वीजा के बदले सिम दो, फिर ऐसे लगाई जाती थी भारत की सुरक्षा में सेंध, दानिश निकला ISI एजेंट
ज्योति मल्होत्रा को फंसाने वाला अधिकारी इस्लामाबाद की कुख्यात इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का एजेंट निकला. दरअसल ये एजेंट भारतीयों से वीजा के बदले सिम लेते थे, जिसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ नापाक हरकतों को पूरा करने के लिए किया जाता है.

भारत की सुरक्षा एजेंसियों ने हाल ही में एक बेहद गंभीर और खतरनाक जासूसी नेटवर्क का भंडाफोड़ किया है. इस साजिश के तार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से जुड़े हैं, जिसने बेहद शातिराना तरीके से भारतीय सिम कार्डों का इस्तेमाल कर देश की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश की. यह खेल पाकिस्तानी उच्चायोग से शुरू होता है, जहां ISI के एजेंट एहसान-उर-रहीम उर्फ़ दानिश और मुजम्मिल हुसैन उर्फ़ सैम हाशमी तैनात हैं.
ये एजेंट लोगों से वीज़ा के बदले भारतीय सिम कार्ड मांगते थे. इन लोगों का काम खासतौर पर ऐसे भारतीयों को निशाना बनाते थे जो कम पढ़े-लिखे थे. ग्रामीण इलाकों से आते थे और जिनके रिश्तेदार पाकिस्तान में रहते थे. जो भारतीय पाकिस्तान जाने के लिए वीज़ा की कोशिश करते थे. उनसे कहा जाता था अगर वीजा चाहिए, तो सिम कार्ड का इंतज़ाम करो. लोग झांसे में आ जाते और अनजाने में देशद्रोह की साज़िश का हिस्सा बन जाते. अब पुलिस ने बताया है कि कैसे इन सिम कार्ड का इस्तेमाल संवेदनशील जानकारी जुटाने और लोगों को घुमराह करने के लिए किया जाता है.
क्यों पड़ी भारतीय सिम कार्ड की जरूरत
- पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात ISI के हैंडलर्स अपने असली या प्राइवेट नंबर के बजाय उन्हीं भारतीय सिम कार्डों का इस्तेमाल करते थे, जो उन्हें वीजा के बदले मिलते हैं. ऐसा करने से अगर कोई जासूस पकड़ा भी जाए, तो ISI अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार कर सके. यह कहकर कि नंबर उनका नहीं है.
- ISI एन्क्रिप्टेड ऐप्स जैसे व्हाट्सएप और टेलीग्राम से भारतीय सुरक्षाबलों को निशाना बनाता था. 2023 में भेजे गए स्पाईवेयर सभी +91 नंबरों से भेजे गए, जो ISI हैंडलर्स इस्लामाबाद के साइबर हैकरों को देते थे, ताकि वे व्हाट्सएप लॉगइन कर सेना व पुलिस के फोन हैक कर सकें.
- इन भारतीय सिम कार्डों का सबसे बड़ा इस्तेमाल भारतीय सुरक्षा बलों, खासकर जम्मू-कश्मीर के पुलिसकर्मियों और जवानों के फोन हैक करने के लिए होता था. हैकिंग के जरिए उनके मोबाइल से संवेदनशील जानकारी चुराई जाती थी, जिसे फिर पाकिस्तान भेजा जाता था. सीधे भारत की सुरक्षा में सेंध लगाने के लिए.
कैसे हुआ इस्तेमाल सिम कार्ड का?
इन भारतीय सिम कार्डों को बाद में तीन मुख्य कामों में इस्तेमाल किया जाता था:
- सैनिकों से बातचीत: ISI एजेंट इन भारतीय नंबरों का इस्तेमाल कर सीधे भारतीय सेना और पुलिसकर्मियों से संपर्क करते थे – कभी अधिकारी बनकर, तो कभी आम नागरिक बनकर.
- हनी ट्रैप और दुष्प्रचार: ये नंबर हनी ट्रैप रचने के लिए भी काम में लाए जाते थे. सोशल मीडिया पर नकली प्रोफाइल बनाकर भारतीय अफसरों को फंसाया जाता और उनसे संवेदनशील जानकारी ली जाती.
- फोन हैकिंग: ISI के साइबर विशेषज्ञ इन नंबरों से व्हाट्सएप जैसे ऐप्स लॉग इन करते और फिर सेना के अधिकारियों के फोन में स्पायवेयर भेजते.
ISI का कॉल सेंटर
पाकिस्तान के झेलम ज़िले और इस्लामाबाद में स्थित ISI के विशेष कॉल सेंटर से भारत में यह सब कुछ रिमोट से चल रहा था. खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, इन कॉल सेंटरों में व्हाट्सएप कॉल, चैट और वीडियो कॉल के ज़रिए अफसरों से संपर्क किया जाता था. फिर धीरे-धीरे, उन्हें ऐसी बातों में उलझा लिया जाता था, जो बाद में ब्लैकमेलिंग और जानकारी निकालने में काम आतीं.
गिरफ्तारियों से हुआ पर्दाफाश
इस पूरे नेटवर्क का भंडाफोड़ तब हुआ जब देशभर में कई गिरफ्तारिया हुईं. इनमें ज्योति मल्होत्रा एक यूट्यूबर जो पाकिस्तान के इशारे पर देश की जानकारी इकट्ठा कर रही थी. दिल्ली का रहने वाला मो. हारून जिसे पाकिस्तानी उच्चायोग के एक अधिकारी के लिए काम करते हुए पकड़ा गया. नोमान हरियाणा से पकड़ा गया, जिसके पास से खुफिया दस्तावेज़ मिले.
भारत की जवाबी कार्रवाई
जैसे ही भारत की सुरक्षा एजेंसियों को यह जानकारी मिली, उन्होंने पूरे नेटवर्क पर नज़र रखनी शुरू कर दी. पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. हजारों भारतीय सिम कार्ड पाकिस्तान भेजे जा चुके थे और ISI ने इन्हें भारतीय सेना की जासूसी, साइबर हमलों और अफवाह फैलाने के लिए इस्तेमाल किया.