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देखभाल न करने पर माता-पिता बच्चो को प्रॉपर्टी से कर सकते हैं बेदखल? क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

दरअसल एक बुजुर्ग दंपति ने अपने बच्चो द्वारा ठीक तरह से देखभाल न होने के कारण उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का फैसला किया और उनके खिलाफ याचिका डाली. यह अधिनियम बुजुर्ग माता-पिता - जिन्हें अक्सर नजर अंदाज किया जाता है और जिनके पास वित्तीय सहायता की कमी होती है. उनके लिए अपने बच्चों से भरण-पोषण की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने की सुविधा प्रदान करता है.

देखभाल न करने पर माता-पिता बच्चो को प्रॉपर्टी से कर सकते हैं बेदखल? क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Updated on: 4 April 2025 12:21 PM IST

भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सभी इतना मशगूल हो गए हैं कि शायद हम अपने माता-पिता को वह सम्मान और देखभाल कर पा रहे हैं, जिन्हें उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है. एक समय था माता-पिता घर की नींव होते थे लेकिन अब सम्मान तो दूर उन्हें एक गिलास पानी पिलाना भी एक चुनौती बन गया. ऐसे में बुजुर्गों की अपने बच्चो द्वारा पूरी न होने वाली उपेक्षाएं एक लड़ाई का रास्ता अपना रही है. यह लड़ाई किसी और चीज की नहीं बल्कि प्रॉपर्टी से बेदखल करने की है.

दरअसल एक बुजुर्ग दंपति ने अपने बच्चो द्वारा ठीक तरह से देखभाल न होने के कारण उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का फैसला किया और उनके खिलाफ याचिका डाली. हालांकि शुक्रवार 28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक बुजुर्ग दंपत्ति द्वारा अपने बेटे को घर से बेदखल करने के लिए दायर मुकदमे को खारिज कर दिया और इस मामले में अहम फैसला सुनाया. इसमें माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 का हवाला दिया गया था.

यह अधिनियम बुजुर्ग माता-पिता - जिन्हें अक्सर नजर अंदाज किया जाता है और जिनके पास वित्तीय सहायता की कमी होती है. उनके लिए अपने बच्चों से भरण-पोषण की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने की सुविधा प्रदान करता है लेकिन घर से बेदखल करने की नहीं. अधिनियम में स्पष्ट रूप से माता-पिता को अपने बच्चों या रिश्तेदारों को घर से बेदखल करने का अधिकार नहीं दिया गया है, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी ट्रांसफर से संबंधित प्रावधान की व्याख्या करते हुए कुछ परिस्थितियों में ऐसे बेदखली आदेशों की अनुमति दी है.

क्या कहता है अधिनियम ?

सीनियर सिटीजन अधिनियम उन माता-पिता को जिनकी उम्र 60 साल या उससे ज्यादा है उन्हें अपनी कमाई या अपनी संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, वे अपने बच्चों या रिश्तेदारों (कानूनी उत्तराधिकारियों) के खिलाफ भरण-पोषण के लिए मुकदमा दायर कर सकते हैं. यह इन बच्चों या रिश्तेदारों पर माता-पिता की ज़रूरतों को पूरा करने का दायित्व डालता है “ताकि ऐसे माता-पिता सामान्य जीवन जी सकें. लेकिन अधिनियम यह भी कहता कि अगर माता-पिता ने किसी शर्त पर बच्चो को प्रॉपर्टी देने को कहा है अगर बच्चे उस शर्त को पूरा नहीं करते तब बुजुर्ग माता-पिता उन्हें प्रॉपर्टी से हिस्सा देने से इंकार कर सकते हैं.

क्या कहती है धारा 23(1)

जरुरी बात यह है कि अधिनियम की धारा 23 माता-पिता को अपनी प्रॉपर्टी ट्रांसफर करने या गिफ्ट में देने के बाद भी भरण-पोषण प्राप्त करने का अवसर देती है. धारा 23(1) के तहत, एक सीनियर सिटीजन ने अपनी प्रॉपर्टी इस शर्त के साथ गिफ्ट में दे सकता है या ट्रांसफर कर सकता है कि प्राप्तकर्ता बेसिक नीड्स अन्य मूलभूत आवश्यकताएं प्रदान करेगा. अगर यह शर्त पूरी नहीं होती है, तो प्रावधान में कहा गया है कि प्रॉपर्टी ट्रांसफर “धोखाधड़ी या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया माना जाएगा' और अगर Senior Citizens Tribunal से कांटैक्ट करता है तो इसे ज़ीरों अनाउंस किया जा सकता है.

बहू नहीं है प्रॉपर्टी ने हिस्सा

2020 में, सुप्रीम कोर्ट को एक ऐसे मामले पर फैसला सुनाने का काम सौंपा गया था, जिसमें बुजुर्ग माता-पिता और उनके बेटे ने अधिनियम के तहत अपनी बहू (डीआईएल) को उस घर से बेदखल करने की मांग की थी जिसमें वह ब्याहकर आई थी. दोनों पक्ष अन्य चल रहे और समानांतर मामलों में शामिल थे, जिसमें पेंडिंग तलाक की कार्यवाही और डीआईएल द्वारा पति के खिलाफ दायर एलिमनी का मुकदमा शामिल था. जून 2015 में, बेंगलुरु उत्तर सब-डिवीज़न के असिस्टेंट कमिश्नर ने फैसला सुनाया था कि संबंधित प्रॉपर्टी माता-पिता की है और बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वह वहां केवल रह रही थी.

कमरे तक सिमित रहेगा बेटा

ऐसा ही एक मामला साल 2019 में सामने आया था जब एक बुजुर्ग कपल ने अपने बेटे के खिलाफ जायदाद में से हिस्सा न देने की याचिका दायर की थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका बेटे उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है जिसकी वजह से वह उसे प्रॉपर्टी में से बेदखल करना चाहते थे. हालांकि इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि बेटा अपनी बर्तन की दूकान और घर के कमरे तक ही सिमित रहेगा. न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि बेदखली की कार्यवाही तभी फिर से शुरू की जा सकती है, जब बेटा अपने माता-पिता के साथ और दुर्व्यवहार करे या उन्हें प्रताड़ित करे.

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