चीन के मेगा डैम को भारत की चुनौती, अरुणाचल में बना रहा देश का सबसे ऊंचा बांध
भारत ने चीन के मेगा डैम के जवाब में अरुणाचल प्रदेश में दिबांग डैम का निर्माण शुरू किया है. 278 मीटर ऊंचा यह डैम देश का सबसे ऊंचा डैम बनेगा और ऊर्जा उत्पादन व बाढ़ नियंत्रण में मदद करेगा. चीन के यारलुंग त्सांगपो डैम से जल प्रवाह पर खतरा बढ़ा है. दिबांग डैम भारत की जल सुरक्षा, रणनीतिक रक्षा और क्षेत्रीय विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम है, जो 2032 तक पूरा होगा.

भारत ने अरुणाचल प्रदेश में अपने सबसे ऊंचे डैम - दिबांग मल्टीपरपस प्रोजेक्ट - के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया है. यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब चीन ने तिब्बत में ट्रांस-बॉर्डर यारलुंग त्सांगपो नदी पर विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत डैम बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. चीन का यह मेगा डैम भारतीय सुरक्षा, जल संसाधनों और पर्यावरण के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है.
इसी के जवाब में भारत ने अपनी रणनीतिक तैयारी तेज करते हुए दिबांग डैम को एक सुरक्षा कवच के रूप में विकसित करना शुरू कर दिया है, जो चीन द्वारा अचानक पानी छोड़ने या जल प्रवाह नियंत्रित करने की स्थिति में भारत के लिए एक प्रभावी रक्षा प्रणाली बनेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष अरुणाचल प्रदेश के मिनली गांव में इस परियोजना का शिलान्यास किया था. अब केंद्र सरकार द्वारा संचालित नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (NHPC) ने मुख्य डैम के निर्माण के लिए 17,069 करोड़ रुपये की वैश्विक निविदा जारी कर दी है. इसमें 91 महीने यानी लगभग आठ साल की समयसीमा निर्धारित की गई है और इसका पूरा कार्य 2032 तक समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है. मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित भारतीय जनता पार्टी के कई वरिष्ठ नेता हाल ही में निर्माण स्थल का दौरा कर चुके हैं और परियोजना की प्रगति का निरीक्षण कर चुके हैं.
चीन की मेगा परियोजना और भारत की प्रतिक्रिया
जुलाई 2024 में रिपोर्ट आई थी कि चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत डैम बनाने का काम शुरू कर दिया है. इसका नाम मोटोउ हाइड्रोपावर स्टेशन होगा और यह थ्रीगॉर्ज़ डैम को पीछे छोड़ देगा. चीन ने कहा है कि उसे इस परियोजना पर 'वैध अधिकार' है, लेकिन भारत ने चिंता व्यक्त की है कि इससे निचले क्षेत्रों - अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश - में जल प्रवाह प्रभावित हो सकता है. भारत ने बीजिंग से पारदर्शिता और सहयोग की मांग की थी, लेकिन साथ ही अपनी रणनीतिक तैयारी भी तेज कर दी.
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने चेतावनी दी थी कि चीन का यह डैम सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. यदि चीन अचानक जल छोड़ता है तो भारतीय क्षेत्रों में बाढ़ जैसी आपदा उत्पन्न हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि चीन इसे 'जल बम' की तरह इस्तेमाल कर भारत को नुकसान पहुंचा सकता है. यही कारण है कि भारत ने दिबांग डैम को न केवल ऊर्जा परियोजना बल्कि सुरक्षा कवच के रूप में विकसित करना शुरू किया है.
दिबांग डैम - भारत का रणनीतिक कदम
दिबांग नदी, जो ब्रह्मपुत्र नदी की प्रमुख सहायक नदी है, दक्षिणी हिमालय से निकलकर अरुणाचल प्रदेश से होते हुए असम तक जाती है. इसका कुल विस्तार लगभग 195 किलोमीटर है. दिबांग नदी और सियांग नदी का संगम ब्रह्मपुत्र का निर्माण करता है. चीन द्वारा निर्मित डैम से अचानक जल प्रवाह में बदलाव होने की स्थिति में भारत को एक सुरक्षित जल भंडारण व्यवस्था की आवश्यकता है. यही भूमिका दिबांग डैम निभाएगा.
