थिरता तीनों को एक ही मंच पर साधने वाला बहुउद्देश्यीय प्रयास था. यह तकनीक‑केंद्रित दृष्टिकोण भारत को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों, बढ़ती शहरी आबादी और क्षेत्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं के लिए एक साथ तैयार करता. प्रयोगशालाओं से निकलकर अंतरिक्ष तक पहुंचे इस उपग्रह की निगाह अब हर मौसम, हर घड़ी धरती पर रहती.