गंगा जल की भीख मांग रहा बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल में डाला डेरा; भारत दिखाएगा दरियादिली या देगा झटका?
भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बंटवारा संधि 2026 में खत्म हो रही है. बांग्लादेश भारत से इसे रिन्यू करने की गुहार लगा रहा है, क्योंकि इसकी 38% आबादी गंगा जल पर निर्भर है. लेकिन भारत अभी स्थिति पर नजर बनाए हुए है. यह मुद्दा सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि कूटनीति, राजनीति और रणनीतिक लाभ से भी जुड़ा है.

भारत के खिलाफ पिछले कई महीनों से जहर उगल रहा बांग्लादेश आज उसी के सामने गिड़गिड़ा रहा है. गंगा जल संधि 2026 में खत्म होने वाली है, और अगर भारत इस समझौते को रिन्यू नहीं करता है, तो बांग्लादेश में पानी की किल्लत भयावह स्थिति पैदा कर सकती है. लेकिन क्या भारत इतनी आसानी से मान जाएगा, खासकर तब जब बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के आरोप लगते रहे हैं?
मोदी सरकार ने अब तक इस मामले पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है. भारत के लिए यह सिर्फ पानी का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक राजनयिक अवसर भी है. भारत चाहे तो इस समझौते में अपनी शर्तें जोड़ सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके. अब सवाल यह है कि क्या भारत इस अवसर का सही इस्तेमाल करेगा?
कब हुई थी जलसंधि?
1996 में जब यह संधि हुई थी, तब दोनों देशों के बीच पानी को लेकर तनाव था. उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा और बांग्लादेश की शेख हसीना ने मिलकर इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे. पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में फरक्का बैराज है जहां जनवरी से मई के बीच जल प्रवाह में कमी देखी जाती है. 1996 में हुए भारत-बांग्लादेश जल संधि के तहत इस बैराज में जल प्रवाह को सुनिश्चित करने का प्रावधान रखा गया था. इस समझौते के अनुसार, यदि फरक्का बैराज में जल उपलब्धता 75,000 क्यूसेक से अधिक होती है, तो भारत को 40,000 क्यूसेक पानी लेने का अधिकार प्राप्त है. यदि जल स्तर 70,000 क्यूसेक से कम हो जाता है, तो दोनों देशों के बीच पानी का समान रूप से बंटवारा किया जाएगा. यह संधि 30 वर्षों के लिए लागू की गई थी, जिसकी अवधि 2026 है. अब समीकरण बदल चुके हैं. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत के साथ उसके रिश्तों में खटास आई है. ऐसे में यह संधि क्या दोबारा वैसी ही रह पाएगी, जैसा पहले था?
अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा असर
बांग्लादेश की 38% आबादी गंगा के पानी पर निर्भर है. यदि भारत पानी देना बंद कर दे तो वहां की खेती चौपट हो सकती है, और यह आर्थिक संकट में बदल सकता है. बांग्लादेश ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कोलकाता में भारतीय अधिकारियों से मुलाकात की, लेकिन क्या सिर्फ बातचीत से यह मामला सुलझ सकता है?
भारत पर पानी रोकने का आरोप
बांग्लादेश अक्सर भारत पर यह आरोप लगाता रहा है कि वह अपनी जरूरत के हिसाब से पानी रोकता है. लेकिन क्या बांग्लादेश यह भूल गया कि गंगा सहित 54 नदियां भारत से होकर बांग्लादेश में बहती हैं? अगर भारत चाहे, तो पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है. इसीलिए बांग्लादेश को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं भारत इस संधि को रिन्यू करने में सख्ती न दिखाए.
बांग्लादेश की जीवन रेखा है गंगा नदी
गंगा बांग्लादेश के लिए सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि जीवनरेखा है. इसका पानी उत्तर और उत्तर-पश्चिम बांग्लादेश में सिंचाई और पीने के लिए उपयोग होता है. लेकिन यह संधि बांग्लादेश के लिए जितनी अहम है, उतनी ही भारत के लिए भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकती है. इस समझौते को रिन्यू करने को लेकर ज्वाइंट रिवर कमेटी के सदस्य पश्चिम बंगाल में आकर डेरा डाले हुए हैं.
आने वाले समय का इंतजार
अगले कुछ महीनों में इस मुद्दे पर बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत इस मुद्दे पर सख्ती दिखाएगा या राजनयिक रास्ता अपनाएगा. लेकिन एक बात तय है कि बांग्लादेश अब अपनी जरूरतों के लिए भारत का सहयोग चाहता है, और यह भारत के लिए एक मजबूत सौदेबाजी का अवसर हो सकता है.