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21 दिन की कैद में नर्क जैसी जिंदगी! आंखों पर पट्टी बांधी, नींद छीनी और... पाकिस्तान ने BSF जवान को कितना टॉर्चर किया?

BSF जवान पूर्णम कुमार शॉ को पाकिस्तान ने 21 तक हिरासत में रखने के बाद रिहा कर दिया. इस दौरान शॉ को आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया, लगातार गालियां दी गईं और नींद से वंचित किया गया. पूछताछ के दौरान मानसिक दबाव बनाने की कोशिश की गई और दुर्व्यवहार किया गया. उन्हें मोबाइल फोन, साथियों और सेना से जुड़े सवालों से बार-बार परेशान किया गया.

21 दिन की कैद में नर्क जैसी जिंदगी! आंखों पर पट्टी बांधी, नींद छीनी और... पाकिस्तान ने BSF जवान को कितना टॉर्चर किया?
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( Image Source:  X )

BSF jawan Purnam Shaw tortured in Pakistan custody: सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवान पूर्णम कुमार शॉ 23 अप्रैल को गलती से पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे. उन्हें 21 दिनों की हिरासत के बाद 14 मई को अटारी-वाघा बॉर्डर पर भारत को सौंपा गया. पाकिस्तानी हिरासत के दौरान, शॉ को आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया. उन्हें नींद से वंचित किया गया और मानसिक रूप से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. हालांकि, शॉ को शारीरिक यातना नहीं दी गई, लेकिन उनसे सीमा पर बीएसएफ की तैनाती और वरिष्ठ अधिकारियों के बारे में पूछताछ जरूर की गई.

पाकिस्तानी अधिकारियों ने पूर्णम शॉ से अधिकारी के कॉन्टैक्ट डिटेल भी मांगे, लेकिन बीएसएफ प्रोटोकॉल के अनुसार, शॉ के पास मोबाइल फोन नहीं था, जिससे वह जानकारी नहीं दे सके. हिरासत के दौरान, उन्हें पाकिस्तान के तीन अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया, जिनमें से एक स्थान एक एयरबेस के पास था, जहां वे विमान की आवाजें सुन सकते थे.

रिहाई के बाद शॉ की हुई चिकित्सकीय जांच

रिहाई के बाद, शॉ की चिकित्सकीय जांच की गई और उन्हें मानसिक रूप से स्थिर पाया गया. उनके द्वारा पहने गए कपड़ों की जांच के बाद उन्हें नष्ट कर दिया गया. शॉ की रिहाई भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को हुए संघर्षविराम समझौते के कुछ दिनों बाद हुई, जो भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद हुआ था, जिसमें भारत ने जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े नौ आतंकी शिविरों को नष्ट किया था.


हर समय की गाली-गलौज

बीएसएफ जवान पूर्णम शॉ को पाकिस्तान में 21 दिनों तक नींद से वंचित रखा गया, आंखों पर काली पट्टी बांधी गई और हर समय गाली-गलौज करते हुए उनका अपमान किया गया. शॉ से पाकिस्तान के अधिकारी लगातार पूछताछ करते रहे. उन्हें 'तू कौन है' और 'तुम्हारे साथ कितने जवान हैं' जैसे सवालों से परेशान किया गया. उन्हें बार-बार धमकी दी गई और मोबाइल फोन की मौजूदगी को लेकर भी दबाव डाला गया. उनकी हरकतों को लेकर शक करते हुए उन्हें कई बार एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया और मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश की गई.

खाना-पीना भी नियमित रूप से नहीं मिला

पूरी हिरासत अवधि के दौरान, शॉ को खाना-पीना भी नियमित रूप से नहीं मिला और नींद से वंचित रखने के कारण उनका मानसिक स्वास्थ्य बेहद प्रभावित हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान की तरफ से यह व्यवहार अत्यंत अमानवीय था, जिसे वह कभी नहीं भूल पाएंगे.

जवानों की सुरक्षा के लिए लगातार प्रयासरत है सरकार

पूर्णम शॉ की वापसी भारत की ताकत और सेना के ऑपरेशन ‘सिंदूर’ की सफलता का प्रमाण है, जिसने सीमा पार आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया. भारतीय सेना और सरकार ने उनकी सुरक्षित वापसी के लिए कड़ी मेहनत की. इस घटना ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव की सच्चाई को एक बार फिर से उजागर किया है और यह सवाल उठाया है कि ऐसे युद्धबंदी और कैदियों के साथ किस हद तक अमानवीय व्यवहार किया जा सकता है. जवानों की सुरक्षा और सम्मान के लिए भारत सरकार लगातार प्रयासरत है.

हर जवान की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता

पूर्णम शॉ की कहानी देशवासियों के लिए एक प्रेरणा है कि वे कितनी हिम्मत और साहस के साथ देश की सीमा की रक्षा कर रहे हैं, जबकि दुश्मन की तरफ से उन्हें अत्याचार सहना पड़ता है. भारत सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में कोई समझौता नहीं होगा और हर जवान की सुरक्षा उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है.

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