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इंडिगो की बादशाहत का साइड इफेक्ट: एक एयरलाइन की समस्या ने देश के एयर ट्रैवल को बंधक बना लिया

इंडिगो में आए बड़े संचालन संकट के चलते पिछले सप्ताह सैकड़ों उड़ानें रद्द हुईं और देशभर में एयरपोर्ट्स पर अफरातफरी मच गई. विशेषज्ञों के अनुसार यह स्थिति सिर्फ ऑपरेशनल गलती नहीं, बल्कि भारत के एविएशन सेक्टर में अत्यधिक मार्केट कंसंट्रेशन का परिणाम है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार आज इंडिगो भारत के घरेलू यात्रियों के लगभग 65% हिस्से को संभालती है और 1,200 में से करीब 600 रूट्स पर उसका पूर्ण मोनोपॉली है. एक कंपनी पर इतनी निर्भरता की वजह से उसके फेल होते ही पूरा एविएशन सिस्टम चरमरा गया.

इंडिगो की बादशाहत का साइड इफेक्ट: एक एयरलाइन की समस्या ने देश के एयर ट्रैवल को बंधक बना लिया
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 9 Dec 2025 9:13 AM

देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन इंडिगो पिछले सप्ताह से गंभीर संचालन संकट से जूझ रही है, जिसके चलते प्रतिदिन बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द हुईं और पूरे देश में यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा. एयरपोर्ट पर अफरातफरी, लंबा इंतजार, और विकल्पों की कमी ने भारतीय एविएशन सेक्टर की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया.

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यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी नहीं था, बल्कि यह संकेत था कि भारतीय हवाई बाजार किस हद तक एक कंपनी पर निर्भर हो चुका है. जब एक एयरलाइन फिसलती है तो पूरा सिस्टम लड़खड़ा जाता है. इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इंडिगो की मार्केट पावर इतनी अधिक है कि यह स्थिति अब “Too Big To Fail” की परिभाषा में आने लगी है - यानी इतनी बड़ी कि उसके असफल होने की कीमत पूरा देश चुकाएगा.

हर 10 में से 6 यात्री इंडिगो से उड़ते हैं

ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, भारत में घरेलू उड़ानों से यात्रा करने वाले हर 10 में से 6 यात्री इंडिगो से उड़ते हैं. लगभग 65 प्रतिशत पैसेंजर वॉल्यूम इंडिगो के पास है, जिससे वह न सिर्फ भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन बन चुकी है बल्कि उसके बिना घरेलू उड्डयन तंत्र की कल्पना करना भी मुश्किल हो गया है. भारत की एविएशन इंडस्ट्री दिखने में भले ही डुओपॉली लगे, जहां इंडिगो के बाद एयर इंडिया समूह 26.5 प्रतिशत हिस्सा संभालता है, लेकिन असल हकीकत इससे कहीं अधिक असंतुलित है. दोनों मिलकर भारत के घरेलू एविएशन बाजार के 90 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा रखते हैं, जो किसी भी उद्योग के लिए असामान्य और चिंताजनक स्तर का मार्केट कंसंट्रेशन है.

600 रूट पर इंडिगो की मोनोपॉली

कहानी सिर्फ मार्केट शेयर पर खत्म नहीं होती; असली दबदबा रूट नेटवर्क पर है. भारत में लगभग 1,200 घरेलू रूट ऑपरेट होते हैं, जिनमें से 950 से ज्यादा रूट पर इंडिगो उड़ान भरती है. इनमें से लगभग 600 रूट ऐसे हैं जहां इंडिगो की पूरी मोनोपॉली है - यानी वहां दूसरी कोई एयरलाइन मौजूद ही नहीं. इसके अलावा करीब 200 रूट ऐसे हैं जहां इंडिगो सिर्फ एक प्रतियोगी के साथ उड़ान भरती है, यानी डुओपॉली की स्थिति. यह मैपिंग स्पष्ट रूप से दिखाती है कि इंडिगो सिर्फ मार्केट शेयर में ही नहीं बल्कि रूट कनेक्टिविटी में भी सबसे आगे है और भारत के बड़े हिस्से की हवाई यात्रा उसी पर निर्भर हो गई है. दिलचस्प बात यह है कि ये मोनोपॉली रूट मुख्यतः सरकारी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी स्कीम के अंतर्गत आने वाले रूट नहीं हैं, जहां मोनोपॉली डिजाइन के कारण दी जाती है. इंडिगो के मोनोपॉली रूट इसलिए बने क्योंकि बाकी एयरलाइंस टिक नहीं पाईं और बाजार से बाहर हो गईं.