NHPC की निविदा में परियोजना के दो मुख्य उद्देश्य बताए गए हैं -
विद्युत उत्पादन
दिबांग डैम की ऊंचाई 278 मीटर होगी, जो इसे भारत का सबसे ऊंचा डैम बना देगा. इसका वार्षिक ऊर्जा उत्पादन 11,223 मिलियन यूनिट तक पहुंचने की संभावना है. यह परियोजना भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में योगदान देगी. साथ ही, अरुणाचल प्रदेश को हर साल 700 करोड़ रुपये की मुफ्त बिजली मिलेगी. परियोजना की कुल लागत 31,875 करोड़ रुपये है.
बाढ़ नियंत्रण
मानसून के दौरान जल संचयन कर बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित किया जाएगा. अनुमान है कि 1,282 मिलियन क्यूबिक मीटर जल को नियंत्रित कर बाढ़ की संभावनाओं को कम किया जा सकेगा. इससे निचले इलाकों में जल आपदा से बचाव होगा.
नेशनल सिक्योरिटी और वाटर डिप्लोमेसी
भारत की रणनीति में दिबांग डैम केवल ऊर्जा परियोजना नहीं है, बल्कि यह चीन के जल नियंत्रण की संभावित चुनौतियों का जवाब है. 2020 में गलवान झड़प के बाद भारत-चीन संबंधों में खटास आई थी. हालांकि 2024 में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के दौरान पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय वार्ता की, लेकिन चीन का डैम प्रोजेक्ट सुरक्षा का बड़ा मुद्दा बना हुआ है.
भारत ने पहले भी चीन से कहा था कि यारलुंग त्सांगपो पर परियोजना से भारत और बांग्लादेश जैसे डाउनस्ट्रीम देशों के हितों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. साथ ही, जल प्रवाह में पारदर्शिता और आपसी संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया गया. अब दिबांग डैम के माध्यम से भारत स्वयं को जल प्रबंधन और आपदा नियंत्रण में सक्षम बनाना चाहता है.
स्थानीय समुदाय और विकास की संभावना
अरुणाचल प्रदेश के लिए यह परियोजना आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. बिजली उत्पादन के साथ-साथ क्षेत्र में बुनियादी ढांचे, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाओं में भी सुधार होगा. परियोजना से हजारों रोजगार सृजित होंगे. साथ ही, बाढ़ नियंत्रण से स्थानीय लोगों को जीवन और संपत्ति की सुरक्षा मिलेगी.
राज्य सरकार ने इस परियोजना को 2032 तक पूरा करने का संकल्प जताया है. मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि यह परियोजना न केवल ऊर्जा आपूर्ति बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी ऐतिहासिक कदम है. NHPC के चेयरमैन संजय कुमार सिंह ने भी कहा कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता और समयसीमा का विशेष ध्यान रखा जाएगा.
चीन के डैम से क्या होंगे खतरे
मोटोउ हाइड्रोपावर स्टेशन के निर्माण से चीन को यारलुंग त्सांगपो के जल प्रवाह पर नियंत्रण मिलेगा. इसका प्रभाव भारत की सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियों पर पड़ेगा. चीन यदि अचानक जल छोड़ता है तो असम और अरुणाचल प्रदेश में भयंकर बाढ़ आ सकती है. वहीं जल प्रवाह घटने की स्थिति में सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और पीने के पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी. भारत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा है कि यह परियोजना क्षेत्रीय पर्यावरण, आजीविका और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है. इसी वजह से दिबांग डैम की आवश्यकता और भी बढ़ गई है.
अब आगे क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि दिबांग डैम भारत के लिए रणनीतिक ढाल का काम करेगा. ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ बाढ़ से बचाव और जल संकट से निपटने में यह परियोजना एक बड़े समाधान के रूप में सामने आएगी. हालांकि इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि निर्माण कार्य समय पर पूरा हो, तकनीकी मानकों का पालन किया जाए और स्थानीय लोगों को उचित लाभ मिले. साथ ही, भारत को जल कूटनीति में सक्रिय रहना होगा और चीन के साथ संवाद बनाए रखना होगा ताकि पारदर्शिता, डेटा साझा करने और आपदा प्रबंधन की संयुक्त व्यवस्था संभव हो सके. यह परियोजना केवल एक निर्माण कार्य नहीं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक जल सुरक्षा और रणनीतिक स्वावलंबन की दिशा में बड़ा कदम है.