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अंकारा से अजमेर तक: तुर्की की सूफी डिप्लोमेसी का भारत में बढ़ता असर

भारत और तुर्की के रिश्ते हाल के दिनों में काफी तनावपूर्ण हो गए हैं, जिसकी प्रमुख वजह कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का पाकिस्तान-समर्थक रुख और ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ा टकराव है. तुर्की धार्मिक सॉफ्ट पावर और छात्रवृत्ति कार्यक्रमों के जरिए भारतीय मुस्लिम युवाओं को प्रभावित करता रहा है. राजनीतिक मतभेदों का असर अब व्यापार पर भी दिख रहा है, और भारत ने तुर्की की कुछ कंपनियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है.

अंकारा से अजमेर तक: तुर्की की सूफी डिप्लोमेसी का भारत में बढ़ता असर
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सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 17 May 2025 3:06 PM

Turkey Sufi diplomacy in India: भारत और तुर्की के संबंध बीते कुछ दिनों में काफी तनावपूर्ण हो गया है जिसका कारण उसका पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का साथ देना. हालांकि दोनों देश के संबंध पहले ठीक थे और जब तुर्की में भूकंप आया था तब सबसे पहले भारत ने सबसे पहले मदद की थी. वही पाकिस्‍तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के बाद तो हालात और बेकाबू होते दिख रहे हैं. भारत में Boycott Turkey ट्रेंड कर रहा है और पर्यटक और व्‍यापारी जमकर तुर्की का विरोध कर रहे हैं. मौजूदा परिस्थितियों में इन तनावों की जड़ें राजनीतिक बयानबाज़ी, कश्मीर मुद्दे पर तुर्की के पक्षपातपूर्ण रुख, और वैश्विक मंचों पर भारत विरोधी रुख अपनाने में छिपी हैं. इस बीच तुर्की की धार्मिक सॉफ्ट पावर नीति की चर्चा करना जरूरी हो जाता है जिसके जरिए वो भारत के मुसलमानों को आकर्षित करने में लगा रहता है.

तुर्की की धार्मिक सॉफ्ट पावर की नीति

तुर्की सरकार, विशेष रूप से राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन के नेतृत्व में, पिछले कुछ वर्षों में अपनी विदेश नीति में 'धार्मिक सॉफ्ट पावर' का सक्रिय उपयोग कर रही है. इसका उद्देश्य तुर्की को एक वैश्विक इस्लामी नेता के रूप में प्रस्तुत करना है, जो मुस्लिम समुदायों के साथ सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को मजबूत करता है.

Diyanet स्कॉलरशिप्स: भारत सहित 112 देशों में विस्तार

तुर्की की Diyanet Foundation (TDV) ने "इंटरनेशनल इस्लामिक साइंसेज स्कॉलरशिप प्रोग्राम" के तहत 112 देशों के छात्रों को तुर्की में इस्लामी अध्ययन के लिए पूर्ण वित्तपोषित छात्रवृत्तियां प्रदान की हैं. इसमें भारत के छात्र भी बड़ी संख्‍या में शामिल हैं. इन छात्रवृत्तियों में ट्यूशन फीस, आवास, स्वास्थ्य बीमा और यात्रा व्यय शामिल हैं. चयन प्रक्रिया में कुरान का पाठ, ताजवीद, इस्लामी ज्ञान, सामान्य संस्कृति और भाषा कौशल का मूल्यांकन किया जाता है. 2019 में Diyanet का बजट €1.7 बिलियन था, जो तुर्की के अधिकांश सरकारी मंत्रालयों से अधिक है. वहीं Diyanet की 145 देशों में उपस्थिति है, जहां यह शैक्षिक, सांस्कृतिक और धर्मार्थ गतिविधियां संचालित करता है.

