बीएनपी नेता तारिक रहमान की वापसी से किसे लग रहा डर? इसी वजह से तो नहीं हुई शरीफ उस्मान हादी की हत्या

बांग्लादेश में चुनाव से पहले बीएनपी नेता तारिक रहमान की वापसी की घोषणा ने सियासी भूचाल ला दिया है. इसी बीच युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने हिंसा, अस्थिरता और भारत-विरोधी माहौल को और भड़का दिया. सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह हत्या तारिक रहमान की वापसी से जुड़ी है और क्या जमात-ए-इस्लामी व अंतरिम सरकार इस उथल-पुथल से लाभ उठा रही हैं. गिरफ्तारी न होना, अल्पसंख्यकों पर हमले और चुनाव टालने की आशंका इस पूरे घटनाक्रम को और संदिग्ध बनाते हैं.;

( Image Source:  ANI & X/trahmanbnp )
Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On :

बांग्लादेश एक बार फिर ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां राजनीति, हिंसा और साज़िश की रेखाएं आपस में घुलती दिख रही हैं. 17 साल के निर्वासन के बाद तारिक रहमान की वापसी की घोषणा ने चुनावी माहौल में नई हलचल पैदा कर दी है. लेकिन इसी ऐलान के साथ युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया और सवाल उठने लगे कि क्या यह महज एक अपराध है या राजनीति से प्रेरित संदेश?

12 फरवरी को प्रस्तावित चुनाव से पहले शरीफ उस्मान हादी की हत्या, हिंसा का भड़कना, गिरफ्तारी का न होना, भारत-विरोधी नारों की तेज़ी और धार्मिक ध्रुवीकरण इन सबने संदेह को और गहरा कर दिया है. क्या हादी की हत्या का तार तारिक रहमान की वापसी से जुड़ता है? और क्या किसी को इस वापसी से सबसे ज़्यादा डर है?

स्‍टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्‍सक्राइब करने के लिए क्लिक करें

चुनावी ऐलान और वापसी का संयोग

पिछले साल शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद पहली बार चुनाव की तारीख घोषित हुई. इसी के साथ 25 दिसंबर को तारिक रहमान की वापसी की घोषणा हुई. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह संयोग नहीं बल्कि चुनावी समीकरणों को बदलने वाला संकेत था. बता दें, बीएनपी नेता तारिक रहमान, खालिदा जिया के बेटे हैं.

हादी की हत्या: सवालों के घेरे में जांच

हादी की हत्या के एक हफ्ते बाद भी गिरफ्तारी न होना जांच पर सवाल खड़े करता है. पहले आरोप बीएनपी समर्थकों पर आए, फिर आवामी लीग के छात्र संगठन पर उंगली उठी. यह असमंजस बताता है कि मामला सिर्फ कानून-व्यवस्था का नहीं, राजनीतिक दबावों का भी है.

हिंसा और भारत-विरोधी नैरेटिव

हत्या के बाद ढाका सहित कई इलाकों में हिंसा भड़की. भारतीय प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया और सोशल मीडिया पर भारत-विरोधी नैरेटिव तेज़ हुआ. यह माहौल चुनाव से पहले अस्थिरता बढ़ाने का संकेत देता है.

जमात का डर या जमात की रणनीति?

कई हलकों में हिंसा की जड़ जमात-ए-इस्लामी के भय को माना जा रहा है. जमात को बीएनपी और आवामी लीग—दोनों से चुनौती दिखती है. अस्थिरता से उसे राजनीतिक स्पेस मिलता है.

अंतरिम सरकार की भूमिका पर सवाल

अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के फैसलों आवामी लीग पर सख्ती, जमात को मान्यता ने संदेह बढ़ाया है. प्रशासन, सेना और शिक्षण संस्थानों में जमात से जुड़े चेहरों की मौजूदगी पर भी सवाल उठे हैं.

हादी का राजनीतिक कद

हादी इंकलाब मंच के चेयरमैन थे और ढाका में बीएनपी के वरिष्ठ नेता मिर्जा अब्बास के खिलाफ नामांकन दाखिल कर चुके थे. चुनावी चुनौती भले सीमित रही हो, लेकिन उनकी हत्या एक शक्तिशाली प्रतीक बन गई जिसे भड़काऊ राजनीति ने हवा दी.

अल्पसंख्यक, हिंसा और पलायन

हत्या के बाद अल्पसंख्यकों पर हमलों की खबरें बढ़ीं. विश्लेषकों का कहना है कि इससे पलायन तेज़ हो सकता है और कट्टरपंथी ताकतों का ध्रुवीकरण मजबूत होगा जो चुनाव टालने या प्रभावित करने के काम आ सकता है.

तारिक रहमान की वापसी से किसे डर?

राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक, तारिक रहमान की वापसी बीएनपी को नई ऊर्जा दे सकती है. यही संभावना यूनुस सरकार और जमात के हितों के खिलाफ जाती दिखती है. ऐसे में हादी की हत्या और बाद की हिंसा को राष्ट्रवादी उभार रोकने की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है. हादी की हत्या केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि चुनावी राजनीति के गहरे खेल का संकेत बन चुकी है. जवाबदेही और पारदर्शी जांच के बिना यह सवाल बना रहेगा डर किसे है, और अस्थिरता से किसे फायदा?

Similar News