ब्लास्ट होने वाली कार में बैठा था आतंकी उमर नबी, DNA मां-भाई से हुआ मैच; तुर्की से कैसे चल रहा था ऑपरेशन ‘UKasa’?
दिल्ली ब्लास्ट केस में बड़ा खुलासा हुआ है. जांच में साबित हुआ कि i20 कार चला रहा आतंकी उमर नबी ही धमाके का असली मास्टरमाइंड था. उसके अवशेषों से मिला डीएनए 100% मैच हुआ है. सूत्रों के मुताबिक उमर तुर्की के अंकारा में बैठे अपने हैंडलर ‘UKasa’ से संपर्क में था और सेशन ऐप के जरिए आदेश लेता था. यह आतंकी नेटवर्क फरीदाबाद के अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ा था, जहां डॉक्टरों और छात्रों को चरमपंथी बनाया जा रहा था. एनआईए अब तुर्की कनेक्शन और विदेशी फंडिंग की जांच कर रही है. यह मामला भारत में आतंकी नेटवर्क के डिजिटल खतरे को उजागर करता है.
दिल्ली में हुए हालिया धमाके ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. लेकिन अब इस गुत्थी का सिरा आखिरकार जांच एजेंसियों के हाथ लग गया है. फोरेंसिक और डीएनए रिपोर्ट ने पुष्टि कर दी है कि धमाके को अंजाम देने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि उमर नबी ही था, जो फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल से जुड़ा हुआ था.
दिल्ली पुलिस ने बताया कि उमर नबी उस i20 कार को चला रहा था जिसमें विस्फोट हुआ था. उसके अवशेषों हड्डियों, दांतों और कपड़ों के टुकड़ों से लिए गए डीएनए सैंपल उसकी मां और भाई से 100% मैच हुए हैं. यह एक ऐसा प्रमाण है जिसने पूरे आतंकी नेटवर्क की सच्चाई उजागर कर दी.
हैंडलर का कोडनेम ‘UKasa’
सूत्रों के अनुसार, उमर अपने विदेशी हैंडलर से ‘सेशन ऐप’ के जरिए संपर्क में था. यह हैंडलर तुर्की के अंकारा में बैठा था और उसका कोडनेम ‘UKasa’ बताया गया है. जांच एजेंसियों का मानना है कि इसी हैंडलर ने भारत में धमाका करने के आदेश दिए थे. मार्च 2022 में भारत से कुछ लोग अंकारा गए थे. संदेह है कि उनमें उमर और फरीदाबाद मॉड्यूल के अन्य आरोपी भी शामिल थे. वहीं इन लोगों को जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षकों ने ब्रेनवॉश किया और वापस भेजा गया ताकि वे भारत में नेटवर्क खड़ा कर सकें.
रहस्य से भरी थी उमर की ज़िंदगी
परिवार और पड़ोसियों के मुताबिक, उमर नबी का जीवन रहस्यमय था. वह महीनों तक घर से गायब रहता, फोन बंद रखता और परिवार से दूरी बनाए रखता था. वह हमेशा यही कहता था कि “मैं जरूरी काम कर रहा हूं, डिस्टर्ब मत करो.”
परिवार का दावा है कि उमर शांत, पढ़ाकू और बच्चों से बेहद लगाव रखने वाला युवक था. उसे क्रिकेट का शौक था और हर बार घर आने पर वह बच्चों के साथ खेलता था. लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह सादा दिखने वाला युवक आतंकी रास्ते पर निकल चुका है.
ब्लास्ट से पहले 3 घंटे पार्किंग में था
जांच में खुलासा हुआ कि धमाके से पहले उमर लाल किला की पार्किंग में तीन घंटे तक मौजूद रहा. वह 3:19 बजे पार्किंग में दाखिल हुआ और 6:28 बजे बाहर निकला. इसके कुछ ही मिनट बाद धमाका हुआ. इस दौरान उसने न तो कार छोड़ी, न ही बाहर निकला. इससे स्पष्ट है कि ब्लास्ट को रिमोट या टाइमर से अंजाम दिया गया. इसके पहले उमर कमला मार्केट की एक मस्जिद में भी गया था और करीब 10 मिनट वहां रुका था. जांच एजेंसियां इस बात की भी तहकीकात कर रही हैं कि क्या उसे वहां से अंतिम निर्देश मिले थे.
NIA की जांच में विदेशी कनेक्शन पर फोकस
एनआईए अब तुर्की के दूतावास से औपचारिक सहयोग मांगने की तैयारी में है. एजेंसियों को शक है कि उमर के अंकारा में मौजूद नेटवर्क के जरिए भारत में कई जगहों पर स्लीपर सेल सक्रिय किए गए हैं. जांचकर्ताओं ने उमर के लैपटॉप, फोन और क्लाउड डेटा से कुछ ऐसे डिजिटल फाइल्स बरामद किए हैं जो एन्क्रिप्टेड थे और ‘JAM-TK2025’ नामक फोल्डर में सेव थे. माना जा रहा है कि यही इस आतंकी मिशन का कोडनेम था.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी बनी जांच का नया केंद्र
फरीदाबाद में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी अब जांच के घेरे में है. एनआईए और दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने यूनिवर्सिटी से डॉ. उमर, डॉ. मुजम्मिल और डॉ. शाहीन शाहिदा से जुड़े सभी दस्तावेज मांगे हैं. एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी से जमीन के कागज़ात, बिल्डिंग प्लान, NOC, मेडिकल काउंसिल से जुड़े दस्तावेज और UGC अनुमतियां मांगी हैं. जांच का केंद्र यह पता लगाना है कि कहीं यूनिवर्सिटी को आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग तो नहीं मिली.
आतंकी नेटवर्क का शैक्षणिक चेहरा
इंटेलिजेंस सूत्र बताते हैं कि फरीदाबाद मॉड्यूल को एक “बौद्धिक आतंक नेटवर्क” की तरह विकसित किया जा रहा था, जहां डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों को धीरे-धीरे जिहादी विचारधारा में ढाला जा रहा था. उमर नबी, डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन सईद जैसे शिक्षित चेहरे इस मॉड्यूल की विश्वसनीयता बढ़ाने का काम कर रहे थे ताकि कोई शक न करे. यह एक “ब्रेनवॉश विद एजुकेशन” मॉडल था, जो अब बेनकाब हो चुका है.
दिल्ली धमाके ने खोले आतंक के नए रास्ते
यह मामला सिर्फ एक धमाका नहीं, बल्कि उस खतरनाक नेटवर्क की झलक है जो देश के अंदर गहराई तक पैठ बना चुका है. उमर नबी का केस इस बात का सबूत है कि आतंक अब सिर्फ बंदूक या सीमा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि डिजिटल और मानसिक दोनों मोर्चों पर सक्रिय है. एनआईए की जांच ने साफ किया है कि अगर यह मॉड्यूल कुछ और महीने सक्रिय रहता, तो देश कई बड़े हमलों का सामना कर सकता था.





