हरकृष्ण गोस्वामी से कैसे बने Manoj Kumar? 'फैशन' से शुरुआत, हिंदी सिनेमा को दी ब्लॉकबस्टर फिल्में
उनकी कुछ यादगार फ़िल्मों में 'शहीद' (1965) शामिल है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन को दर्शाया गया था. 'पूरब और पश्चिम' (1970), सांस्कृतिक पहचान की खोज; 'रोटी कपड़ा और मकान' (1974), सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है

दिग्गज स्टार और फिल्म निर्देशक मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक शुक्रवार सुबह 4.03 बजे कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. कुमार जिन्होंने हिंदी सिनेमा को अपना 35 साल योगदान दिया आज उनके निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर है.
24 जुलाई, 1937 को एबटाबाद, ब्रिटिश भारत (अब खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान में) में जन्मे हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी, वे और उनका परिवार विभाजन के दौरान दिल्ली चले गए जब वे 10 साल के थे. बाद में उन्होंने दिग्गज दिवगंत स्टार दिलीप कुमार, अशोक कुमार और कामिनी कौशल के प्रति अपनी तारीफ से प्रेरित होकर, खासतौर से फिल्म 'शबनम' में दिलीप कुमार के किरदार के बाद, अपना स्क्रीन नाम 'मनोज कुमार' अपना लिया.
1957 से शुरू हुआ करियर
मनोज कुमार अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिसके कारण उन्हें 'भारत कुमार' (भारत का अर्थ इंडिया) टैग मिला। उनके करियर की शुरुआत 1957 की फिल्म 'फैशन' से हुई, जिसमें उन्होंने 20 की उम्र में होने के बावजूद एक बुजुर्ग का किरदार निभाया था. उनकी पहली लीड फिल्म 'कांच की गुड़िया' (1961) में आई, लेकिन यह 'हरियाली और रास्ता' (1962) थी, जिसमें माला सिन्हा के साथ काम किया. जिसने उन्हें व्यावसायिक रूप से सफल एक्टर के रूप में हिंदी सिनेमा में स्टैब्लिश किया.
ब्लॉकबस्टर रही पहली निर्देशित फिल्म
उन्हें उन फिल्मों में उनके काम के लिए व्यापक मान्यता मिली, जिनमें सामाजिक संदेशों को मनोरंजन के साथ मिलाया गया था, खासकर 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें 'जय जवान जय किसान' के नारे से प्रेरित एक फिल्म बनाने के लिए इनकरेज किया. इसके परिणामस्वरूप उनकी निर्देशन की पहली फिल्म 'उपकार' (1967) बनी, जो एक ब्लॉकबस्टर थी, जिसके लिए उन्हें दूसरी बेस्ट फीचर फिल्म के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड और उनका पहला फिल्मफेयर बेस्ट डायरेक्टर अवार्ड मिला.
ये है इन फिल्मों के मायने
उनकी कुछ यादगार फ़िल्मों में 'शहीद' (1965) शामिल है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन को दर्शाया गया था. 'पूरब और पश्चिम' (1970), सांस्कृतिक पहचान की खोज; 'रोटी कपड़ा और मकान' (1974), सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है; और 'क्रांति'(1981), भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर एक एपिक फिल्म है. अपने चेहरे को हाथ से ढकने का उनका स्टाइल और व्यापक रूप से पहचाना जाने लगा. 'उपकार' का "मेरे देश की धरती" जैसे गीत भारत के गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस समारोहों के दौरान प्रमुख गीत बने हुए हैं.
पद्म श्री से हुए सम्मानित
अपने पूरे करियर के दौरान, कुमार ने भारतीय सिनेमा में अपने आजीवन योगदान के लिए सात फिल्मफेयर अवार्ड, 1992 में पद्म श्री और 2016 में भारत के सर्वोच्च सिनेमाई सम्मान प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के अवार्ड सहित कई अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके है. एक्टिंग और निर्देशन से संन्यास लेने के बाद, उन्होंने राजनीति में कदम रखा और 2004 के आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए.