डॉक्टर से बने IPS... कौन हैं जीवी संदीप चक्रवर्ती जिन्होंने दिल्ली ब्लास्ट से पहले पकड़ी आतंक की नब्ज़?
दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके ने देश को दहला दिया, लेकिन इस हमले से पहले एक आईपीएस अधिकारी ने वह कर दिखाया जो किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं था. डॉक्टर से बने आईपीएस जीवी संदीप चक्रवर्ती ने अपनी सूझबूझ से जैश-ए-मोहम्मद के टेरर मॉड्यूल का पर्दाफाश किया. फरीदाबाद से 2921 किलो विस्फोटक और कई हथियार बरामद हुए. कैसे एक छोटे से पोस्टर ने आतंक की बड़ी साजिश का खुलासा किया. पढ़िए इस साहसी पुलिस अधिकारी की पूरी कहानी.
दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट ने पूरे देश को झकझोर दिया. राजधानी के हृदय में हुए इस धमाके ने न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, बल्कि इसके पीछे छिपे आतंकी नेटवर्क को भी उजागर किया. शुरुआत में यह एक सामान्य घटना लग रही थी, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी, तो सामने आया कि यह ब्लास्ट ‘डॉक्टरों के टेरर मॉड्यूल’ की देन था. एक ऐसा मॉड्यूल, जहां सफेद कोट के पीछे छिपे आतंकवादी देश की नसों में जहर घोलने की तैयारी कर रहे थे.
और इस पूरे मामले की जड़ तक पहुंचने का श्रेय जाता है आईपीएस डॉ. जीवी संदीप चक्रवर्ती को. एक ऐसे अधिकारी को, जो खुद भी डॉक्टर रह चुके हैं और जिन्होंने अपने मेडिकल ज्ञान को सुरक्षा की ढाल बना दिया. उनके नेतृत्व और तत्परता ने न सिर्फ दिल्ली, बल्कि पूरे उत्तर भारत को एक संभावित बड़े हमले से बचा लिया.
कौन हैं डॉ. जीवी संदीप चक्रवर्ती?
आंध्र प्रदेश के कुरनूल में जन्मे डॉ. जीवी संदीप चक्रवर्ती के पिता डॉक्टर थे, और उन्होंने भी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर समाजसेवा की राह चुनी. 2014 में वे भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए. डॉक्टर से पुलिस अधिकारी बने संदीप ने अपने मेडिकल बैकग्राउंड का इस्तेमाल आतंकवाद विरोधी अभियानों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किया. उन्होंने “ऑपरेशन महादेव” और “ऑपरेशन नॉर्दर्न क्लीनअप” जैसे अभियानों में भी अहम भूमिका निभाई थी.
छह बार राष्ट्रपति वीरता पदक
उनके साहसिक अभियानों और तीव्र निर्णय क्षमता के लिए उन्हें अब तक छह बार राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक और चार बार जम्मू-कश्मीर पुलिस वीरता पदक मिल चुके हैं. सहकर्मी उन्हें “ऑपरेशन स्पेशलिस्ट” कहते हैं क्योंकि वे हर मिशन को रणनीति, विज्ञान और मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ते हैं.
भारत ने पाया नया हीरो
आज दिल्ली, फरीदाबाद और कश्मीर के लोग उन्हें “डॉक्टर आईपीएस” कहकर सम्मान देते हैं. न्होंने न केवल एक बड़े आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि जब एक डॉक्टर हथियार नहीं, बुद्धि उठाता है तो देश की धड़कनें सुरक्षित हो जाती हैं.
एक मामूली पोस्टर से खुली बड़ी साजिश
17 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के नौगाम में उर्दू में लिखे कुछ पोस्टर लगाए गए. उन पर जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी कमांडर “हंजला भाई” के हस्ताक्षर थे. अधिकतर लोग इसे आम धमकी समझकर नजरअंदाज कर देते, लेकिन श्रीनगर के एसएसपी डॉ. संदीप चक्रवर्ती ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने महसूस किया कि यह महज़ चेतावनी नहीं, बल्कि कुछ बड़ा शुरू होने वाला संकेत है.
