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पाक को घुटनों पर लाने के बाद PM मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करने के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना?

भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी सोमवार, 12 मई को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करेंगे. यह संबोधन खास है क्योंकि यह न केवल ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पहली बार हो रहा है बल्कि इसे बुद्ध पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन पर रखा गया है.

पाक को घुटनों पर लाने के बाद PM मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करने के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना?
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सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 12 May 2025 5:02 PM IST

भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी सोमवार, 12 मई को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करेंगे. यह संबोधन खास है क्योंकि यह न केवल ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद पहली बार हो रहा है बल्कि इसे बुद्ध पूर्णिमा जैसे पवित्र दिन पर रखा गया है.

7 मई 2025, भारत के इतिहास में एक और निर्णायक तारीख बन गई. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और सैन्य प्रतिष्ठानों पर सटीक हमले किए गए, जिसमें कराची के मलिर कैंट से लेकर PoK के घने आतंकी अड्डों तक धूल चटा दी गई. जिसके बाद पाकिस्‍तान ने दो दिनों तक नुकसान पहुंचाने की कई कोशिशें की लेकिन भारत की तैयारी के आगे उसके सभी नापाक इरादे नाकाम रहे.

लेकिन असली चौंकाने वाला क्षण तब आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करने के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन चुना, ठीक वैसे ही जैसे 1974 में भारत ने अपने पहले परमाणु परीक्षण का नाम रखा था: ‘स्माइलिंग बुद्धा’. अब सवाल यह है कि क्या इस दिन का चयन केवल संयोग है या एक गहरा संदेश छिपा है?

क्यों खास है बुद्ध पूर्णिमा का दिन?

बुद्ध पूर्णिमा का दिन शांति, करुणा और अहिंसा के संदेश का प्रतीक माना जाता है. गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का यही दिन है. जब भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कठोर सैन्य कार्रवाई की और अब संघर्षविराम की सहमति बनी है, ऐसे में मोदी का इस दिन राष्ट्र को संबोधित करना वैश्विक स्तर पर शांति और संयम का संदेश देना भी है.

क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

1974 में बुद्ध पूर्णिमा के दिन भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था, एक शांतिपूर्ण देश की ताक़तवर घोषणा. उस दिन बुद्ध ‘मुस्कराए’ थे, लेकिन उस मुस्कान के पीछे परमाणु शक्ति का संतुलन और आत्मनिर्भर भारत का उद्घोष छिपा था. अब 2025 में, फिर बुद्ध पूर्णिमा आई, और फिर एक ‘मुस्कराता हुआ भारत’, लेकिन इस बार जवाबी हमले, सटीक एयरस्ट्राइक, और ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के साथ.

'स्माइलिंग बुद्धा' से 'स्ट्राइकिंग बुद्धा' तक: भारत का सफर

1974 में बुद्ध की मुस्कान के पीछे वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता थी, 1998 में पोखरण-2 के जरिए वो आत्मबल गूंज बन गया और 2025 में बुद्ध पूर्णिमा के दिन, वह मुस्कान सर्जिकल एक्युरेसी और रणनीतिक संतुलन की गर्जना में बदलने वाली है.

स्माइलिंग बुद्धा क्या है?

‘स्माइलिंग बुद्धा’ भारत के पहले परमाणु परीक्षण का कोडनेम था, जिसे 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण परीक्षण स्थल पर सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया. इस ऐतिहासिक मिशन के जरिए भारत परमाणु शक्ति संपन्न दुनिया का छठा देश बना. इस परियोजना का आधिकारिक नाम Pokhran-I था, लेकिन इसे "Smiling Buddha" नाम इसलिए दिया गया क्योंकि परीक्षण बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुआ था और यह शांति का प्रतीक माना गया.

इस परीक्षण ने भारत को सामरिक और वैज्ञानिक दृष्टि से एक नई पहचान दी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इसे बेहद गोपनीयता के साथ तैयार किया गया था। इसका मकसद भारत की सुरक्षा को मजबूत करना और वैश्विक स्तर पर अपनी रणनीतिक क्षमता दिखाना था. स्माइलिंग बुद्धा ने भारत की परमाणु नीति—"नो फर्स्ट यूज" और "न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता" की नींव भी मजबूत की.

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