दुनिया के किसी भी देश को घुटनों पर ला सकती है चीन की यह सीक्रेट साइबर एजेंसी, अमेरिका ही नहीं भारत के लिए भी खतरे की घंटी
चीन की Ministry of State Security (MSS) अब सिर्फ पारंपरिक जासूसी तक सीमित नहीं रही - Salt Typhoon जैसे ग्रुपों के जरिये उसने वैश्विक नेटवर्कों में गहरे सेंध लगा ली है. 2023 के खुलासों में पता चला कि अमेरिकी पावर ग्रिड, संचार और जल व्यवस्था तक मैलवेयर के जरिए पहुंच संभव हुई; चोरी किया गया डेटा विरोधियों की लोकेशन, बातचीत और गतिविधियों को ट्रैक करने में काम आ सकता है. MSS ने टेक कंपनियों और हैकर-टैलेंट को जोड़कर खुद को एक स्ट्रैटेजिक साइबर-पावरहाउस बना लिया है - जो अमेरिका, यूरोप और भारत के लिए गंभीर खतरा है.;
दुनियाभर के देशों और संस्थानों पर साइबर हमलों की खबरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं. जब भी किसी स्पाईवेयर की चर्चा होती है तो इजरायल के पेगासस का नाम तुरंत जेहन में आता है. चीन के हैकर्स भी अमेरिका और भारत जैसे देशों पर लगातार साइबर हमले करते रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि चीन की एक एजेंसी अब इन मामलों में कहीं आगे बढ़ चुकी है और सबको पीछे छोड़ते हुए साइबर पावरहाउस बन चुकी है?
Salt Typhoon नाम का चीनी हैकर ग्रुप किसी भी देश की सुरक्षा के लिए नया खतरा बनकर उभरा है. यह Ministry of State Security (MSS) के तहत काम करता है. MSS अब सिर्फ पारंपरिक जासूसी या डेटा चोरी तक सीमित नहीं रही. यह वर्षों तक गुप्त तरीके से दुनियाभर के नेटवर्क में सेंध लगा सकती है, संवेदनशील जानकारी चुरा सकती है और किसी भी देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है.
साल 2023 में जब अमेरिकी अधिकारियों ने पाया कि चीन के सरकारी हैकर्स ने अमेरिका के पावर ग्रिड, संचार और पानी की आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों में घुसपैठ कर ली थी, तो यह केवल एक साधारण हैकिंग नहीं थी. यह इतना खतरनाक था कि सही समय पर इसे सक्रिय कर दिया जाए तो पूरे देश की जीवनरेखा ही ठप हो सकती थी.
अब MSS सिर्फ चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़ नहीं, बल्कि वैश्विक साइबर रणनीति में सबसे शक्तिशाली खिलाड़ी बन चुकी है.
जब अमेरिका का पूरे सिस्टम को मार जाता लकवा
साल 2023 में अमेरिकी अधिकारियों ने जब पहली बार पाया कि चीन के सरकारी हैकर्स ने अमेरिका के महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर - पावर ग्रिड, कम्युनिकेशन सिस्टम और वॉटर सप्लाई नेटवर्क में घुसपैठ कर ली है, तो यह एक झटका था. यह साधारण साइबर हमला नहीं था, बल्कि ऐसा खतरनाक मैलवेयर था जो सही वक्त पर एक्टिव होकर पूरे देश की जीवनरेखा को पंगु बना सकता था. मामला इतना गंभीर था कि CIA डायरेक्टर विलियम जे. बर्न्स ने गुप्त रूप से बीजिंग का दौरा किया और चीन के जासूसी मंत्री को चेतावनी दी कि अगर यह मैलवेयर इस्तेमाल किया गया तो “गंभीर नतीजे” भुगतने होंगे.
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी चेतावनियों के बावजूद चीन की गतिविधियां रुकी नहीं - बल्कि और तेज़ हो गईं. हाल के खुलासों में पता चला कि चीन के Ministry of State Security (MSS) यानी नागरिक जासूसी एजेंसी के नेतृत्व में Salt Typhoon नामक हैकर ग्रुप ने न सिर्फ अमेरिका, बल्कि दर्जनों देशों से डेटा चुराया. यह डेटा इतना संवेदनशील था कि इससे चीन किसी भी व्यक्ति की मूवमेंट और कम्युनिकेशन ट्रैक कर सकता है.
