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'आज प्रधानमंत्री किसी गड्ढे में अपनी गिरी हुई प्रतिष्ठा ढूंढ रहे हैं', रुपये ने लगाया गोता तो कांग्रेस को मिला 'मौका मौका'

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के रिकॉर्ड गिरकर ₹90 पार पहुंचने के बाद राजनीतिक घमासान तेज हो गया है. कांग्रेस ने पीएम मोदी के पुराने वीडियो शेयर कर हमला बोला है जिसमें वह रुपये की गिरावट को मनमोहन सिंह सरकार की “नाकामी और गिरी हुई प्रतिष्ठा” से जोड़ते नजर आते हैं. विपक्ष का आरोप है कि 2014 में रुपया ₹58 से ₹59 पर था, लेकिन मोदी सरकार के दौर में यह ₹90 से ऊपर पहुंच चुका है - ऐसे में “पुराने तंज लौटकर आज पीएम पर ही सवाल बनकर आए हैं.”

आज प्रधानमंत्री किसी गड्ढे में अपनी गिरी हुई प्रतिष्ठा ढूंढ रहे हैं, रुपये ने लगाया गोता तो कांग्रेस को मिला मौका मौका
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प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 3 Dec 2025 6:14 PM

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में गिरावट की खबर से आम आदमी को शायद ही कोई फर्क पड़ता हो. पिछले काफी समय से रुपये में गिरावट का दौर जारी है और आए दिन इसके नए रिकॉर्ड बनते रहते हैं. बुधवार 3 दिसंबर को तो रुपये ने गिरावट का नया रिकॉर्ड ही बना डाला जब एक डॉलर की कीमत 90 रुपये से भी ज्‍यादा हो गई. लेकिन रुकिए, खबर ये नहीं है, बल्कि रुपये की इस गिरावट ने मोदी विरोधियों के हाथ में जैसे मानो ब्रह्मास्‍त्र पकड़ा दिया हो. सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के कई पुराने वीडियो शेयर किए जाने लगे जिसमें वो रुपये की गिरावट को लेकर मनमोहन सिंह सरकार को घेरते हुए नजर आ रहे हैं. ये वीडियो तब के है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्‍यमंत्री हुआ करते थे और केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व में यूपीए की सरकार हुआ करती थी.

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कभी रुपये की गिरावट को “प्रधानमंत्री की गिरी हुई प्रतिष्ठा” से जोड़कर तंज कसने वाले मोदी आज उसी बयानबाजी के बोझ तले खुद घिर गए हैं. 2014 में जब डॉलर के मुकाबले रुपया 58.86 पर था, तब सत्ता में आए मोदी ने आज इसे ₹90 के पार पहुंचा दिया है - और विपक्ष का कहना है कि रुपया नहीं, प्रधानमंत्री की साख गहरी खाई में जा गिरी है.

पुराने वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी रुपये की कमजोरी को लेकर मनमोहन सिंह सरकार पर बेहद आक्रामक तरीके से हमले करते थे. उन वीडियो क्लिप्स में वह कहते दिखते हैं - “रुपया गिरता जा रहा है और सरकार सोई पड़ी है”, “रुपया गिरना मतलब सरकार की प्रतिष्ठा गिरना” और “अगर रुपये को नहीं संभाल सके तो देश कैसे संभालेंगे?” इन बयानों में रुपये की कमजोरी को सरकारी अक्षमता, आर्थिक कुप्रबंधन और नेतृत्व की विफलता से सीधे जोड़कर पेश किया गया था. यही वजह है कि आज, जब रुपया ऐतिहासिक स्तर पर कमजोर हो गया है, वे पुराने वीडियो सोशल मीडिया पर सबसे बड़ा ट्रोलिंग हथियार बन चुके हैं.

