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मजबूरी, रणनीति या दोस्ती! भारत के आगे अचानक क्यों नरम पड़ा ड्रैगन? जानें कैसे गढ़े जा रहे नए समीकरण

भारत-चीन रिश्तों में अचानक गर्मजोशी देखने को मिल रही है. दिल्ली में वांग यी ने सीमा विवाद सुलझाने और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने का वादा किया. असल वजह भारत की तेज़ी से बनी सड़कें, एयरफील्ड और DS-DBO रोड जैसे सामरिक प्रोजेक्ट्स हैं. ताइवान पर मतभेद जारी हैं, लेकिन चीन को अहसास है कि भारत को नज़रअंदाज़ करना अब संभव नहीं. सहयोग ही दोनों देशों के हित में है.

मजबूरी, रणनीति या दोस्ती! भारत के आगे अचानक क्यों नरम पड़ा ड्रैगन? जानें कैसे गढ़े जा रहे नए समीकरण
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Updated on: 20 Aug 2025 7:04 AM IST

भारत और चीन के रिश्तों में एक नया अध्याय खुलता दिख रहा है. 19 अगस्त को दिल्ली में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने और सहयोग बढ़ाने का आश्वासन दिया. उनके इस बयान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर चीन का रुख अचानक क्यों बदल गया और मौजूदा समीकरण किन कारणों से बने. आइए, घटनाक्रम को समझते हैं...

दिल्ली में बयान देते हुए वांग यी ने कहा कि सीमा विवाद ने भारत-चीन दोनों को नुकसान पहुंचाया है और अब रिश्तों को सामान्य करने पर काम होगा. उन्होंने भरोसा दिलाया कि भारत को रेयर अर्थ मटेरियल्स, फर्टिलाइजर्स और टनल बोरिंग मशीनों की सप्लाई बिना रुकावट मिलेगी. इसके साथ ही उन्होंने दोहराया कि दोनों देशों को प्रतिद्वंद्वी नहीं, साझेदार मानना चाहिए. साफ है कि यह बयान चीन की कूटनीतिक सोच में बदलाव का संकेत देता है.

ताइवान पर बराबरी की नीति

हालांकि चीन ने भारत से ताइवान के साथ नजदीकी कम करने का आग्रह किया, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने कारोबारी और सांस्कृतिक रिश्ते ताइवान से खत्म नहीं करेगा. इसका मतलब है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है और चीन के दबाव में झुकने को तैयार नहीं है.

भारत का मजबूत होता इंफ्रास्ट्रक्चर

चीन के बदले तेवर के पीछे मुख्य वजह भारत की सीमा पर तेजी से बढ़ती सैन्य और रणनीतिक तैयारियां हैं. भारत ने LAC पर सड़कों, सुरंगों और हवाई पट्टियों का काम तेज़ी से बढ़ाया है. खासकर 13,700 फुट की ऊंचाई पर बना न्योमा एयरफील्ड, जो अगले महीने चालू होगा, चीन के लिए भारत की नई शक्ति का प्रतीक है. यह एयरफील्ड सिर्फ 35 किलोमीटर दूर है और सैन्य दृष्टि से भारत की तत्काल तैनाती क्षमता को कई गुना बढ़ा रहा है.

DS-DBO रोड: भारत की नई धमक

पूर्वी लद्दाख में दुर्बुक से दौलत बेग ओल्डी तक बनी 256 किलोमीटर लंबी सड़क ने भारत की सामरिक स्थिति को और मजबूत कर दिया है. पहले जहां सैनिकों और भारी हथियारों की आपूर्ति में 10-12 घंटे लगते थे, अब यह समय घटकर 5 घंटे से भी कम रह गया है. 35 नए पुलों की वजह से टैंक, मिसाइल लॉन्चर और बख्तरबंद गाड़ियां आसानी से तैनात हो सकती है. यह चीन के लिए साफ संदेश है कि भारत अब लंबे टकराव झेलने की स्थिति में सक्षम है.

भारत की गति से चिंतित चीन

चीन यह समझ चुका है कि भारत पिछले एक दशक में चार गुना तेजी से सीमा संबंधी ढांचा खड़ा कर चुका है. जहां पहले ऊबड़-खाबड़ सड़कें भारत की कमजोरी थीं, वहीं अब यही सबसे बड़ी ताकत बन गई हैं. चीन को एहसास है कि सैन्य टकराव की स्थिति में भारत न केवल तुरंत जवाब दे सकता है बल्कि लंबे समय तक मोर्चा संभालने की क्षमता भी रखता है.

अमेरिका के प्रभाव को कम करने की कोशिश

वांग यी का यह दौरा अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को कम करने की कवायद भी माना जा रहा है. अमेरिका की नीति दोनों देशों के लिए चुनौती बन रही है और चीन मानता है कि भारत के साथ रिश्तों में सुधार कर वह क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रख सकता है. यही वजह है कि चीन अब भारत को ठेस पहुंचाने के बजाय सहयोग का हाथ बढ़ा रहा है.

सामरिक मजबूती ने बदले समीकरण

भारत-चीन रिश्तों में जो बदलाव दिखाई दे रहा है, वह केवल कूटनीतिक मुलाकात का असर नहीं है. यह भारत की ताकतवर सैन्य क्षमता, सीमा पर तेजी से बनी सड़कों और एयरफील्ड, तथा स्वतंत्र विदेश नीति की वजह से संभव हो पाया है. चीन समझ चुका है कि भारत को अनदेखा करना अब नामुमकिन है. आने वाले दिनों में पीएम मोदी का चीन दौरा इस समीकरण को और स्पष्ट कर सकता है.

सहयोग या सीमित अविश्वास?

भारत और चीन के रिश्तों में दिख रहा यह सुधार स्थायी होगा या अस्थायी, यह आने वाले महीनों में साफ होगा. वांग यी का दौरा संकेत देता है कि चीन फिलहाल टकराव कम करना चाहता है, लेकिन ताइवान और इंडो-पैसिफिक रणनीति जैसे मुद्दों पर मतभेद बने रहेंगे. संभावना यही है कि आर्थिक सहयोग और व्यापार को प्राथमिकता दी जाएगी, जबकि सीमा पर दोनों देश टकराव कम करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, भारत अपनी आत्मनिर्भर तैयारी और अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड जैसे मंचों पर सक्रिय रहकर चीन पर दबाव बनाए रख सकता है. दूसरी तरफ, चीन भी रूस और अन्य एशियाई देशों से तालमेल बढ़ाकर अपने पक्ष को मजबूत करना चाहेगा.

कुल मिलाकर, आने वाला समय भारत-चीन रिश्तों में कूटनीतिक सहयोग और सामरिक अविश्वास के बीच संतुलन का होगा. अगर दोनों देश सीमा विवाद को व्यावहारिक ढंग से मैनेज करते हैं, तो साथ मिलकर एशिया की स्थिरता और वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

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