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18 मीटर गहराई और 24000 TEU क्षमता, सलाना होगी 1849 करोड़ की बचत, जानें 'Vizhinjam Seaport' कैसे बनेगा देश के लिए गेमचेंजर

Vizhinjam Seaport न केवल लागत घटेगी बल्कि ग्लोबल सप्लाई चेन में भारत की भागीदारी भी मजबूत होगी. इससे भारत को हर साल करोड़ों का नुकसान नहीं होगा. इसके अलावा, इस ट्रांसशिपमेंट के जरिए विदेशी ट्रांसशिपमेंट पोर्ट्स पर निर्भरता कम होगी.

18 मीटर गहराई और 24000 TEU क्षमता, सलाना होगी 1849 करोड़ की बचत, जानें Vizhinjam Seaport कैसे बनेगा देश के लिए गेमचेंजर
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 2 May 2025 1:53 PM IST

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विझिंजम इंटरनेशनल डीपवाटर मल्टीपर्पज पोर्ट का उद्घाटन किया है. यह पोर्ट देश के लिए कई मायनों में खास है, क्योंकि इसके जरिए अब भारत को करोड़ों का नुकसान नहीं होगा. ट्रांसशिपमेंट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी कार्गो या कंटेनर को उसके पोर्ट ऑफ डेस्टिनेशन तक पहुंचाने के लिए एक जहाज से दूसरे जहाज में ट्रांसफर किया जाता है.

यह तब होता है, जब कार्गो को सीधे शिपिंग के रास्ते से डेस्टिनेशन तक पहुंचाना संभव नहीं होता है. इस प्रक्रिया के लिए जिस पोर्ट का उपयोग किया जाता है, उसे ट्रांसशिपमेंट पोर्ट कहा जाता है. चलिए जानते हैं विझिंजम पोर्ट कैसे भारत के लिए गेमचेंजर साबित होगा.

220 मिलियन डॉलर का होता था नुकसान

ट्रांसशिपमेंट न होने के कारण भारतीय उद्योगों को अधिक लागत, अक्षमता, और ओवरलोडेड पोर्ट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह स्थिति देश के लंबी अवधि के आर्थिक हितों के लिए एक जोखिम बन चुकी है. इसके अलावा, विदेशी ट्रांसशिपमेंट पोर्ट्स के इस्तेमाल से इंडियन पोर्ट्स को हर साल लगभग 200 से 220 मिलियन डॉलर तक के संभावित राजस्व का नुकसान होता है.

कैसे काम करता है ट्रांसशिपमेंट

मान लीजिए किसी कंटेनर को एक लोडिंग पोर्ट से भेजा जाना है. सबसे पहले इसे जहाज A पर लादा जाता है और यह जहाज कंटेनर को एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट तक लेकर जाता है. वहां यह कंटेनर उतारा जाता है, और फिर उसे जहाज B पर लादकर अंतिम गंतव्य यानी पोर्ट ऑफ डेस्टिनेशन तक पहुंचा दिया जाता है.

भारत के लिए क्यों है जरूरी

भारत में अभी तक कोई गहरे पानी वाला कंटेनर ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह नहीं है. इस कमी के चलते, भारत का लगभग 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो विदेशी बंदरगाहों जैसे कोलंबो, सिंगापुर और जिब्राल्टर के ज़रिए हैंडल किया जाता है. इसका असर केवल लॉजिस्टिक्स पर नहीं पड़ता, बल्कि देश की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा पर भी गहरा प्रभाव डालता है.

8-10 हजार रुपये एक्सट्रा चार्ज

देश में ट्रांसशिपमेंट सर्विस की कमी के कारण एक्सपोर्ट और इंपोर्ट्स को हर कंटेनर पर एवरेज 8-10 हजार रूपये अलग से देना पड़ता है. इसलिए, भारत को एक आधुनिक, कुशल और गहरे पानी वाला ट्रांसशिपमेंट पोर्ट विकसित करने की तत्काल और रणनीतिक आवश्यकता है, जिससे न केवल लागत घटेगी बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भागीदारी भी मजबूत होगी.

विदेशी पोर्ट्स पर घटेगी निर्भरता

विझिंजम पोर्ट प्रोजेक्ट का मुख्य लक्ष्य यह है कि जो भारतीय कार्गो आज सिंगापुर, कोलंबो, सलालाह और दुबई जैसे विदेशी बंदरगाहों के ज़रिए ट्रांसशिप किया जाता है. उसे देश के भीतर ही संभाला जा सके. इससे न सिर्फ भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि विदेशी पोर्ट्स पर निर्भरता भी घटेगी. भारत में अब तक अंतरराष्ट्रीय शिपिंग रूट्स के पास कोई ऐसा गहरे पानी वाला बंदरगाह नहीं था जो 24,000 TEU क्षमता वाले बड़े मदर वेसल्स को संभाल सके. विझिंजम इस तकनीकी जरूरत को पूरा करेगा.

विझिंजम पोर्ट से क्या होगा फायदा

विझिंजम पोर्ट के खुलने से ट्रांसशिपमेंट की लागत में बड़ी कटौती होगी. इसके अलावा, जहाज और नेविगेशन खर्च घटेंगे. इसके चलते लोगों तक पहुंचने वाली चीजें सस्ती होंगी. यह प्रोजेक्ट न केवल पोर्ट एरिया में भारत की क्षमता को नया आयाम देगी, बल्कि ग्लोबल बिजनेस मैप पर भारत की स्थिति को और मज़बूत करेगी.

इस खाड़ी से 10 समुद्री मील दूर

विझिंजम बंदरगाह की सबसे बड़ी ताकत इसकी ज्योग्राफिकल लोकेशन है. यह यूरोप, फारस की खाड़ी और सुदूर पूर्व को जोड़ने वाले प्रमुख इंटरनेशनल शिपिंग रूट्स से केवल 10 समुद्री मील की दूरी पर है. यह इसे पूर्व-पश्चिम शिपिंग एक्सीस पर एक स्ट्रैटेजिक ट्रांजिट हब बनने की क्षमता प्रदान करता है. इसके अलावा, विझिंजम की भौगोलिक संरचना इसे और भी खास बनाती है. समुद्रतट से केवल एक किलोमीटर के भीतर ही 18 से 20 मीटर की प्राकृतिक गहराई उपलब्ध है, जो इसे बड़े मदर वेसल्स (24,000 TEU तक की क्षमता वाले जहाजों) को बिना ड्रेजिंग के ही संभालने लायक बनाती है.

नरेंद्र मोदी
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