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क्या मुस्लिम व्यक्ति पहली पत्नी को बताए बिना दूसरी शादी कर सकता है? केरल हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश

केरल हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को बताए बिना दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सकता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक पहली शादी वैध है, तब तक दूसरी शादी दर्ज नहीं की जा सकती. न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने कहा कि यदि पहली पत्नी आपत्ति जताती है तो रजिस्ट्रार को विवाह दर्ज करने का अधिकार नहीं है और ऐसे मामलों में पक्षों को सिविल कोर्ट का रुख करना होगा.

क्या मुस्लिम व्यक्ति पहली पत्नी को बताए बिना दूसरी शादी कर सकता है? केरल हाईकोर्ट ने दिया ये आदेश
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( Image Source:  Sora_ AI )
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 5 Nov 2025 5:54 PM

केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना दूसरी शादी को Kerala Registration of Marriages (Common) Rules, 2008 के तहत रजिस्टर नहीं करवा सकता. कोर्ट ने साफ किया कि जब तक पहली शादी कानूनी रूप से जारी है, तब तक दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन असंभव है.

न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने 30 अक्टूबर को फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पहली पत्नी को सूचना नहीं दी गई या उसने आपत्ति जताई है, तो रजिस्ट्रार को उस शादी का पंजीकरण करने का कोई अधिकार नहीं है. ऐसे मामलों में संबंधित पक्षों को सक्षम सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा.

मामला क्या था?

यह फैसला कन्नूर के 44 वर्षीय व्यक्ति और कासरगोड की 38 वर्षीय महिला द्वारा दायर याचिका पर आया. याचिकाकर्ताओं ने बताया कि स्थानीय स्वशासन संस्था के रजिस्ट्रार ने उनकी शादी को दर्ज करने से मना कर दिया था. इस निर्णय को उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी.

याचिकाकर्ताओं की दलील और कोर्ट का जवाब

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत पुरुष को एक साथ चार पत्नियां रखने की अनुमति है. लेकिन कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस अनुमति का मतलब असीम स्वतंत्रता नहीं है. न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा कि कुरान और इस्लामी कानून में भी दूसरी शादी की अनुमति केवल “न्यायसंगत और आवश्यक परिस्थितियों” में ही दी गई है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी मुस्लिम पत्नी “ऐसे मामलों में मूक दर्शक नहीं रह सकती.”

'धर्म द्वितीयक है, संविधान सर्वोपरि'- हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा कि फैसले में अदालत ने समानता और न्याय पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में धर्म द्वितीयक है और संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि हैं.” जज ने यह भी टिप्पणी की कि अधिकांश मुस्लिम महिलाएं अपने पति की दूसरी शादी का समर्थन नहीं करेंगी. “99.99% मुस्लिम महिलाएं अपने पति की दूसरी शादी का विरोध करेंगी, जब पहली शादी अभी भी वैध है,”

आर्थिक जिम्मेदारी और समान व्यवहार है शर्त

कोर्ट ने यह भी दोहराया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, कोई पुरुष तभी दूसरी शादी कर सकता है जब वह अपनी दोनों पत्नियों का आर्थिक रूप से पालन-पोषण करने और उनके साथ समान व्यवहार करने में सक्षम हो. यदि यह शर्त पूरी नहीं होती, तो इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार दूसरी शादी “न्यायोचित नहीं मानी जाएगी.”

कोर्ट ने अंत में याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी पहली पत्नी को मामले का पक्षकार नहीं बनाया, जो एक गंभीर गलती थी. इस वजह से उनकी दलील कमजोर पड़ गई. केरल हाईकोर्ट का यह फैसला न सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ की व्याख्या को नया आयाम देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका धर्म से ऊपर उठकर संवैधानिक समानता और महिला अधिकारों को प्राथमिकता दे रही है.

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