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परिसीमन के खिलाफ 'लट्ठ लेकर' क्‍यों खड़े हैं दक्षिण के राज्‍य, किस प्रदेश में बढ़ जाएंगी कितनी सीटें? - Explained

परिसीमन को लेकर बवाल मचा हुई है. दक्षिण भारत के राज्यों का कहना है कि परिसीमन से उनकी लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी. उन्हें जनसंख्या नियंत्रण का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि परिसीमन से दक्षिण के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी. आइए, जानते हैं कि परिसीमन क्या होता है और इससे दक्षिण में क्या बदलाव आएगा...

परिसीमन के खिलाफ लट्ठ लेकर क्‍यों खड़े हैं दक्षिण के राज्‍य, किस प्रदेश में बढ़ जाएंगी कितनी सीटें? - Explained
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Delimitation Controversy: साल 2001 में केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने परिसीमन को 25 साल के लिए टाल दिया था. यह समय 2026 में पूरा हो जाएगा. ऐसे में परिसीमन को लेकर चर्चाएं जोर पकड़ने लगी हैं. दक्षिण भारत के राज्यों ने परिसीमन में लोकसभा सीटें कम होने का अंदेशा व्यक्त किया है.

परिसीमन लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण करने की प्रक्रिया है. इसका मकसद जनसंख्या के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व समान और निष्पक्ष रखना है. इसके साथ ही, यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को संसद और विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व मिले.

दक्षिणी राज्यों की क्या है आपत्ति?

दक्षिणी राज्यों का कहना है कि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में सफलतापूर्वक काम किया है. इससे उनकी जनसंख्या वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम है. उनको चिंता है कि यदि परिसीमन केवल जनसंख्या के आधार पर किया जाता है तो उत्तर भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें बढ़ सकती है, जबकि दक्षिणी राज्यों की सीटें स्थिर रह सकती हैं या कम हो सकती हैं.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने आशंका जताई है कि उनके राज्य की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 हो सकती हैं. कर्नाटक के कांग्रेस सांसद प्रियांक खड़गे ने भी कहा है कि अगर सिर्फ जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो दक्षिण भारत के लोगों को अच्छे नागरिक होने की सज़ा मिलेगी.

संविधान का अनुच्छेद 81 (2) क्या कहता है?

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 81(2) के मुताबिक, किसी राज्य की जनसंख्या और उसके संसदों संख्या के बीच का अनुपात सभी प्रदेशों के लिए समान रहेगा. यही वजह है कि जिन राज्यों की जनसंख्या अधिक है, वहां ज्यादा सांसद हैं. वहीं, जिनकी कम जनसंख्या है, वहां कम सांसद हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल करीब देश की आधी जनसंख्या (48.6 प्रतिशत) का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर जनसंख्या के आधार पर सीटें बढ़ाई गई तो भारत की आधी लोकसभा सीटें इन्हीं पांच राज्यों में होंगी. इससे दक्षिण के राज्य पीछे रह जाएंगे, क्योंकि वहां जनसंख्या कम है.

परिसीमन में कितनी सीटें बढ़ सकती हैं?

यदि परिसीमन के दौरान प्रति लोकसभा सीट पर 20 लाख की जनसंख्या का मानक अपनाया जाता है, तो सीटों की कुल संख्या 543 से बढ़कर 707 हो सकती है. इससे उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 126, और बिहार की 40 से बढ़कर 70 हो सकती हैं, जबकि तमिलनाडु की सीटें 39 से बढ़कर केवल 41 और केरल की 20 से घटकर 18 हो सकती हैं.

दक्षिण के 5 राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें

बता दें कि इस समय दक्षिण भारत के 5 राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक , तमिलनाडु में लोकसभा की 129 सीटें हैं. परिसीमन के बाद इनकी संख्या बढ़कर 144 हो सकती है, लेकिन लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा. दक्षिण के राज्यों को डर है कि परिसीमन के बाद उत्तर भारत के राज्यों की सीटें बढ़ जाएंगी, जिससे सरकार उन पर ज्यादा फोकस करेगी.

तमिलनाडु और कर्नाटक से केंद्र को जो टैक्स मिलता है, उसका 30 फीसदी ही इन पर खर्च होता है. वहीं, उत्तर और बिहार जितना टैक्स देते हैं, उससे ज्यादा उन्हें मिलता है. कहा तो यह भी जाता है कि दक्षिण भारत में बीजेपी की स्थिति कमजोर है. अगर उत्तर भारत में सीटें बढ़ती है तो उसे दक्षिण के राज्यों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. उसकी ताकत बढ़ जाएगी. ऐसे में दक्षिण के क्षेत्रीय दलों का राजनीति में प्रभुत्व लगभग खत्म हो जाएगा.

केंद्र सरकार ने परिसीमन पर क्या कहा?

दक्षिणी राज्यों की चिंताओं पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया के बाद दक्षिण भारत के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि परिसीमन के बाद भी दक्षिण भारत के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी.

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