विदेश में रहकर भी नहीं बदली सोच! UK में रहने वाले भारतीय नहीं चाहते बेटियां, करवा रहे भ्रूण हत्‍या; रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

यह चौंकाने वाली सच्चाई है कि आज भी बेटियों को लेकर समाज की सोच में वह बदलाव नहीं आ पाया, जिसकी उम्मीद हम करते रहे हैं. कहा जाता है कि विदेश जाकर लोगों का नज़रिया आधुनिक हो जाता है, लेकिन UK में रह रहे कई भारतीय परिवारों का मामला इसके बिल्कुल उलट तस्वीर दिखाता है. नई रिपोर्ट बताती है कि बेटियों को बोझ समझने वाली मानसिकता अब भी ज़िंदा है, और वही पुरानी सोच, जो लड़कों को प्राथमिकता देती है. सीमा पार जाकर भी नहीं बदली है.;

( Image Source:  AI SORA )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 11 Dec 2025 12:40 PM IST

कहते हैं कि विदेश जाकर सोच बदल जाती है, अवसर बढ़ते हैं और नजरिया मॉर्डन हो जाता है. लेकिन एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने इस धारणा को पूरी तरह हिला दिया है. ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के कई परिवारों में आज भी बेटियों को लेकर वही पुरानी मानसिकता जड़ें जमाए बैठी है. समाज चाहे जितना आगे बढ़ जाए, तकनीक और तरक्की भले नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाए, लेकिन बेटियों को लड़कों से कम समझने का नजरिया अब भी कुछ परिवारों की सोच में गहराई से बैठा दिखाई दे रहा है. UK के आधिकारिक जन्म डेटा में सामने आए असामान्य आंकड़ों ने यह साफ कर दिया है कि प्रवासी भारतीय परिवारों में भी पुत्र-प्रधान मानसिकता अब भी उतनी ही मजबूत है.

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रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि आधुनिक माहौल और विदेशी कानूनों के बावजूद भारतीय मूल के कुछ परिवार सांस्कृतिक दबाव, सामाजिक उम्मीदों और वंश चलाने की सोच से बाहर नहीं निकल पाए हैं. इतनी तरक्की के बाद भी बेटा-बेटी के अंतर को लेकर भेदभाव जारी है और बच्चियों के भ्रूण को निशाना बनाए जाने के संकेत चिंता बढ़ा रहे हैं.

क्या कहती है रिपोर्ट 

यूके के ऑफिस फॉर हेल्थ इम्प्रूवमेंट एंड डिस्पैरिटीज ने 2017 से 2021 तक के जन्म रिकॉर्ड की जांच की. इस जांच में भारतीय मूल के परिवारों से जुड़ा एक हैरान करने वाला तथ्य सामने आया. जिन घरों में पहले से दो या उससे ज्यादा बच्चे थे, वहां तीसरे या बाद के बच्चों में लड़कों का अनुपात काफी ज्यादा पाया गया. हर 100 लड़कियों पर करीब 113 लड़के पैदा हुए, जबकि सामान्य तौर पर यह अनुपात 102 से 106 के बीच माना जाता है. करीब 15,401 जन्मों का यह डेटा बता रहा है कि यह फर्क सिर्फ इत्तेफाक नहीं है. इसी दौरान ब्रिटेन में कुल 36 लाख बच्चों का जन्म हुआ और वहां औसत अनुपात 105.4 लड़के प्रति 100 लड़कियां रहा, जो बिल्कुल सामान्य सीमा में आता है. ऐसे में भारतीय मूल के परिवारों में दिखा यह असमान संतुलन और भी ज्यादा साफ दिखाई देता है.

इंग्लैंड में हो सकते हैं 400 मामले

रिपोर्ट के अनुसार, जन्म आंकड़ों में दिख रहा यह फर्क इस बात की तरफ संकेत करता है कि कुछ परिवार शायद लड़की होने पर गर्भपात जैसे गैरकानूनी कदम उठा रहे हैं. जांच करने वालों का अनुमान है कि पिछले पांच साल में इंग्लैंड और वेल्स में करीब 400 मामलों में गर्भ में पल रही बच्चियों को जानबूझकर निशाना बनाया गया हो सकता है.

सांस्कृतिक दबाव है कारण 

दक्षिण एशिया के कई देशों में आज भी पुराने सामाजिक सोच का गहरा असर दिखाई देता है. बेटे को परिवार का वारिस मानना, बुजुर्गों की देखभाल की उम्मीदें और समाज का दबाव–ये सब वजहें मिलकर लोगों की सोच को प्रभावित करती हैं. यही मान्यताएं विदेश में रहने वाले कुछ भारतीय परिवारों पर भी असर डालती दिख रही हैं. 2017 से 2021 के बीच भारतीय मूल की महिलाओं द्वारा कराए गए करीब 13,843 गर्भपात भी इसी मुद्दे से जोड़कर देखे जा रहे हैं. यह आंकड़ा बताता है कि बेटा-बेटी के फर्क को लेकर पुरानी सोच अभी भी कई परिवारों में बनी हुई है.

सरकार की सख्त चेतावनी

स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने साफ कहा है कि इंग्लैंड और वेल्स में सिर्फ बच्चे का लिंग देखकर गर्भपात करना पूरी तरह से गैरकानूनी है. उनका कहना है कि अगर कोई सिर्फ इसलिए गर्भपात कराए कि बच्चा लड़की है, तो यह कानून के तहत अपराध माना जाएगा. किसी भी डॉक्टर द्वारा ऐसा करना गंभीर अपराध है. सरकार ने सभी से अपील की है कि अगर किसी को ऐसी गैरकानूनी गतिविधियों की जानकारी मिले तो तुरंत पुलिस को सूचित करें.

यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों का विश्लेषण ही नहीं है, बल्कि यह उन पुराने सामाजिक सोच और रिवाजों पर भी सवाल उठाती है, जिन्हें बदलने की आज भी जरूरत है. यह दिखाता है कि बेटियों और बेटों के बीच असमान सोच को बदलना जरूरी है ताकि समाज में समानता कायम हो.

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