‘सब बदल गया...' 22 साल की उम्र से विदेश में फंसा रहा केरल का शख्स, 42 साल बाद भारत में वापसी
साल 2020 में, एक झगड़े के बाद पुलिस ने चंद्रन को हिरासत में लिया. इसी घटना ने उसकी दशकों की गुमनामी को खत्म किया. जब प्रवासी लीगल सेल के बहरीन चैप्टर के अध्यक्ष सुधीर थिरुनीलथ को इस मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने चंद्रन के जीवन की गुत्थी सुलझाने की ठानी.

आज के समय में एक आम इंसान महीनों तक अपने घर से दूर भी नहीं रह सकता, लेकिन एक शख्स जो अपने घर लिए बाहर देश कमाने निकला और 42 साल बाद भारत में अपने घर में वापसी की. 42 साल कुछ कम नहीं होते ऐसा कुछ है हुआ तिरुवनंतपुरम के एक शख्स के साथ जो सालों बाद अपने घर लौटा है. चंद्रन की यह यात्रा सिर्फ एक आदमी की नहीं है. यह उम्मीद, धैर्य, और सामुदायिक सहयोग की अद्भुत मिसाल है. अंधेरे में भटकते हुए भी, किसी को उम्मीद की एक रौशनी मिल ही जाती है.
साल 1983 था, तिरुवनंतपुरम के 22 साल के चंद्रन गोपालन ने एक सपना देखा था. खाड़ी देश बहरीन में मेहनत से कमाकर एक बेहतर ज़िंदगी बनाने का. राजमिस्त्री की नौकरी हाथ लगी, और वो उम्मीदों से भरे दिल के साथ बहरीन रवाना हो गए. लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था, बहरीन पहुंचाने के तीन साल बाद, अचानक उसे काम पर लगाने वाले शख्स की मौत हो गई. इस घटना के साथ ही चंद्रन की जिंदगी पटरी से उतर गई. जब उसका पासपोर्ट, पहचान पत्र और बाकी सभी जरूरी दस्तावेज खो गए. देखते ही देखते, वो बहरीन की ज़मीन पर एक 'अवैध अप्रवासी' बन गया, जिसकी कोई पहचान नहीं थी, कोई ठिकाना नहीं था.
एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा
चंद्रन का जीवन अब कानून से छिपने का नाम बन चुका था. चंद्रन पेंटर का काम करते हुए, एक जगह से दूसरी जगह भटकता रहा. मनामा के बाहरी इलाकों में वह गुमनाम ज़िंदगी जीता रहा, न अपने देश से कोई संपर्क, न अपने परिवार से कोई ख़बर. शुरू-शुरू में कुछ चिट्ठियां भेजी थीं, लेकिन समय के साथ दोनों ओर से बातचीत बंद हो गई.
मां की अपील से पिघला दिल
साल 2020 में, एक झगड़े के बाद पुलिस ने चंद्रन को हिरासत में लिया. इसी घटना ने उसकी दशकों की गुमनामी को खत्म किया. जब प्रवासी लीगल सेल के बहरीन चैप्टर के अध्यक्ष सुधीर थिरुनीलथ को इस मामले की जानकारी मिली, तो उन्होंने चंद्रन के जीवन की गुत्थी सुलझाने की ठानी. दस्तावेज़ों के बिना उसका देश से निकलना आसान नहीं था. लेकिन इसी दौरान एक चमत्कार हुआ. मलयालम चैनल कैराली टीवी के पॉपुलर शो 'प्रवासलोकम' में चंद्रन की 95 साल की मां संचलक्षी की भावुक अपील दिखाई गई. टीवी पर अपनी मां को देख, चंद्रन की आंखों में सालों पुरानी एक इच्छा फिर से जाग उठी, घर लौटने की.
मैं खाली हाथ लौटा हूं
इसके बाद मानो पूरी कायनात उसके साथ हो चली. प्रवासी लीगल सेल, इंडियन एम्बेसी और बहरीन के इंटीरियर मिनिस्ट्री के सहयोग से एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हुई. परिवार से संपर्क कर दस्तावेज जुटाए गए और अंत में 42 साल बाद 2025 की एक सुबह चंद्रन गोपालन भारत में घर वापसी की. सालों बाद लौटने के बाद उन्होंने कहा, 'मैं खाली हाथ लौटा हूं. यहां तक कि टिकट का इंतजाम भी इंडियन एम्बेसी ने किया था. बस यही राहत है कि मैं अपनी मां को देख सका.'
यहां की दुनिया अजनबी है
42 साल बाद लौटने के बाद चंदन का कहना है कि अब 64 साल के हो चुके चंद्रन का शरीर थका हुआ है, और ज़िंदगी में न कोई ठिकाना है, न कोई योजना। स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा, और यहां की दुनिया मेरे लिए अजनबी बन चुकी है. अगर बाहर गया, तो शायद रास्ता भी न समझ पाऊं। आज वह अपने बड़े भाई मोहनन के परिवार के साथ रह रहे है. मोहनन के दामाद सुरेश बताते हैं, 'हमने चंद्रन जी को ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला. उसे देखकर आज भी विश्वास नहीं होता कि वो सचमुच लौट आए है.'