कई एयरलाइंस के बंद होने का पूरा फायदा इंडिगो को

एविएशन विशेषज्ञ मानते हैं कि इंडिगो की यह स्थिति योजनाबद्ध नहीं थी, बल्कि पिछले दो दशकों में देश की कई एयरलाइनों के बंद होने का सीधा परिणाम है. जेट एयरवेज, किंगफिशर, गो फर्स्ट जैसी एयरलाइंस के पतन के कारण बाजार में खाली जगह बनती गई और इंडिगो लगातार विस्तार करती गई. एक तरफ उसका समयपालन, सुरक्षित संचालन, कम लागत मॉडल और आक्रामक नेटवर्क रणनीति की तारीफ की गई, वहीं दूसरी ओर उसके बढ़ते वर्चस्व ने बाजार को असंतुलित कर दिया. दूसरे शब्दों में, इंडिगो की सफलता और बाकी एयरलाइनों की विफलताएं मिलकर ऐसी संरचना बना चुकी हैं जहां प्रतिस्पर्धा बेहद कम बची है और उपभोक्ताओं के विकल्प सीमित होते जा रहे हैं.

Image Credit: ANI

देश अभी इंडिगो के बिना नहीं चल सकता

पिछले सप्ताह के संचालन संकट ने एक और बड़ी चिंता को उजागर किया. जब इंडिगो में अफरातफरी मची, तो DGCA को मजबूरी में अस्थायी छूट देकर राहत उपाय लागू करने पड़े ताकि संचालन चरणबद्ध रूप से सामान्य हो सके. यह स्थिति अपने आप में साबित करती है कि देश अभी इंडिगो के बिना नहीं चल सकता. यह निर्भरता जितनी दिखाई देती है उससे कहीं ज्यादा गहरी है. संसद में बोलते हुए नागरिक उड्डयन मंत्री के राममोहन नायडू ने स्वीकार किया कि भारत जैसे तेज़ी से बढ़ते बाजार में सिर्फ दो एयरलाइन दिग्गज पर्याप्त नहीं हैं और “देश को कम से कम पांच बड़ी एयरलाइंस की जरूरत है.” सरकार की यह प्रतिक्रिया साफ संकेत देती है कि एविएशन बाजार में खतरा मौजूद है और इससे बचने के लिए संतुलित प्रतिस्पर्धा जरूरी है.

मोनोपॉली और डुओपॉली चलाने वाली कंपनियों की बड़ी जिम्मेदारी

विशेषज्ञों के अनुसार बड़ी कंपनियां जरूरी हैं, लेकिन जब कोई कंपनी बाजार में इतनी बड़ी हो जाए कि उसका अस्तित्व पूरे सिस्टम की स्थिरता को निर्धारित करे, तो स्थिति खतरनाक हो जाती है. बड़ी कंपनियां दक्षता, नवाचार और विस्तार ला सकती हैं, लेकिन अत्यधिक वर्चस्व प्रतियोगिता को कुचल देता है. एविएशन विशेषज्ञ अमेय जोशी के शब्दों में, “एविएशन में रूट स्तर पर मोनोपॉली कई बार फायदेमंद होती है - वरना कई रूट बंद हो जाते और यात्रियों को कनेक्टिंग फ्लाइट्स लेनी पड़तीं. लेकिन इससे मोनोपॉली और डुओपॉली चलाने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है, और ऐसे बाजार में सख्त पेनल्टी की व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि एक गलती का असर पूरे देश पर पड़ता है.”

