क्या भारत अमेरिका से ब्रेकअप और चीन से कर रहा दोस्ती? इंडिया की विदेश नीति की 'अग्नि परीक्षा कैसे
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव पहले से ज्यादा गहरा गया है. पिछले कुछ दिनों के दौरान देश की विदेश नीति आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां अमेरिका और चीन के बीच बैलेंस साधना मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. यह एक ऐसी अग्निपरीक्षा है, जिसमें वॉशिंगटन से इंडिया के रिश्ते कमजोर हो रहे हैं, जबकि बीजिंग के साथ नई दोस्ती की बुनियाद रखी जा रही है. आइए, डिटेल में समझते हैं भारत की कूटनीतिक ‘अग्निपरीक्षा’.

पिछले दो दशक के दौरान भारत ने अमेरिका के साथ रक्षा, व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय गुड्स पर 50 फीसदी का टैरिफ लगाने के बाद से संबंध बिगड़ने लगे हैं. व्यापारिक मतभेद, रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की न्यूट्रल पॉलिसी और चीन से बढ़ते संपर्क ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. अहम सवाल यह है कि क्या भारत अमेरिका से दूरी बना कर चीन से निकटता की ओर बढ़ रहा है? ऐसा करना कितना सही है. क्या देश की विदेश नीति की एक बार फिर भारत-पाक युद्ध 1971, कारगिल युद्ध, पोखरण परमाणु परीक्षण टू व अन्य अवसरों की तरह अग्निपरीक्षा है, जिससे इससे पहले नेहरू, इंदिरा और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भी गुजरना पड़ा था. आइए, जानते हैं पांच पहलू, जिसकी वजह से दोनों देशों के विवाद बढ़े.
1. अमेरिका से रिश्तों में खटास
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन लगातार भारत की ट्रेड पॉलिसी पर सवाल उठा रहा है. ट्रेड वार और टैरिफ विवाद की आड़ में ट्रंप सरकार अपने मुताबिक ऑपरेशन सिंदूर, रूस और यूक्रेन युद्ध, रूस से तेल की खरीद, ईरान-भारत संबंध, सहित कई ऐसे मामलों पर भारत का रवैया न होने की वजह से ऐसा किया है. इस मामले में ट्रंप प्रशासन का कहना है कि भारत हमारा स्ट्रैटजिक पार्टनर है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. जबकि भारत का कहना है कि हमारी स्वतंत्र विदेश नीति हमेशा से रही है. हम अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं कर सकते.
रूस-यूक्रेन युद्ध पर अमेरिका चाहता था कि भारत रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाए, लेकिन भारत ने ‘स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी’ पर जोर दिया. मानवाधिकार और लोकतंत्र पर अमेरिकी थिंक टैंक और नेताओं की बयानबाजी भारत को खटकती रही है.
2. चीन से नया समीकरण?
अमेरिकी प्रशासन द्वारा 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद मोदी सरकार ने उन देशों से संबंध बनाने शुरू कर दिए हैं, जिनसे अभी तक रिश्ते या तो संतोषजनक नहीं थी, या प्राथमिकता सूची में टॉप नहीं होने की वजह से गहरे नहीं थी. चीन के साथ संबंधों को सुधारना उनमें से एक है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोदी का सात साल में पहली बार चीन जाना इस बात का प्रतीक है कि वो अमेरिकी रुख को देखते हुए वैकल्पिक योजनाओं पर काम कर रहे हैं. ताकि भारत को कम से कम नुकसान उठाना पड़े. 31 अगस्त को तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात को भी उसी दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है. यह कितना सही है, यह डिबेट का विषय हो सकता है, लेकिन सरकार के लिए वैकल्पिक नीति के तहत कुछ न कुछ कदम उठाना जरूरी था.
3. SCO और BRICS में भारत ने बढ़ाई सक्रियता
भारत सरकार चीन और रूस के साथ मिलकर एससीओ और ब्रिक्स के मंच पर अपनी सक्रियता बढ़ाकर अमेरिका की कमी को पूरा करने में जुटी है. चीन ने इस मामले में अच्छा रिस्पांस दिया है, लेकिन उस पर पूरी तरह से भरोसा करना भारत के लिए पूरी तरह से मुफीद नहीं माना हा सकता. हालांकि, सीमा विवाद के बावजूद भारत-चीन व्यापार नई ऊंचाई छू रहा है. दूसरी तरफ सावधानी के साथ डिप्लोमेसी का परिचय देते हुए भारत एक और अमेरिका के साथ QUAD में बना हुआ है.
4. भारत की स्ट्रेटेजी - ‘मल्टी अलाइनमेंट’
भारत नॉन-अलाइंड पॉलिसी के नए रूप में ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ अपना रहा है. रूस, फ्रांस, इटली और जर्मनी सहित कई देशों ने भारत सरकार की इस नीति को अपनी सहमति दी है. इस नीति के तहत भारत अब अमेरिका, रूस, चीन, यूरोप-सबसे रिश्ते अपने हितों के मुताबिक आगे बढ़ेगा. ऊर्जा, टेक्नोलॉजी और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में भारत हर ब्लॉक से फायदा उठाना चाहता है.
5. अग्नि परीक्षा क्यों?
दरअसल, इंडो-पैसिफिक रणनीति के लिहाज से देखें तो अमेरिका चाहता है कि भारत खुले तौर पर चीन को काउंटर करे. दूसरी तरफ लद्दाख और अरुणाचल में भारत का चीन के साथ तनाव अभी भी बना हुआ है. नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान से पहले से संबंध खराब चल रहे हैं. यही वजह है कि G20 और BRICS में भारत को मध्यस्थता और संतुलनकारी भूमिका निभानी पड़ रही है.
इस लिहाज से देखें तो भारत न तो अमेरिका से पूरी तरह ब्रेकअप कर सकता है और न ही चीन से पूरी तरह दोस्ती. मोदी सरकार का यह कदम ‘कूटनीतिक संतुलन’ की रणनीति है, जहां भारत अपने हितों को प्राथमिकता देता है. यही संतुलन आज भारत की विदेश नीति की ताकत है, बदले परिवेश में किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.