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'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहना गलत, लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं: SC

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहना गलत हो सकता है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं है. अदालत ने झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि केवल शब्दों के आधार पर शांति भंग या आपराधिक बल प्रयोग का मामला नहीं बनता.

मियां-तियां या पाकिस्तानी कहना गलत, लेकिन धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला अपराध नहीं: SC
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 4 March 2025 12:34 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहने को गलत माना जा सकता है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं बनता. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने झारखंड के एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.

इस मामले की शिकायत झारखंड के एक उर्दू अनुवादक और कार्यकारी क्लर्क द्वारा दर्ज कराई गई थी. शिकायतकर्ता के अनुसार, जब वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन से संबंधित जानकारी लेने के लिए आरोपी से मिला, तो आरोपी ने उसके धर्म का हवाला देते हुए कथित रूप से दुर्व्यवहार किया और उसके आधिकारिक कर्तव्यों को बाधित करने के लिए आपराधिक बल का प्रयोग किया.

पटल दिया हाईकोर्ट का फैसला

इस घटना के बाद आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को 'मियां-तियां' या 'पाकिस्तानी' कहने का बयान भले ही अनुचित और गलत हो, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के दायरे में नहीं आता. अदालत ने यह भी कहा कि इस बयान के कारण शांति भंग होने की कोई संभावना नहीं थी.

आरोपी ने नहीं किया शारीरिक हमला

अदालत ने आगे कहा कि आरोपी द्वारा किसी प्रकार का शारीरिक हमला या बल का प्रयोग नहीं किया गया था, जिससे उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 353 के तहत मामला बनता हो. इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया, यह स्पष्ट करते हुए कि केवल शब्दों के आधार पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मामला नहीं बनाया जा सकता.

Supreme Court
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