डॉमिनेंस का दुरुपयोग है असली समस्या

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि “डॉमिनेंस समस्या नहीं, बल्कि डॉमिनेंस का दुरुपयोग समस्या है.” हालांकि वे यह भी स्वीकार करते हैं कि अत्यधिक उच्च बाजार हिस्सेदारी नए खिलाड़ियों को बाजार में उतरने से हतोत्साहित करती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि नीतियां बड़े खिलाड़ियों के पक्ष में झुकी हुई हैं. जब बाजार का विस्तार ऑर्गेनिक ग्रोथ की बजाय लगातार अधिग्रहणों के माध्यम से होता है तो यह आशंका और बढ़ जाती है कि भविष्य में बाकी व्यवसाय धीरे-धीरे बड़े खिलाड़ियों द्वारा निगल लिए जाएंगे.

कई और सेक्‍टर्स में भी खत्‍म हो रहा कॉम्पिटिशन

इंडिगो का मौजूदा दौर सिर्फ एविएशन सेक्टर के लिए चेतावनी नहीं है, बल्कि उन सभी क्षेत्रों के लिए है जहां बाजार का संतुलन तेज़ी से शीर्ष कंपनियों की तरफ झुक रहा है. टेलीकॉम, सीमेंट, स्टील, प्राइवेट पोर्ट्स, प्राइवेट एयरपोर्ट्स और ई-कॉमर्स के विशिष्ट हिस्सों में भी पिछले वर्षों में मार्केट कंसंट्रेशन बढ़ा है. हर्फिंडाहल–हिर्शमन इंडेक्स (HHI), जो मार्केट कंसंट्रेशन मापने का सबसे विश्वसनीय ग्लोबल पैमाना है, स्पष्ट रूप से दिखाता है कि एविएशन, टेलीकॉम और स्टील जैसे क्षेत्र भारत में 1,800 पॉइंट के उस स्तर से ऊपर पहुंच चुके हैं जिसे ‘अत्यधिक कंसंट्रेशन’ माना जाता है. इसका मतलब यह है कि प्रतिस्पर्धा लगातार घटती जा रही है और बाजार दो–तीन कंपनियों के इर्द-गिर्द सिमट रहा है.

इस स्थिति के व्यापक खतरे कई स्तरों पर दिखाई दे सकते हैं - यदि प्रमुख कंपनी किसी संकट में फंसती है तो पूरा उद्योग प्रभावित होता है, उपभोक्ताओं के विकल्प कम हो जाते हैं, टिकट की कीमतें बढ़ सकती हैं, सेवा की गुणवत्ता घट सकती है और नवाचार भी धीमा पड़ सकता है. एविएशन जैसे ग्राहक-केंद्रित क्षेत्र में इसका असर तुरंत दिखाई देता है, लेकिन अन्य B2B सेक्टरों में यह जोखिम उतना स्पष्ट नजर नहीं आता, इसलिए उस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता.

वर्चस्व जितना बढ़ेगा, सिस्टम रिस्क उतना ही गहरा होगा

इंडिगो की सफलता निर्विवाद है - इसके ऑपरेशनल स्टैंडर्ड, समयपालन और सुरक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है. लेकिन पिछले सप्ताह की घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि एक मजबूत बाजार जहां प्रतिस्पर्धा कम हो, वहां किसी एक खिलाड़ी की समस्या एक सामान्य ऑपरेशनल चुनौती नहीं बल्कि राष्ट्रीय समस्या बन सकती है. इसलिए भारत के तेजी से बढ़ते एविएशन सेक्टर के लिए संतुलित प्रतिस्पर्धा, नए खिलाड़ियों के लिए अनुकूल माहौल और ऐसी व्यवस्थाएं बनाना जरूरी है, जो उपभोक्ता और उद्योग दोनों को सुरक्षित रखें. फिलहाल, इंडिगो के संचालन सामान्य होने की प्रक्रिया जारी है, लेकिन यह संकट लंबे समय तक एक चेतावनी के रूप में याद रखा जाएगा कि किसी भी सेक्टर में वर्चस्व जितना बढ़ेगा, सिस्टम रिस्क उतना ही गहरा होगा.

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