हिंसा की आग में झुलस रहे मुर्शिदाबाद का कैसे पड़ा था नाम? आजादी के बाद भी सुलगा था शहर
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर फैले तनाव ने राजनीतिक भूचाल पैदा कर दिया है. अर्धसैनिक बलों की तैनाती, हिंसा और पलायन की खबरों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है. ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील यह जिला अब वोट बैंक, प्रशासनिक विफलता और सांप्रदायिक संतुलन की सियासत का केंद्र बन गया है.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर फैले तनाव ने राजनीतिक भूचाल पैदा कर दिया है. अर्धसैनिक बलों की तैनाती, हिंसा और पलायन की खबरों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है. ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील यह जिला अब वोट बैंक, प्रशासनिक विफलता और सांप्रदायिक संतुलन की सियासत का केंद्र बन गया है.पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला इन दिनों वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर उपजे तनाव के चलते चर्चा में है. पर यह मुद्दा अब कानून या विरोध तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकार क्षेत्र की लड़ाई में तब्दील हो गया है. शांति के नाम पर की गई कार्रवाई अब राजनीतिक जमीन की खींचतान का अखाड़ा बन चुकी है.
शुक्रवार को समशेरगंज और सुती में हिंसा भड़कने के बाद हालात तेजी से बिगड़े. तीन लोगों की मौत और सैकड़ों घायल होने की खबर के बीच व्यापारिक प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया गया. इसके बाद केंद्र ने सीआरपीएफ और बीएसएफ की 15 कंपनियों की तैनाती कर दी. बीजेपी इसे कानून व्यवस्था की विफलता बता रही है, जबकि राज्य सरकार इसे "राजनीतिक अतिक्रमण" मान रही है.
राजनीतिक बयानबाज़ी और पलायन की चिंता
बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी के मुताबिक धुलियान से करीब 400 लोग पलायन कर चुके हैं. इस बयान के पीछे चुनावी रणनीति की भी झलक दिखाई देती है. जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि स्थिति सामान्य होने में समय लगेगा, लेकिन डर और अनिश्चितता का माहौल लोगों को विस्थापन की ओर धकेल रहा है.
मुर्शिदाबाद का नाम कैसे पड़ा?
मुर्शिदाबाद का नाम मुग़ल कालीन एक प्रभावशाली प्रशासक मुर्शिद कुली खान के नाम पर पड़ा, जिनका असली नाम मोहम्मद हरक़रू था. औरंगज़ेब के शासनकाल में उन्हें बंगाल, बिहार और उड़ीसा का दीवान नियुक्त किया गया था. उन्होंने प्रशासनिक कुशलता दिखाते हुए ढाका की जगह मकसूदाबाद को नया प्रशासनिक केंद्र बनाया और इसे समृद्धि की ओर अग्रसर किया. उनकी आर्थिक नीतियों और नेतृत्व के कारण मकसूदाबाद को मुर्शिद कुली खान के सम्मान में 'मुर्शिदाबाद' कहा जाने लगा.
यहीं लड़ी गई थी प्लासी की लड़ाई
18वीं सदी की शुरुआत में मुर्शिदाबाद बंगाल की राजनीतिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक राजधानी बन गया. नवाबों की रियासत, रेशम व्यापार और भव्य मुग़ल स्थापत्य इसे एक ऐतिहासिक पहचान देते हैं. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से पहले यह क्षेत्र सत्ता और समृद्धि का केंद्र था. 1757 की प्लासी की लड़ाई, जो यहीं लड़ी गई थी, भारत में ब्रिटिश राज की शुरुआत का निर्णायक मोड़ बनी. मुर्शिदाबाद का नाम और इतिहास यह दिखाता है कि कैसे एक कुशल प्रशासक का प्रभाव एक पूरे शहर की पहचान बन सकता है.
अंत समय में भारत में रहा मुर्शिदाबाद
1947 में भारत के विभाजन ने मुर्शिदाबाद को एक गहरे असमंजस और तनाव के दौर में धकेल दिया. उस समय यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल था और शुरुआती रेडक्लिफ़ लाइन के अनुसार इसे पाकिस्तान में शामिल किया जाना था. लेकिन अंतिम क्षणों में इसे भारत में बनाए रखने का निर्णय लिया गया, जिससे स्थानीय आबादी में भय, भ्रम और असुरक्षा की लहर दौड़ गई. जिन लोगों ने पाकिस्तान जाने की तैयारी कर ली थी, उन्हें अचानक भारत में ही रुकना पड़ा, और इससे दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और नाराज़गी गहराती गई.
विभाजन की कड़वी विरासत आज भी ज़िंदा है
इस असमंजसपूर्ण माहौल में मुर्शिदाबाद और उसके आसपास के गांवों में सांप्रदायिक हिंसा, पलायन, आगजनी और लूटपाट की घटनाएं देखने को मिलीं. मुसलमानों ने पाकिस्तान की उम्मीद में अपने घर छोड़ दिए, जबकि हिंदू और सिख समुदायों को भी निशाना बनाया गया. कई परिवारों को अपनी ज़मीन-जायदाद छोड़कर नए ठिकाने तलाशने पड़े. आज भी इस शहर में विभाजन की वह कड़वी विरासत मौजूद है. धार्मिक पहचान और सामाजिक संतुलन के बीच चल रही खींचतान, जो मुर्शिदाबाद को अब तक पूरी तरह शांति की ओर लौटने नहीं देती.
70% से ज्यादा हैं मुस्लिम
मुर्शिदाबाद की 70% से अधिक आबादी मुस्लिम है और 30 प्रतिशत हिंदू जनसंख्या है. यह सांख्यिकी हर राजनीतिक दल के लिए रणनीति का अहम हिस्सा बन जाती है. वक्फ अधिनियम को लेकर उपजे विवाद में भी यह तथ्य केंद्र में है. यह सिर्फ धार्मिक या सामाजिक विवाद नहीं, बल्कि एक बड़े वोट बैंक की लड़ाई भी बन चुकी है.
शिक्षा में महिला की स्थिति है चिंताजनक
इस जिले की साक्षरता दर केवल 65% है और महिलाओं की स्थिति और भी चिंताजनक है. राजनीतिक बहसें चाहे जितनी तीखी हों, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे यहां की जनता की असल चिंता हैं, जो अक्सर इन वाद-विवादों के शोर में दब जाते हैं.
मुर्शिदाबाद का क्या है भविष्य?
आज जब मुर्शिदाबाद की आबादी 90 लाख के करीब है. तो यह सवाल और भी अहम हो जाता है कि क्या यह जिला अपनी ऐतिहासिक विरासत को पुनः जागृत कर सकता है, या फिर यह लगातार सियासी प्रयोगशाला बना रहेगा? वक्फ विवाद ने एक बार फिर यह दिखाया कि विकास की राह तब तक साफ नहीं हो सकती जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सामाजिक संवाद का संतुलन न बने.