The New York Times की रिपोर्ट बताती है कि चीन का यह कदम अचानक नहीं, बल्कि दशकों की योजनाबद्ध रणनीति का नतीजा है. 1983 में शुरू हुई यह एजेंसी अब न सिर्फ घरेलू असहमति पर नज़र रखती है बल्कि साइबर जासूसी की दुनिया में अमेरिका और ब्रिटेन जैसी ताक़तों को टक्कर देती है.
The Rise of MSS - कैसे चीन की जासूसी एजेंसी बनी साइबर सुपरपावर
चीन की Ministry of State Security (MSS) का जन्म 1983 में हुआ था. उस दौर में इसका मुख्य काम था कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ असहमति को दबाना और विदेशी जासूसों पर नज़र रखना. लंबे समय तक MSS पर चीन की सेना का दबदबा रहा और साइबर ऑपरेशंस का बड़ा हिस्सा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के पास था. लेकिन 2012 में जब शी जिनपिंग सत्ता में आए तो उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता बना दिया. एडवर्ड स्नोडेन के खुलासों ने शी को और सतर्क कर दिया. उन्हें लगा कि अगर अमेरिका जैसी ताक़त चीन की जासूसी कर सकती है, तो चीन को भी वैसा ही मजबूत सिस्टम बनाना होगा. नतीजा यह हुआ कि MSS को साइबर जासूसी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई और सेना की भूमिका घटा दी गई.
2015 के बाद MSS ने अपनी प्रांतीय शाखाओं को केंद्रीकृत नियंत्रण में लाना शुरू किया. मौजूदा मंत्री चेन यीक्सिन ने स्पष्ट कर दिया कि स्थानीय सुरक्षा कार्यालयों को बीजिंग के आदेश का तुरंत पालन करना होगा. उनका नारा था - एजेंसी को होना चाहिए पार्टी के प्रति वफादार और तकनीक में माहिर.
विशेषज्ञों का मानना है कि अब MSS शतरंज की बिसात पर मोहरों की तरह अपने एजेंटों को दुनिया भर में चला सकती है. यही कारण है कि Salt Typhoon जैसे ऑपरेशंस सालों तक बिना पकड़े चलते रहते हैं और जब खुलते हैं तो देशों को यह एहसास होता है कि उनकी संवेदनशील जानकारियां पहले ही बीजिंग के हाथों में जा चुकी हैं.
Salt Typhoon और हाई-टेक हैकिंग - कैसे चीन ने दुनिया भर में फैलाई पकड़
2023 में अमेरिकी और यूरोपीय खुफिया एजेंसियों ने खुलासा किया कि चीन से जुड़े एक ग्रुप Salt Typhoon ने वर्षों तक बेहद गोपनीय तरीके से साइबर घुसपैठ की. यह ऑपरेशन इतना बड़ा था कि सुरक्षा अधिकारियों ने कहा - यह लगभग हर अमेरिकी नागरिक की जानकारी तक पहुंच चुका हो सकता है. Salt Typhoon की रणनीति पहले के 'भाड़े के हैकर्स' से बिलकुल अलग थी. पुराने समय में चीनी हैकर्स अक्सर कॉर्पोरेट डेटा चोरी करके बेचते या लापरवाही से पकड़े जाते थे. लेकिन Salt Typhoon ने अत्याधुनिक तकनीक अपनाई.
सिस्टम में कमज़ोरियां खोजीं, नेटवर्क में गहराई तक घुसे, डेटा चुपचाप बाहर निकाला, अलग-अलग सर्वरों पर छलांग लगाई और जाते-जाते सबूत मिटा दिए. इस ऑपरेशन ने दिखा दिया कि अब MSS के पास केवल “हैकिंग टैलेंट” नहीं है, बल्कि वह इसे लंबी रणनीति और वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल करने की क्षमता रखता है.
