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क्या देर रात पार्टी करना बलात्कार को न्योता देना है? अहमदाबाद पुलिस प्रायोजित पोस्टर ने खड़ा किया बवाल

अहमदाबाद में महिलाओं को लेकर लगाए गए पोस्टरों में कहा गया कि देर रात की पार्टी में जाना बलात्कार को न्योता दे सकता है. पुलिस प्रायोजित इस संदेश पर भारी विवाद हुआ. सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद पोस्टर हटाए गए. महिलाओं ने इसे पीड़िता को दोष देने वाली मानसिकता बताया और नैतिक पुलिसिंग करार दिया.

क्या देर रात पार्टी करना बलात्कार को न्योता देना है? अहमदाबाद पुलिस प्रायोजित पोस्टर ने खड़ा किया बवाल
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 2 Aug 2025 9:48 AM

अहमदाबाद में लगे एक पोस्टर ने नारी सुरक्षा पर जागरूकता की जगह नारी को ही दोषी ठहराने की बहस छेड़ दी है. बड़े अक्षरों में लिखा गया था, “देर रात की पार्टियों में जाना बलात्कार या सामूहिक बलात्कार को आमंत्रित कर सकता है.” यह संदेश पुलिस द्वारा प्रायोजित पोस्टर अभियान का हिस्सा था. सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाओं के बाद पुलिस को यह पोस्टर हटाने पड़े, लेकिन तब तक विवाद जोर पकड़ चुका था.

इस अभियान में न केवल देर रात की पार्टी को बलात्कार से जोड़ा गया, बल्कि एक अन्य पोस्टर पर लिखा गया, “दोस्तों के साथ अंधेरे, सुनसान इलाकों में न जाएं. आपका बलात्कार या सामूहिक बलात्कार हो सकता है.” ऐसे संदेशों ने महिलाओं की सुरक्षा को उनके आचरण पर आधारित बनाकर, यौन अपराधों की ज़िम्मेदारी अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं पर डाल दी. कई लोगों ने इसे "पीड़िता को दोष देने वाली मानसिकता" का उदाहरण कहा.

'हमें इसकी भाषा की जानकारी नहीं थी': पुलिस

पुलिस अधिकारियों ने सफाई दी कि पोस्टर की भाषा उनके द्वारा अनुमोदित नहीं थी. डीसीपी नीता देसाई और एसीपी शैलेश मोदी ने बताया कि सतर्कता नामक संगठन ने ट्रैफिक जागरूकता के नाम पर इन पोस्टरों की अनुमति ली थी. उनके अनुसार, “सलाह” वाली यह भाषा पुलिस के ध्यान में नहीं थी और इसे सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया आने के बाद ही हटाया गया.

जागरूकता या डर फैलाना?

स्थानीय नागरिकों, विशेषकर महिलाओं ने पोस्टरों की आलोचना करते हुए कहा कि यह सुरक्षा नहीं, बल्कि नैतिक पुलिसिंग का प्रयास है. घाटलोडिया की भूमि पटेल ने सवाल किया कि बिना पूरी जांच के ऐसे असंवेदनशील संदेशों को कैसे स्वीकृति मिल सकती है? वहीं फिटनेस ट्रेनर गायत्री शाह ने कहा, “ऐसे पोस्टर सुरक्षा की जगह डर और नियंत्रण को बढ़ावा देते हैं, जो सामाजिक जागरूकता की भावना को ही नष्ट कर देते हैं.”

‘पीड़िता को दोष देने’ की मानसिकता

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, नेहरूनगर की मीनल सोलंकी ने कहा कि इन पोस्टरों में झलकती सोच वही पुरानी है, जिसमें महिला के पहनावे, समय और जगह को उसके साथ होने वाले अपराध का कारण मान लिया जाता है. यह दृष्टिकोण केवल अपराधियों को ही नहीं, बल्कि संस्थागत असफलताओं को भी छुपा देता है. पीड़ित पर केंद्रित यह सोच समाज में गहरी असमानता को बढ़ावा देती है.

सुरक्षा के नाम पर पढ़ाया जाएगा नैतिकता का पाठ?

यह घटना एक बड़े सवाल को जन्म देती है. क्या महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अब उन्हें 'कैसे रहना चाहिए' सिखाया जाएगा, बजाय इसके कि अपराधियों को नियंत्रित किया जाए? पोस्टर भले हटा दिए गए हों, पर यह मुद्दा सामाजिक सोच, संस्थागत ज़िम्मेदारी और संवेदनशीलता के गहरे संकट को उजागर करता है. सुरक्षा सलाह और डराने की भाषा के बीच की रेखा को पहचानना अब और भी ज़रूरी हो गया है.

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