ब्लैकआउट, बम स्क्वॉड और सायरन…ऑपरेशन सिंदूर के बाद अलर्ट मोड पर भारत- VIDEO
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने 54 साल में पहली बार देशभर में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल की. 244 जिलों में ब्लैकआउट, एयर रेड सायरन और इवैकुएशन अभ्यास किए गए. यूपी, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता में स्कूल, मॉल, मेट्रो व सरकारी संस्थानों में तैयारी देखी गई. लखनऊ में सीएम योगी खुद समीक्षा करेंगे. मकसद- लोगों को आतंकी या हवाई हमले जैसी आपात स्थिति के लिए तैयार करना और पाकिस्तान को सख्त संदेश देना.

ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों पर भारत के हमले के बाद देशभर में अलर्ट का माहौल है. बुधवार को पूरे देश में ब्लैकआउट, एयर रेड सायरन और इमरजेंसी इवैकुएशन ड्रिल्स की गईं- बिलकुल वैसे ही जैसे 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय हुआ था, जब दुश्मन के हवाई हमलों से बचाव के लिए लाइट्स बंद की जाती थीं.
इस बार, 54 साल बाद, देश के 244 सिविल डिफेंस जिलों में यह अभ्यास हो रहा है. गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को इन ड्रिल्स के निर्देश दिए हैं ताकि हाल के समय में उभरे 'नए और जटिल खतरों” से निपटने की तैयारी हो सके.
यूपी से दिल्ली और मुंबई तक अलर्ट - कहां-कहां हुआ अभ्यास?
उत्तर प्रदेश- भारत की स्ट्राइक के बाद राज्य में हाई अलर्ट घोषित. नोएडा के मॉल, मेट्रो स्टेशन, एनटीपीसी और सरकारी स्कूलों में मॉक ड्रिल हुई. गौर सिटी मॉल में बिजली काटकर इवैकुएशन प्लान एक्टिवेट किया गया. लखनऊ पुलिस लाइंस में शाम 7 बजे युद्ध पूर्व तैयारी का डेमो, खुद सीएम योगी अदित्यनाथ समीक्षा करेंगे. बात करे दिल्ली-एनसीआर- स्कूलों में बच्चों को फायर और एयर रेड के समय शांत रहने की ट्रेनिंग दी गई.
गाजियाबाद के 10 स्कूलों में सिविल डिफेंस के साथ मिलकर अभ्यास. मुंबई - क्रॉस मैदान पर एनसीसी और सिविल डिफेंस टीम का मॉक ड्रिल. हैदराबाद- चार जगहों पर अभ्यास, अधिकारियों को निर्देश जारी. कोलकाता- डीपीएस रूबी पार्क, ला मार्टिनियर (बॉयज और गर्ल्स), फ्यूचर फाउंडेशन जैसे स्कूलों में इवैकुएशन ड्रिल.
मॉक ड्रिल क्या है और इसमें क्या-क्या होता है?
सरल भाषा में कहें तो मॉक ड्रिल एक तरह की तैयारी है जिसमें आम लोग और संस्थान आपात स्थिति (जैसे आतंकी हमला, आग या भूकंप) में कैसे सुरक्षित रहें, इसकी प्रैक्टिस की जाती है.
आतंकी हमले, हवाई हमले और इवैकुएशन के सीन बनाकर रिहर्सल होती है. कुछ जगहों पर ब्लैकआउट यानी लाइट्स बंद कर दी जाती हैं ताकि हवाई हमलों के दौरान दुश्मन को निशाना साधने में दिक्कत हो. जरूरी संस्थानों जैसे एयरफील्ड, रिफाइनरी को छुपाने (कैमोफ्लाज) का अभ्यास भी किया जाता है. स्कूल, सरकारी-प्राइवेट संस्थान, अस्पताल, रेलवे-मेट्रो स्टाफ और पुलिस मिलकर इस ड्रिल में भाग लेते हैं. दिल्ली पुलिस ने लॉन्ग रेंज एकॉस्टिक डिवाइस (LRAD) सिस्टम भी तैयार रखा है, जो 1 किलोमीटर तक इमरजेंसी संदेश भेज सकता है.
क्या घबराने की जरूरत है?
नहीं. यह केवल तैयारी का अभ्यास है. ब्लैकआउट के दौरान टॉर्च, मोमबत्ती और थोड़ा नकद रखना अच्छा रहेगा क्योंकि नेटवर्क प्रभावित हो सकता है.
क्यों हो रही है ऐसी तैयारी?
सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अरुण कुमार साहनी के शब्दों में- “जब लोग संभावित खतरों के बारे में जागरूक होते हैं और प्रतिक्रिया देना जानते हैं, तो उनकी जान और सुरक्षा जोखिम में नहीं आती. यह तैयारी न केवल आतंकी हमलों से निपटने के लिए है, बल्कि पाकिस्तान को भी एक सख्त संदेश देने का तरीका है कि भारत की प्रतिक्रिया इस बार सीमित नहीं रहेगी.
1971 की यादें फिर ताज़ा हुईं
1971 के युद्ध के समय देशभर में ब्लैकआउट, सायरन और अहम जगहों पर कैमोफ्लाज किए गए थे. तब ताजमहल को भी बड़ी जूट की चादर से ढक दिया गया था ताकि दुश्मन के विमान से उसे पहचाना न जा सके. फैक्ट्रियों, रेलवे यार्ड और कम्युनिकेशन टावर्स को भी ढक दिया गया था.