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बेडरूम तक पहुंची नेताओं की सियासी लड़ाई! कर्नाटक में 'Honey Trap' कैसे बना सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार?

karnataka Honey Trap: कर्नाटक में राजनीति में नेताओं को निशाना बनाने के लिए सेक्‍स स्‍कैंडल या हनी ट्रैपिंग का इस्‍तेमाल किया जाता है. सालों से यह सब देखने को मिल रहा है. हाल ही में हनीट्रैप मामले में नाम आने के बाद भाजपा विधायक रमेश जरकीहोली को अपने पद से इस्तीफा देने पड़ा. इस मामले में कई नेताओं को निशाना बनाने का दावा किया गया है.

बेडरूम तक पहुंची नेताओं की सियासी लड़ाई! कर्नाटक में Honey Trap कैसे बना सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार?
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( Image Source:  canava )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 24 March 2025 1:06 PM IST

Karnataka Honey Trap: राजनीति में विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए सेक्‍स स्‍कैंडल या हनी ट्रैपिंग का इस्‍तेमाल कोई नया नहीं है. लेकिन कर्नाटक में जो हो रहा है उसने इसे एक बार फिर लाइमलाइट में ला दिया है. कर्नाटक में जो कुछ भी हो रहा है उससे साफ पता चलता है कि कैसे जानबूझकर और माकूल समय चुनकर ऐसे स्‍कैंडल सामने लाए जा रहे हैं और विरोधियों की छवि खराब करने के लिए इस्‍तेमाल किए जा रहे हैं.

हालांकि इस तरह के घोटाले भारतीय राजनीति के लिए नए नहीं हैं, लेकिन वे ज्‍यादा पर्सनल हो गए हैं. ये अब व्यक्तिगत अविवेक के अलग-अलग कृत्य नहीं रह गए हैं, बल्कि सुनियोजित ऑपरेशन बन गए हैं जिसमें तकनीक का इस्‍तेमाल छवि खराब करने और सत्ता पर पकड़ बनाने के लिए किया जा रहा है.

भाजपा विधायक का नाम आया सामने

जानकारी के अनुसार, हनीट्रैप मामले सबसे पहले बीजेपी विधायक रमेश जरकीहोली का नाम सामने आया है. आरोप है कि हाल के कुछ वर्षों में सबसे ज्यादा हाई-प्रोफाइल हनीट्रैप केस की लिस्ट में उनका नाम शामिल है. उन्हें एक लीक सेक्स टेप के बाद अपने मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. वहीं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के परिवार के सदस्य प्रज्वल रेवन्ना और सूरज रेवन्ना को भी इसी तरह की बदनामी का सामना करना पड़ा है.

48 नेताओं को लेकर बड़ा दावा

कर्नाटक विधानसभा में सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने दावा किया कि 48 विधायकों को हनीट्रैप में फंसाया गया है. उन्होंने दावा किया कि यह नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है, जिसमें कई केंद्रीय मंत्री भी फंस गए हैं. कर्नाटक कांग्रेस ने राजन्ना से संपर्क किया और उनसे शिकायत दर्ज कराने को कहा है. आरोप है कि कई मामलों को चुपचाप निपटा दिया गया है, जो लोगों की कभी लोगों की नजर में नहीं आए.

पहले भी सामने आए थे मामले

हनीट्रैप विवाद पर विवेक मेनन ने कहा, 'कर्नाटक की राजनीति में सेक्स वीडियो कांडों का बार-बार सामने आना राजनीतिक नैतिकता के गहरे संकट और सत्ता संघर्ष में एक रणनीतिक उपकरण दोनों को दर्शाता है.' उन्होंने कहा, एक तरफ ये घोटाले नैतिक और नैतिक पतन को दर्शाते हैं, जहां नेता के छवि जनता के विश्वास को खत्म करता है. दूसरी तरफ राजनीतिक विपक्ष द्वारा सरकार में मंत्री और विधायक की छवि खराब करने और सत्ता की गतिशीलता को बदलने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है.

मेनन का तर्क है कि ये मामले न केवल व्यक्तिगत चूक को उजागर करते हैं बल्कि एक खतरनाक प्रवृत्ति को भी उजागर करते हैं जहां राजनीति अब शासन के बारे में नहीं बल्कि किसी भी कीमत पर अस्तित्व के बारे में है. उन्होंने कहा, ऐसी घटनाओं की पार्टी के आंतरिक अनुशासन की विफलता और एक ऐसी संस्कृति को दिखाती है जहां सनसनीखेजता शासन पर हावी हो जाती है.

हनीट्रैप राजनीतिक हथियार

सुप्रीम कोर्ट के वकील बृजेश कलप्पा ने कहा कि हनीट्रैप राजनीतिक विनाश का एक प्रमुख हथियार बन गया है. कलप्पा ने कहा, दशकों से कर्नाटक की राजनीति जातिगत समीकरणों, व्यापारिक हितों और व्यक्तिगत नेटवर्क के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन अब जब सत्ता बहुत ज्यादा वित्तीय लाभ ला रही है, तो राजनीतिक महत्वाकांक्षा निर्दयी हो गई है. राजनीति एक खूनी खेल बन गई है और इन हनीट्रैप का मास्टरमाइंड स्वार्थी लोग हैं. राजनीति में ज्यादा पैसे आने के साथ ही, व्यापारिक कंपटीशन भी बहुत हो गया है. साधन कम मायने रखने लगे हैं. इसके बाद भी राजनेता विरोधियों द्वारा बिछाए गए जाल में फंसना जारी रखते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रवींद्र रेशमे ने कहा, 'हनीट्रैप जाल कर्नाटक की राजनीति को प्रभावित करने वाली एक गहरी बीमारी का बाहरी प्रकटीकरण है. पहले जाति की राजनीति में सामाजिक न्याय की वैचारिक परत थी, लेकिन जल्द ही यह जाति, धन और बाहुबल का मिश्रण बन गई. कार्यकर्ता अपनी पार्टियों से ज्यादा अमीर हो गए, नवाबों और महाराजाओं की तरह सत्ता का दिखावा करने लगे. रेशमे ने कहा, राजनीति आसान पैसे, तुरंत धन और सामाजिक प्रतिष्ठा का मार्ग बन गई. यह एक ऐसी लड़ाई बन गई है जिसमें कोई रोक-टोक नहीं है - चाहे पार्टी की छवि को कितनी भी कीमत चुकानी पड़े. सवाल बना हुआ है - क्या राजनेता सीखेंगे शीर्ष पदों के लिए लड़ाई चुनावी मैदानों के बजाय बेडरूम में ही लड़ी जाएगी?

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