अर्थ फिल्म के लिए नहीं थी महेश भट्ट के पास स्क्रिप्ट, जानें फिर कैसे बनी फिल्म
शबाना आजमी बॉलीवुड की बेहतरीन एक्ट्रेस हैं. उनकी एक्टिंग के हजारों दीवाने हैं. साथ ही, एक्ट्रेस ने न सिर्फ फिल्मों में बल्कि थिएटर और टेलीविजन में भी काम किया है. वह महेश भट्ट की फिल्म अर्थ में काम कर चुकी हैं. यह फिल्म पैरलल सिनेमा का हिस्सा है.

1982 में रिलीज हुई फिल्म अर्थ को काफी पसंद किया गया था. यह फिल्म महेश भट्ट और परवीन बॉबी के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की कहानी है. इस फिल्म में शबाना आज़मी, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल और राज किरण जैसे स्टार्स ने काम किया है. वहीं, अब इस फिल्म को लेकर एक्ट्रेस ने बताया कि शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के पास कोई स्क्रिप्ट नहीं थी.
हाल ही में MAMI मुंबई फिल्म फेस्टिवल में एक सेशन के दौरान शबाना आजमी ने बताया कि "महेश भट्ट अपनी पर्सनल प्रॉब्लम्स से गुजर रहे थे. हमारे पास कोई स्क्रिप्ट नहीं थी. हमारे पास एक स्टोरी आइडिया था और जैसे-जैसे हम शूटिंग कर रहे थे, यह सब बहुत ही तदर्थ था. मैं अपने कपड़े पहन सेट पर पहुंच जाती थी, लेकिन उनके अंदर कुछ था. ऐसा लगता था जैसे वह एक बटन दबाते और मैं तुरंत शुरू हो जाती थी. यह अलग एक्सपीरियंस था"
सीन पर ये बात कहते थे महेश भट्ट
शबाना आजमी ने बताया कि "उदाहरण के लिए अगर वह मुझे कोई मुश्किल सीन देकर इसे तुरंत करने की उम्मीद करते थे. इस पर मैं उनसे कहती थी 'मैं यह नहीं कर सकती', जिसके जवाब में महेश कहते थे' ऑर्टिफिशियल कॉन्फ्लिक्ट का टाइम नहीं है, हमारे पास समय नहीं है, बेहतर है कि आप इसे कर लें."
महेश भट्ट ने बताई थी अर्थ फिल्म से जुड़ी कहानी
फिल्मफेयर से बात करते हुए महेश भट्ट ने बताया था कि "अर्थ ने मेरे घावों को और गहरा कर दिया, मेरी जिंदगी जल गई. मैंने इसे फ्यूल के रूप में इस्तेमाल करने की हिम्मत की. भावनात्मक सच्चाई मेरे जीवन से ही निकली है. अपने 20 के दशक में मैंने अपनी पहली वाइफ किरण के साथ एक फेयरीटेल जैसा रोमांस किया.मैं उससे पागलों की तरह प्यार करता था. आशिकी में भी यही सब कुछ था. जल्द ही हमारी शादी हो गई. मैं 21 साल की उम्र में पिता बन गया. कुछ समय बाद मैं इंडिया की टॉप एक्ट्रेस परवीन बॉबी के साथ रिश्ते में आ गया. इस रिश्ते ने मुझ पर बहुत बुरा असर डाला था."
'मौत को करीब से देखने जैसा था'
महेश भट्ट ने कहा "परवीन पत्थर में तब्दील हो गई थी. यह मौत को करीब से देखने जैसा था. उस आग की लपटें और अपनी पहली पत्नी को छोड़ने का दर्द, जिसे मैं बहुत प्यार करता था.यह सब मेरे इमोशनल टैंक का हिस्सा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुझे अपनी तरह से एक फिल्म बनानी चाहिए, जैसा कि मैं इसे देखता हूं. मुझे उन मौन के बारे में फिल्में बनानी चाहिए जो हम बातचीत में सुनते रहते हैं, बोले गए शब्दों के नीचे. यहीं से अर्थ की शुरुआत हुई."