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एआई चैटबॉट करता है मनगढंत बातें, इन झूठों से कैसे निपटें? इतनी बार गलत जवाब देता है AI

आज हम रिसर्च, पढ़ाई, करियर सलाह और यहां तक कि भावनात्मक सहारे के लिए भी एआई चैटबॉट्स पर निर्भर होते जा रहे हैं. सवाल पूछो और झट से जवाब मिल जाता है. लेकिन क्या ये जवाब हमेशा सही होते हैं? हालिया रिपोर्ट्स इशारा कर रही हैं कि कई बार एआई ऐसी बातें भी बता देता है, जिनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता.

एआई चैटबॉट करता है मनगढंत बातें, इन झूठों से कैसे निपटें? इतनी बार गलत जवाब देता है AI
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( Image Source:  META AI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 19 Dec 2025 12:45 PM IST

एआई चैटबॉट आज जानकारी का तेज़ और आसान जरिया बन चुके हैं, लेकिन इनके जवाब हमेशा भरोसेमंद हों, ऐसा ज़रूरी नहीं. कई बार ये ऐसी बातें कह देते हैं, जो पूरी तरह मनगढ़ंत या भ्रामक होती हैं. यही वजह है कि यूज़र्स के मन में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर एआई इतनी बार गलत जवाब क्यों देता है.

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साथ ही, इन झूठी जानकारियों से कैसे बचा जाए? तकनीक पर बढ़ती निर्भरता के इस दौर में, एआई की सीमाओं को समझना और उसके जवाबों को परखना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है.

‘झूठ’ नहीं, बल्कि ‘हैलुसिनेशन’

जब एआई से पूछा गया कि वह गलत जानकारी क्यों देता है, तो सबसे पहले उसने “झूठ” और “हैलुसिनेशन” का फर्क समझाने की कोशिश की. एआई जानबूझकर झूठ नहीं बोलता, बल्कि कई बार उसके पास पुख्ता जानकारी नहीं होती. ऐसे में वह अपने पैटर्न और ट्रेनिंग के आधार पर एक ऐसा जवाब गढ़ देता है, जो सुनने में सही लगता है, लेकिन होता गलत है. इसी प्रक्रिया को टेक की भाषा में हैलुसिनेशन कहा जाता है.

कितनी बार गलत जवाब देता है एआई?

एक स्टडी के मुताबिक, मशहूर एआई चैटबॉट्स करीब 20 से 30 फीसदी मामलों में मनगढ़ंत जानकारी दे देते हैं. यानी हर पांच में से एक जवाब पूरी तरह या आंशिक रूप से गलत हो सकता है. कुछ प्लेटफॉर्म्स में यह आंकड़ा और भी ज्यादा बताया गया है. साफ है कि आंख बंद कर एआई पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है.

अरबों डॉलर का बाजार, फिर भी खामियां

2025 में एआई टेक्नोलॉजी का वैश्विक बाजार सैकड़ों अरब डॉलर तक पहुंच चुका है. बड़ी कंपनियां इस पर भारी निवेश कर रही हैं. इसके बावजूद, भरोसे की समस्या बनी हुई है. यही वजह है कि एआई को और सटीक बनाने के लिए कंपनियां लगातार सुधारों पर काम कर रही हैं.

कंपनियों की चिंता और ‘कोड रेड’

एआई की विश्वसनीयता को लेकर चिंता इतनी बढ़ गई कि एक समय बड़े टेक लीडर्स को ‘कोड रेड’ जैसे अलर्ट जारी करने पड़े. मकसद साफ था-गलत जानकारी की समस्या को गंभीरता से लेना और यूजर्स का भरोसा बनाए रखना.

इन ‘मीठे झूठों’ से कैसे निपटें?

सबसे जरूरी है कि एआई को अंतिम सच न मानें. किसी भी अहम जानकारी को दो-तीन भरोसेमंद सोर्स से जरूर जांचें. मेडिकल, कानूनी या वित्तीय सलाह के लिए विशेषज्ञ की राय लें. सवाल पूछते समय ज्यादा साफ रहें और रेफरेंस मांगें.

समझदारी ही सबसे बड़ा हथियार

एआई एक ताकतवर टूल है, लेकिन इंसानी सोच का विकल्प नहीं. सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह मददगार है, लेकिन बिना जांचे-परखे भरोसा करना आपको गलत दिशा में ले जा सकता है. समझदारी से इस्तेमाल ही एआई के मनगढ़ंत जवाबों से बचने का सबसे असरदार तरीका है.

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