अब समझ पाई कीमत... Vaibhavi Merchant को 26 साल बाद मिला दूसरी बार नेशनल अवार्ड
वैभवी मर्चेंट ने अपनी फीलिंग शेयर करते हुए कहा, 'जब मुझे 21 साल की उम्र में नेशनल अवार्ड मिला था, तो मैं इतनी छोटी थी कि मुझे इसका अहसास ही नहीं था. बता दें कि वैभवी को अपना पहला नेशनल अवार्ड साल 1999 में 'हम दिल दे चुके सनम' के गाने ढोली तारों ढोल बाजे के लिए मिला था.

कोरियोग्राफर वैभवी मर्चेंट के लिए 71वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एक बेहद खास और इमोशनल पल गया. उन्हें रणवीर सिंह और आलिया भट्ट की फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ के लोकप्रिय गाने 'ढिंढोरा बाजे रे' के लिए बेस्ट कोरियोग्राफर का अवार्ड मिला है. यह अवार्ड उनके करियर के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि उन्हें यह सम्मान लगभग 28 साल बाद दोबारा मिला है. पहली बार उन्हें सिर्फ 21 साल की उम्र में नेशनल अवार्ड मिला था. अब जब वह 49 साल की हो चुकी हैं, तो यह जीत उन्हें फिर से एक नई एनर्जी और प्राउड का अनुभव दे रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स को दिए गए एक इंटरव्यू में वैभवी मर्चेंट ने अपनी फीलिंग शेयर करते हुए कहा, 'जब मुझे 21 साल की उम्र में नेशनल अवार्ड मिला था, तो मैं इतनी छोटी थी कि मुझे इसका अहसास ही नहीं था. मैं तब लगातार काम कर रही थी, तब समय के साथ मुझे इस सम्मान की कमी महसूस होने लगी तब मन में आया कि मुझे फिर से ऐसा कुछ करना है, जो इस अवार्ड के लायक हो.' उन्होंने आगे कहा कि इस बार का अवार्ड उनके लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि अब वह पूरी तरह समझती हैं कि यह सम्मान क्यों खास होता है.' बता दें कि वैभवी को अपना पहला नेशनल अवार्ड साल 1999 में 'हम दिल दे चुके सनम' के गाने ढोली तारों ढोल बाजे के लिए मिला था.
आइटम सॉन्ग के लिए मिलता तो ख़ुशी नहीं होती
आज के समय में जब अकसर आइटम सॉन्ग या केवल लोकप्रियता को अवार्ड मिलते हैं, वैभवी मर्चेंट इस बात से खुश हैं कि उन्हें यह पुरस्कार गाने की कोरियोग्राफी और उसकी कलात्मकता के लिए मिला. उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि अगर यह किसी आइटम सॉन्ग के लिए होता, तो मैं इतनी खुश होती. ये अवार्ड 'ढिंढोरा' जैसे गाने को मिलने से मुझे महसूस हुआ कि कोरियोग्राफी को उसकी असल कला के लिए पहचाना गया है, न कि सिर्फ शोहरत के लिए.'
हिंदी सिनेमा में कम देखने को मिलता है
'ढिंढोरा बाजे रे' के बारे में बात करते हुए वैभवी ने कहा कि यह गाना उनके लिए बेहद खास है, क्योंकि इसमें उन्होंने दो मेल कलाकारों के बीच शास्त्रीय नृत्य (कथक) को प्रेजेंट किया, जो हिंदी सिनेमा में कम ही देखने को मिलता है. कई शास्त्रीय पुरुष कलाकारों ने मुझसे कहा कि गाने में जो कथक दिखाया गया है, वह उन्हें बहुत अच्छा लगा. रणवीर सिंह और तोता रॉय चौधरी जैसे एक्टर, जो मूल रूप से शास्त्रीय डांसर नहीं हैं, उन्होंने भी उसे बेहद अच्छे से निभाया और यह मेरे लिए गर्व की बात थी.'
वैभवी मर्चेंट हिंदी फिल्मों की दुनिया में एक बड़ा नाम हैं. उन्होंने अपने करियर में कई हिट गानों को कोरियोग्राफ किया है जैसे ‘कजरारे’, 'शुभारंभ', 'धूम ताना', 'मशालों वाला प्यार', और अब ‘ढिंढोरा बाजे रे’. उनका काम केवल एंटरटेनमेंट तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने भारतीय नृत्य कला को सिनेमा के माध्यम से नया मंच और पहचान दी है.