अब विपक्ष मोदी पर उन्हीं बयानों के आधार पर तीखा हमला कर रहा है. तुलना सामने रखी जा रही है कि 2013 में जब डॉलर ₹60–₹62 के बीच था तो मोदी ने इसे राष्ट्रीय शर्म बताया था, 2014 में सत्ता परिवर्तन के समय डॉलर ₹58–₹59 के आसपास था, लेकिन 2025 में यही डॉलर ₹90 से ऊपर पहुंच चुका है. विपक्ष सवाल खड़ा कर रहा है - जब ₹60 पर रुपये की गिरावट सरकार की नाकामी थी, तो अब ₹90 पर इसे क्या कहा जाए? अगर पुराने भाषणों में “रुपये का गिरना = सरकार की नाकामी” था, तो आज रुपये की कमजोरी का राजनीतिक अर्थ क्या है और जवाबदेही किसकी है?

रुपये की गिरावट से आपको क्यों परेशान होना चाहिए?

यह मुद्दा सिर्फ शेयर बाजार, फॉरेक्स ट्रेडर्स या अर्थशास्त्रियों का नहीं रह गया है. कमजोर रुपया अब सीधे हर घर तक पहुंच चुका है - ईंधन के बिल से लेकर बच्चों की ट्यूशन फीस, विदेश यात्राओं से लेकर मिडिल क्लास के EMIs तक. भारत 90% कच्चा तेल, और इलेक्ट्रॉनिक्स, उर्वरक, मोबाइल फोन, एडिबल ऑयल जैसे कई जरूरी सामान आयात करता है. जितना कमजोर रुपया होगा, उतना महंगा आम जीवन.

रुपया अचानक इतना नीचे क्यों गया?

रुपये के गिरने के पीछे तीन बड़े कारण माने जा सकते हैं.

  • अमेरिका से व्यापार तनाव बढ़ना : दोनों देशों के बीच हालिया ट्रेड नेगोशिएशंस असफल रहे और अमेरिकी टैरिफ कई भारतीय निर्यात उत्पादों पर 50% तक बढ़ गए जिसकी वजह से कारोबारियों का भरोसा हिल गया.
  • विदेशी निवेशकों की बड़ी बिकवाली : महंगाई और GDP ग्रोथ स्थिर रहने के बावजूद 2025 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से लगभग 17 अरब डॉलर निकाल लिए.
  • RBI की नई नीति : IMF ने भारत की मुद्रा व्यवस्था को "Stabilized" से "Crawl-like" कैटेगरी में रखा है. मतलब अब RBI रुपये को हर हालत में बचाने नहीं, बल्कि इसे अपने वास्तविक स्तर पर आने देने की नीति अपना रहा है.

क्या यह गिरावट 2013 या 2018 जैसे संकट की शुरुआत है?

इसका जवाब सीधे हां या नहीं में नहीं दिया जा सकता, क्योंकि तस्वीर दो हिस्सों में बंटी हुई है. संकट अभी तुरंत सिर पर नहीं मंडरा रहा, क्योंकि 2022 की तरह डॉलर की वैश्विक आक्रामक मजबूती इस बार गिरावट का कारण नहीं है - रुपया खुद कमजोर हुआ है. साथ ही, आरबीआई के पास लगभग 690 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है, जो किसी तत्काल आर्थिक आपातकाल की आशंका को काफी हद तक खत्म करता है. लेकिन दूसरी ओर, चिंता की वजह भी उतनी ही वाजिब है, क्योंकि आरबीआई रुपये को बचाने के लिए आक्रामक हस्तक्षेप नहीं कर रहा, बल्कि “लॉन्ग-टर्म स्टेबिलाइजेशन” रणनीति अपना रहा है - यानी नियंत्रित, धीमी गिरावट को स्वाभाविक रूप से होने दिया जा रहा है. क्रेडिट एग्रीकोल के अर्थशास्त्री डेविड फॉरेस्टर के शब्दों में, “RBI फिलहाल रुपये को थोड़ा कमजोर रहने दे रहा है ताकि US टैरिफ के बीच भारतीय निर्यात ज्यादा प्रतिस्पर्धी रहे.” यानी अलार्म अभी नहीं बजा, लेकिन गिरावट पूरी तरह बेगुनाह भी नहीं - यह सोची-समझी नीति भी है और अप्रत्यक्ष जोखिम भी.