साल में कितने छात्र तुर्की पढ़ाई के लिए जाते हैं

रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में तुर्की में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की संख्या को लेकर विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों में अंतर देखा गया है. 2022 की बात करें तो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अनुसार, तुर्की में 193 भारतीय छात्र अध्ययनरत थे. 2022-23 शैक्षणिक वर्ष में: एक रिपोर्ट में बताया गया कि तुर्की में 549 भारतीय छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे. 2024 में, एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, तुर्की में 327 भारतीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि तुर्की में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की संख्या में समय के साथ वृद्धि हो रही है, हालांकि विभिन्न स्रोतों में भिन्नता के कारण सटीक संख्या निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है.

सूफीवाद और सांस्कृतिक कूटनीति

तुर्की, सूफीवाद के माध्यम से भी अपनी सॉफ्ट पावर का विस्तार कर रहा है. सूफीवाद की शिक्षाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से, तुर्की मुस्लिम युवाओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हों. अब बात करते हैं भारत और तुर्की के संबंधों की जो पिछले कई सालों से एक तरह से तनावपूर्ण ही चल रहे हैं और नजर डालते हैं उन कुछ वजहों जो इस‍के लिए जिम्‍मेदार हैं.

कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की आलोचना

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने कई बार संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना की है. उन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होकर भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया, जिसे भारत ने 'गंभीर चिंता' और 'अस्वीकार्य' बताया. भारत हमेशा यह स्पष्ट करता रहा है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है.

पाकिस्तान से तुर्की की नजदीकियां

तुर्की ने पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के साथ सैन्य और कूटनीतिक संबंध मज़बूत किए हैं. दोनों देश मिलकर कई बार भारत के खिलाफ संयुक्त बयान भी दे चुके हैं. रक्षा क्षेत्र में सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास और इस्लामी एकता के नाम पर भारत को निशाना बनाना, भारत-तुर्की संबंधों में दरार की बड़ी वजह बना है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत पर हमला करने के लिए पाकिस्‍तान द्वारा जमकर तुर्की के ड्रोन का इस्‍तेमाल करने के बाद दोनों देशों के बीच की खाई और बड़ी हो गई है.

भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक संबंध पहले अपेक्षाकृत अच्छे रहे हैं, लेकिन राजनीतिक तनावों का असर पिछले कुछ समय से आर्थिक रिश्तों पर भी दिखने लगा, जो कि मौजूदा भारत-पाक जंग के बाद और बढ़ने जा रहा है क्‍योंकि भारत ने तुर्की की कंपिनयों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है. सेलेबी जैसी कंपनी जो कि हवाई अड्डों पर ग्राउंड ऑपरेशन का काम देखती है, भारत ने उसका लाइसेंस कैंसिल कर दिया है. इस‍के अलावा भी कई कदम उठाने की तैयारी है क्‍योंकि तुर्की की कंपनियां भारत में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रही हैं.

भारत और तुर्की दोनों के पास अपनी-अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं. एर्दोगन की 'नव-ओटोमन नीति' और मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने की उनकी कोशिश भारत के बहुलतावादी और गैर-हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण से टकराती है. वहीं, भारत अब तुर्की की तुलना में मध्य-पूर्व के अधिक स्थिर और व्यावहारिक साझेदारों जैसे सऊदी अरब, UAE और इज़राइल के साथ संबंध मजबूत कर रहा है.

भारत और तुर्की के मौजूदा तनाव बहुपक्षीय मंचों, वैचारिक मतभेदों और रणनीतिक गठबंधनों के टकराव का परिणाम हैं. जब तक तुर्की भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहेगा और पाकिस्तान के साथ भारत विरोधी रुख अपनाता रहेगा, तब तक संबंधों में सुधार की गुंजाइश सीमित रहेगी. भविष्य में संबंधों की दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि तुर्की अपने रुख में कितना संतुलन लाता है और क्या दोनों देश अपने भिन्न दृष्टिकोण के बावजूद साझा हितों पर काम करने को तैयार होते हैं.

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