लिव-इन रिलेशनशिप में हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़का रह सकते हैं साथ? क्या बोला बॉम्बे HC
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक हिंदू लड़की को एक मुस्लिम लड़के के साथ 'लिव-इन रिलेशनशिप' जारी रखने की अनुमति दे दी. कोर्ट ने कपल को एक साथ रहने की अनुमति दी और कहा कि प्रेम में कोई बाधा नहीं होती. जज ने कहा कि इस रिश्ते का सिर्फ लड़की के परिवार ने विरोध किया, बल्कि बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी समूहों ने भी इसका विरोध किया. हालांकि लड़की ने लड़के और उसकी मां के साथ रहने की बात कही है

Bombay High Court: कहते हैं प्यार करने वालों के लिए धर्म, जात-पात, उच्च-नीच का कोई महत्व नहीं होता है. प्यार करने वाले प्रेमी-प्रेमिका इन सबके बारे में नहीं सोचते. हमारे देश में अक्सर हिंदू और मुस्लिम विवाद देखने को मिलता है, लेकिन लोग प्यार में एक-दूसरे के धर्म को अपना लेते हैं या सम्मान देने लगते हैं. ऐसे ही एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने एक हिंदू लड़की को एक मुस्लिम लड़के के साथ 'लिव-इन रिलेशनशिप' जारी रखने की अनुमति दे दी.
जानकारी के अनुसार, कपल के अलग-अलग धर्म से होने के बाद भी कोर्ट ने कपल को एक साथ रहने की अनुमति दी और कहा कि प्रेम में कोई बाधा नहीं होती. जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने 13 दिसंबर को पारित आदेश में लड़की को रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह बालिग है और उसे अपनी 'पसंद के अधिकार' का प्रयोग करने का अधिकार है.
बाधाओं को लांघता है प्यार- कोर्ट
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने आदेश में कहा कि अमेरिकी संस्मरणकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं माया एंजेलो ने कहा था कि प्यार किसी बाधा को नहीं मानता. यह बाधाओं को लांघता है और दीवारों को पार करके अपनी मंजिल तक पहुंचता है. इस मामले में लड़की के घरवाले इस रिश्ते से नाराज हैं और लड़के की उम्र शादी के लिए भी योग्य नहीं हुई है. इस पर जज ने कहा कि इस रिश्ते का सिर्फ लड़की के परिवार ने विरोध किया, बल्कि बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी समूहों ने भी इसका विरोध किया. हालांकि लड़की ने लड़के और उसकी मां के साथ रहने की बात कही है.
लिव-इन रिलेशनशिप की अनुमति
इस मामले की सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि लड़के की उम्र अभी 20 साल है, इसलिए वह शादी नहीं कर सकता. यही कारण है कि लड़की और लड़के ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया है. लड़के की उम्र शादी योग्य रहने तक वह ऐसे रह सकते हैं. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सभी लिव-इन रिलेशन विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं माने जाएंगे, जैसा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत किया जाता है. क्योंकि यह प्रावधान विवाह के संबंध में है न कि लिव-इन रिलेशलनशिप के संबंध में.