विशेषज्ञ एलेक्स जोस्के के अनुसार – “Salt Typhoon MSS का वह चेहरा है जो अब तक छिपा हुआ था – बेहद कुशल और रणनीतिक.” इस घुसपैठ का असर सिर्फ डेटा चोरी तक सीमित नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार, चोरी की गई सूचनाएं चीन को यह क्षमता देती हैं कि वह अपने विरोधियों की लोकेशन, कम्युनिकेशन और मूवमेंट्स को ट्रैक कर सके. यानी भविष्य के किसी संघर्ष में चीन दुश्मन देशों की बिजली, संचार और जल आपूर्ति तक को बंधक बना सकता है.
यही कारण है कि CIA प्रमुख विलियम बर्न्स को बीजिंग जाकर सीधे अपने चीनी समकक्ष से चेतावनी देनी पड़ी - “अगर यह मालवेयर सक्रिय किया गया तो गंभीर नतीजे होंगे.” लेकिन चेतावनी के बाद भी चीन की साइबर गतिविधियां और तेज़ हो गईं.
Wu Shizhong - चीन के साइबर साम्राज्य का आर्किटेक्ट
चीन की जासूसी एजेंसी MSS (Ministry of State Security) को साइबर पावरहाउस बनाने में सबसे अहम नाम सामने आता है - Wu Shizhong (वू शिज़ोंग). यह शख्स लंबे समय तक MSS के Bureau 13 यानी “Technical Reconnaissance” विभाग से जुड़ा रहा, जो सीधे तौर पर साइबर जासूसी और हैकिंग से संबंधित काम करता है.
आम तौर पर MSS के अधिकारी सार्वजनिक मंचों पर शायद ही दिखाई देते हैं. लेकिन Wu Shizhong अपवाद साबित हुए. वे China Information Technology Security Evaluation Center के निदेशक भी रहे - यह संस्था आधिकारिक तौर पर चीन में इस्तेमाल होने वाले हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की सुरक्षा जांच करती है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पर्दे के पीछे यह केंद्र MSS को सॉफ्टवेयर कमजोरियों और हैकिंग टैलेंट की सीधी सप्लाई करता था.
साइबर सुरक्षा कंपनियों CrowdStrike और अन्य की रिपोर्ट में भी Wu Shizhong को MSS का दिग्गज बताया गया है. एलेक्स जोस्के के शब्दों में, “Wu Shizhong को MSS की साइबर क्षमताओं का निर्माता माना जाता है.”
Snowden और Stuxnet से सीखा सबक
2013 में Wu Shizhong ने खुलकर कहा कि चीन को दो बड़ी घटनाओं से सबक लेना चाहिए - एडवर्ड स्नोडेन का खुलासा, जिसने अमेरिकी निगरानी तंत्र की गहराई उजागर कर दी. और Stuxnet वायरस, जिसे अमेरिका-इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया.
Wu का तर्क था, “साइबर आक्रामकता और रक्षा की असली ताकत तकनीकी क्षमता में है. चीन को अपनी राष्ट्रीय साइबर आक्रामक और रक्षात्मक मशीनरी तैयार करनी होगी.”
टेक कंपनियों और हैकिंग का संगम
इसी दौर में चीन की टेक इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही थी. Wu और MSS ने घरेलू कंपनियों को एक टैलेंट पाइपलाइन में बदल दिया. अब टेक कंपनियां सिस्टम की कमजोरियां खोजकर MSS के डेटाबेस में डालती थीं. नई सॉफ़्टवेयर खामियां सबसे पहले MSS को रिपोर्ट करनी होती थीं. कंपनियों को हर महीने कमजोरियां खोजने का कोटा दिया गया. जो कंपनियां टारगेट पूरी करतीं, उन्हें सरकार से आर्थिक प्रोत्साहन मिलता. इस तरह MSS ने न केवल हैकर्स और साइबर टूल्स की सेना तैयार की, बल्कि देशभक्ति और प्रेस्टिज का माहौल भी बनाया. जैसा कि साइबर विशेषज्ञ Mei Danowski ने कहा -
“ये बिजनेसमैन मानते हैं कि वे देश की सेवा कर रहे हैं, अपराध नहीं.” यानी Wu Shizhong ने चीन के लिए “State + Tech + Hackers” वाला ऐसा मॉडल खड़ा किया, जिसने MSS को सीधे अमेरिका की NSA और ब्रिटेन की GCHQ जैसी संस्थाओं के मुकाबले खड़ा कर दिया.
