पाकिस्तान में 7 साल की जासूसी, फिर सर्जिकल स्ट्राइक; पढ़ें भारत के सुपर स्पाई अजित डोभाल की कहानी
अजित डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था. 1968 में वे भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए और केरल कैडर से अपनी सेवा शुरू की. IPS अधिकारी बनने के बाद डोभाल का झुकाव खुफिया कार्यों की ओर था. उनकी क्षमता, साहस और तेज बुद्धि ने उन्हें खुफिया एजेंसियों के लिए एक अनमोल संपत्ति बना दिया.

भारत के जेम्स बॉन्ड अजित डोभाल का नाम भारतीय खुफिया एजेंसी, राष्ट्रीय सुरक्षा और गुप्त मिशनों के संदर्भ में एक मिसाल बन चुका है. उनका जीवन किसी जासूसी उपन्यास से कम नहीं है. एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी जान जोखिम में डालकर सात साल तक दुश्मन देश पाकिस्तान में भारत के लिए जासूसी करता रहा, उनकी कहानी न केवल रोमांचक है, बल्कि प्रेरणादायक भी है.
अजित डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था. 1968 में वे भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए और केरल कैडर से अपनी सेवा शुरू की. IPS अधिकारी बनने के बाद डोभाल का झुकाव खुफिया कार्यों की ओर था. उनकी क्षमता, साहस और तेज बुद्धि ने उन्हें खुफिया एजेंसियों के लिए एक अनमोल संपत्ति बना दिया. उन्हें जल्द ही इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में शामिल कर लिया गया, जहां उन्होंने आतंकवाद और सीमा पार खुफिया कार्यों में विशेषज्ञता हासिल की.
पाकिस्तान में 7 साल की जासूसी
भारत-पाकिस्तान के बीच हमेशा से तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं, खासकर 1971 के युद्ध के बाद. डोभाल को 1970 और 1980 के दशक के बीच पाकिस्तान भेजा गया. उनकी पहचान और उनकी भूमिका इतनी गुप्त थी कि केवल कुछ उच्च स्तरीय अधिकारी ही उनके मिशन के बारे में जानते थे. डोभाल ने वहां एक आम नागरिक की तरह जीवन व्यतीत किया. उन्होंने न केवल स्थानीय भाषा और रीति-रिवाजों में महारत हासिल की, बल्कि इस्लामी समाज में खुद को इस तरह ढाल लिया कि कोई भी उनकी असली पहचान पर शक नहीं कर सका.
आतंकी हमलों को रोकने के लिए दिया इनपुट
वे वहां कभी टैक्सी ड्राइवर तो कभी छोटी-मोटी नौकरियां करने वाले साधारण व्यक्ति के रूप में रहे. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि पाकिस्तान में भारत-विरोधी आतंकी संगठनों और नेटवर्क के बारे में जानकारी इकट्ठा करना था. उनकी सूचनाओं ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादी हमलों को रोकने और सीमा पर सुरक्षा मजबूत करने में मदद की. उन्होंने न केवल दुश्मन की योजनाओं को समझा, बल्कि उनकी कमजोरियों का भी फायदा उठाया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार
डोभाल का सबसे चर्चित मिशन 1984 का 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' था. इस ऑपरेशन से पहले उन्होंने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जाकर एक साधारण नागरिक के रूप में खालिस्तान समर्थकों की योजनाओं और गतिविधियों की जानकारी इकट्ठा की. इस ऑपरेशन ने उनकी जासूसी क्षमताओं को साबित किया.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका
डोभाल को 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) नियुक्त किया. यह भूमिका उन्हें भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए रणनीतियां बनाने का अधिकार देती है. NSA बनने के बाद, डोभाल ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, जैसे कि उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक. इन कदमों ने भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों को न केवल साहसी बल्कि आक्रामक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दी.
डोभाल डॉक्ट्रिन
अजित डोभाल की रणनीतियों को 'डोभाल डॉक्ट्रिन' के नाम से भी जाना जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए केवल रक्षात्मक न रहे, बल्कि आक्रामक रुख अपनाए. उनके अनुसार, 'आतंक का जवाब आतंक से' और 'हमलावर की धरती पर जाकर उसे जवाब देना' एक प्रभावी रणनीति है. अजित डोभाल को बेहद अनुशासित और व्यावहारिक व्यक्ति माना जाता है. उनका जीवन पूरी तरह देश सेवा को समर्पित है. वे अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक नहीं करते, और यही कारण है कि उनके परिवार के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. उनका कहना है कि देश की सुरक्षा के लिए यदि अपनी जान भी देनी पड़े, तो यह सौभाग्य की बात है.