उन्होंने तत्काल जांच का आदेश दिया, और सीसीटीवी फुटेज खंगालते हुए तीन संदिग्ध युवकों की पहचान की. ये वही थे, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले कश्मीर में पत्थरबाज़ी की थी. यहीं से एक ऐसे नेटवर्क की परतें खुलनी शुरू हुईं, जो कश्मीर से लेकर दिल्ली तक फैला था.
डॉक्टरों का टेरर नेटवर्क उजागर
जांच के दौरान सामने आया कि कुछ डॉक्टर, जो खुद को समाजसेवी बताते थे, दरअसल जैश-ए-मोहम्मद के sleeper cells के रूप में काम कर रहे थे. ये डॉक्टर आतंकियों के इलाज, फंडिंग और भर्ती का गुप्त नेटवर्क चला रहे थे. डॉ. संदीप के नेतृत्व में छापेमारी की गई. परिणाम चौंकाने वाला था. करीब 2,900 किलोग्राम विस्फोटक, बम बनाने की सामग्री और AK सीरीज़ की राइफलें फरीदाबाद से बरामद हुईं. इस पूरे नेटवर्क को नाम दिया गया- “व्हाइट कोट टेरर मॉड्यूल”.
फरीदाबाद में ‘डॉ. उमर’ का ब्लास्ट कनेक्शन
दिल्ली ब्लास्ट से कुछ घंटे पहले फरीदाबाद से भागे डॉक्टर उमर ने लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास कार में धमाका कर दिया. जांच में पाया गया कि फरीदाबाद से जब भारी विस्फोटक जब्त हुए, तब उमर भयभीत होकर जल्दबाज़ी में हमला करने निकल पड़ा था. वह इस मॉड्यूल का सक्रिय सदस्य था, जो जैश की महिला कमांडर डॉ. शाहीन सईद के संपर्क में था. ब्लास्ट के तीसरे दिन तक घटनास्थल से शवों के टुकड़े और सबूत मिलते रहे जिसने पूरे देश को हिला दिया.
कैसे एक ‘पोस्टर केस’ बना मल्टी-स्टेट ऑपरेशन?
नौगाम में शुरू हुआ एक छोटा-सा केस अब भारत के तीन राज्यों में फैले इंटरस्टेट नेटवर्क तक जा पहुंचा. डॉ. संदीप ने जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ समन्वय किया. सहारनपुर, हापुड़ और फरीदाबाद में एक साथ छापेमार कार्रवाई की गई. इन छापों के दौरान डॉ. शाहीन, डॉ. मुज़म्मिल और डॉ. आदिल राठर जैसे आरोपी डॉक्टर गिरफ्तार हुए. सभी चिकित्सा पेशे का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने के लिए कर रहे थे.
उनकी थ्योरी ने बचाई लाखों जानें
डॉ. संदीप का मानना है कि “कभी भी छोटी धमकी को छोटा मत समझो.” जैश के पोस्टरों की जांच भी इसी सोच से शुरू हुई थी. यही सतर्कता एक विशाल आतंकी जाल तक पहुंची. अगर उन्होंने उस वक्त नौगाम पोस्टर को मामूली समझ लिया होता, तो आज शायद दिल्ली में कई और विस्फोट हो चुके होते.
सबक देने वाला ब्लास्ट
लाल किला ब्लास्ट ने एक बार फिर यह सिखाया कि आतंक का चेहरा बदल रहा है. अब बम बंदूक नहीं, बल्कि डिग्री और लैब कोट के पीछे छिपा हुआ है. डॉ. संदीप की टीम ने दिखा दिया कि चौकन्नापन, वैज्ञानिक जांच और साहस मिलकर किसी भी आतंक को मात दे सकते हैं.