भविष्य का खतरा - अमेरिका, यूरोप और भारत पर MSS का साया
MSS (Ministry of State Security) के साइबर अभियानों ने अब यह साफ कर दिया है कि चीन केवल आर्थिक जासूसी या बौद्धिक संपदा की चोरी तक सीमित नहीं है. अब उसका लक्ष्य कहीं बड़ा और रणनीतिक है - भविष्य के युद्ध में बढ़त हासिल करना.
अमेरिका और यूरोप पर असर
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की मानें तो Salt Typhoon जैसे हैकिंग ऑपरेशन सीधे-सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं. अगर भविष्य में कोई टकराव हुआ, तो चीन अमेरिका की पावर ग्रिड, संचार तंत्र और जल आपूर्ति को ठप कर सकता है. कई यूरोपीय देशों ने भी चेतावनी दी है कि चोरी किया गया डेटा चीनी एजेंसियों को यह क्षमता देता है कि वे दुनिया भर में अपने लक्ष्यों की आवाजाही और बातचीत को ट्रैक कर सकें.
ब्रिटेन के पूर्व MI6 अधिकारी नाइजेल इंकस्टर का कहना है, “अगर MSS इन नेटवर्क्स में छिपा रहकर बिना पकड़े सक्रिय रहता है, तो यह किसी संकट के समय उसे बड़ी रणनीतिक बढ़त देगा. और अगर पकड़ा भी जाता है, तो भी यह विरोधियों के लिए एक डर का संदेश है - ‘देखो, अगर हम चाहें तो तुम्हारे साथ क्या कर सकते हैं.’”
भारत के लिए संदेश
भारत भी इस खतरे से अछूता नहीं है. भारत की डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, रेलवे नेटवर्क, पावर सेक्टर और मोबाइल नेटवर्क्स पहले से ही चीनी हैकिंग प्रयासों का शिकार हो चुके हैं. कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि भारत पर चीनी हैकर्स का ध्यान सिर्फ डेटा चोरी पर नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव बनाने पर भी है. उदाहरण के लिए, लद्दाख सीमा विवाद के दौरान चीनी हैकर्स ने भारत की पावर ग्रिड और ओटी सिस्टम्स (Operational Technology) में सेंध लगाने की कोशिश की थी. इससे साफ है कि चीन MSS को एक “साइबर हथियार” की तरह इस्तेमाल कर रहा है, जो युद्ध से पहले ही दुश्मन को कमजोर करने का साधन बन सकता है.
क्यों है यह खतरनाक?
- क्योंकि साइबर युद्ध की कोई सीमा रेखा नहीं होती.
- हमले का पता चलने में सालों लग सकते हैं.
- यह केवल फौजी ठिकानों पर नहीं, बल्कि आम जनता की रोज़मर्रा की जिंदगी पर असर डाल सकता है - बिजली, इंटरनेट, पानी, बैंकिंग सब खतरे में.
यानी MSS की यह ताकत पारंपरिक युद्ध से भी ज्यादा विनाशकारी साबित हो सकती है.
साइबर जासूसी के नए युग से दुनिया को क्या सबक लेना चाहिए
चीन की Ministry of State Security (MSS) अब केवल एक जासूसी एजेंसी नहीं रह गई है, बल्कि एक साइबर सुपरपावर बन चुकी है. Salt Typhoon जैसे अभियानों ने यह दिखा दिया कि चीन ने अपनी पारंपरिक जासूसी रणनीति से आगे बढ़कर एक ऐसा सिस्टम बना लिया है जो गुप्त रूप से, वर्षों तक, दुनिया की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली नेटवर्क दीवारों को भी तोड़ सकता है.
दुनिया के लिए चेतावनी
अमेरिका, यूरोप और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों को अब साइबर हमलों को केवल आर्थिक जासूसी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए. यह एक रणनीतिक हथियार है जो दुश्मन के बुनियादी ढांचे को अपंग कर सकता है, संकट की घड़ी में डर पैदा कर सकता है, और युद्ध लड़े बिना ही राजनीतिक-आर्थिक दबाव बना सकता है.