आपकी जेब पर सीधा असर

गिरता रुपया अब सिर्फ आर्थिक आंकड़ा नहीं, भारतीय परिवारों की जेब पर सीधा दबाव बन चुका है. तेल और ऊर्जा क्षेत्र में पेट्रोल, LPG और बिजली बिल बढ़ने तय हैं; दालें और कुकिंग ऑयल जैसे आयात-निर्भर सामानों के महंगे होने से रोजमर्रा की चीजें महंगी पड़ेंगी; वहीं मोबाइल, लैपटॉप और होम अप्लायंसेस की कीमतों में तेज बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. विदेश में पढ़ाई और यात्रा करने वाले भारतीयों पर असर और भी भारी है - ट्यूशन फीस सालाना ₹5–10 लाख तक अतिरिक्त पड़ सकती है और ₹1.6 लाख का विदेश टूर अब ₹1.8 लाख तक पहुंच गया है. अक्सर कहा जाता है कि रुपये की कमजोरी से एक्सपोर्टर्स को फायदा होता है, लेकिन हकीकत कड़वी है - IT और बिजनेस सर्विस कंपनियों को कुछ फायदा तो जरूर है, पर हेजिंग के कारण लाभ सीमित रह जाता है; फार्मा कंपनियों को बढ़े राजस्व के बावजूद महंगा कच्चा माल दबा देता है; और टेक्सटाइल व मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सैद्धांतिक रूप से फायदा होना चाहिए था, लेकिन अमेरिकी टैरिफ ने उनकी प्रतिस्पर्धा लगभग खत्म कर दी है, इसलिए फायदा कागज़ पर ज्यादा है, जमीन पर कम.

प्रवासी भारतीयों के लिए बोनस

हालांकि इस तस्वीर में एक सकारात्मक पहलू भी है - प्रवासी भारतीयों के लिए बोनस. 2024 में भारत को $137–138 अरब की रेमिटेंस प्राप्त हुई, जो दुनिया में सबसे अधिक है. $500 भेजने पर पहले जहां ₹40,000 मिलते थे, वहीं अब ₹45,000 मिल रहे हैं, जिसका मतलब ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के परिवारों को हर महीने लगभग ₹5,000 अतिरिक्त हासिल हो रहे हैं - जो उनके लिए बेहद बड़ा बदलाव है. ऐसे में आर्थिक विशेषज्ञ भारतीय परिवारों को सलाह दे रहे हैं कि डॉलर में लोन लेने से बचें, विदेश भुगतान के लिए फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट या स्टैगर पेमेंट अपनाएं, 2026 की वित्तीय योजना ₹93–₹95 प्रति डॉलर की सीमा को ध्यान में रखकर करें, रेमिटेंस को FD या शॉर्ट-टर्म डेट फंड में लगाएं और निवेश में विविधता लाते हुए IT तथा फार्मा जैसे निर्यात-उन्मुख सेक्टरों को प्राथमिकता दें.

डॉलर का ₹90 छूना सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है - यह भारत की अर्थव्यवस्था के एक नए अध्याय की शुरुआत है, जिसमें RBI और सरकार का मानना है कि लंबी अवधि की मजबूती के लिए अल्पकालिक गिरावट स्वीकार करनी होगी, लेकिन इस “बड़ी तस्वीर” के बीच लाखों भारतीय परिवारों की मासिक बजट, बच्चों की पढ़ाई, घरेलू खर्च और भविष्य की योजनाएं पहले ही हिल चुकी हैं. यह कहानी यहीं नहीं रुकेगी - और इसका असर आने वाले महीनों में हर जेब, हर घर और हर बजट पर दिखाई देगा.

नरेंद्र मोदीकांग्रेस
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