Sindhudesh: सूफ़ी धरती सिंध मांग रही पाकिस्तान से आज़ादी, झूलेलाल की ज़मीन पर लहरा रहा बगावत का झंडा
सिंध, जो एक सूबा नहीं बल्कि एक पूरी सभ्यता है – झूलेलाल, शाह लतीफ़, अजरक, और सूफ़ी विचारों की धरती. मगर आज वही धरती पाकिस्तान से आज़ादी के लिए हथियार उठा चुकी है. क्या सिंधुदेश पाकिस्तान के बंटवारे की अगली कहानी है?;
ओ लाल मेरी पट, रखियो बला झूलेलालां...सिंधड़ी दा…
ये सूफियाना गीत जब सिंध की हवाओं में गूंजता है, तो ऐसा लगता है मानो सदियों पुरानी मिट्टी बोल रही हो
एक वक्त था जब ये धुन सिर्फ दरगाहों और मंदिरों में गूंजती थी.
आज वही सुर पाकिस्तान के सीने में बगावत बनकर बज रहा है.
सिंध, जो कि मोहनजोदड़ो की सभ्यता, सिंधु नदी की गोद, और सूफी संतों की धरती रही है, आज भी एक अलग पहचान के लिए बेचैन है.
यह वह धरती है जिसने इतिहास में एक अलग संस्कृति, भाषा और रीति-रिवाजों का विकास किया, जिसे ‘सिंधी’ कहा जाता है. सिंध, पाकिस्तान का एक सूबा नहीं, एक सभ्यता है. सिंध, जिसकी मिट्टी ने झूलेलाल को जन्म दिया, शाह लतीफ़ के सूफ़ी कलामों को सहेजा, और जहां कराची जैसे शहर को बनाया. मगर यह धरती पाकिस्तान के नक्शे में जकड़ी हुई, उसकी ज़ोर जबरदस्ती के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी है.
आज सिंध कह रहा है - अब नहीं... अब अलग चाहिए!
कौन होते हैं सिंधी?
सिंधी कोई सिर्फ़ भाषा बोलने वाले लोग नहीं हैं, वो एक पूरी सभ्यता हैं, जो हड़प्पा-सिंधु घाटी की विरासत से निकली है.
सिंधी वो लोग हैं जो अपनी मिट्टी, भाषा, और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाने जाते हैं, और जिनकी जीवन शैली में हिन्दू-मुस्लिम, सूफी और लोक परंपराओं का अनोखा मेल है.
इनकी पहचान है:
- सिंधी भाषा, जो संस्कृत की वंशज है
- मज़हब में मज़हब से आगे सूफ़ी सोच
- हिन्दू-मुस्लिम एकता का वो मॉडल, जो अब पाकिस्तान में खुद को बेघर मानता है
- अजरक की चादर, सिंधी टोपी, झूलेलाल की पूजा, और लतीफ़ के कलाम
सिंधी वो लोग हैं,
जो पूजा भी करते हैं और कव्वाली भी गाते हैं.
जो व्यापार में भी माहिर हैं, और विद्रोह में भी.
सिंध का इतिहास गहरा और जटिल है. 1843 में अंग्रेज़ों ने इसे जबरदस्ती अपने कब्ज़े में लिया, लेकिन उस समय सिंध की अपनी अलग राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान थी. 1936 में इसे बॉम्बे प्रेसिडेंसी से अलग कर एक अलग प्रांत बनाया गया, तो वहां के लोगों ने उम्मीद जताई कि उनका स्थान मजबूत होगा. मगर 1947 में जब पाकिस्तान बना, सिंध को उस नए राष्ट्र में जबरदस्ती घुसा दिया गया. यह वही समय था जब जी.एम. सैयद जैसे नेताओं ने पाकिस्तान की शुरुआत का हिस्सा बनते हुए जल्द ही महसूस किया कि पाकिस्तान का असली मालिक पंजाब है, और बाकी प्रांत उसकी मजबूरी बन गए हैं.
इतिहास की गर्द से उठती आज़ादी की मांग
सिंध का इतिहास गहरा और जटिल है. 1843 में अंग्रेज़ों ने इसे जबरदस्ती अपने कब्ज़े में लिया, लेकिन उस समय सिंध की अपनी अलग राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान थी. 1936 में इसे बॉम्बे प्रेसिडेंसी से अलग कर एक अलग प्रांत बनाया गया, तो वहां के लोगों ने उम्मीद जताई कि उनका स्थान मजबूत होगा. मगर 1947 में जब पाकिस्तान बना, सिंध को उस नए राष्ट्र में जबरदस्ती घुसा दिया गया. यह वही समय था जब जी.एम. सैयद जैसे नेताओं ने पाकिस्तान की शुरुआत का हिस्सा बनते हुए जल्द ही महसूस किया कि पाकिस्तान का असली मालिक पंजाब है, और बाकी प्रांत उसकी मजबूरी बन गए हैं.
1940 में जी.एम. सैयद नाम के नेता ने पाकिस्तान का समर्थन किया था पर 1947 के बाद जब देखा कि ये मुल्क तो पंजाबी आर्मी और उर्दू स्पीकिंग मोहाजिरों का कब्ज़ा है, तो वही जी.एम. सैयद बन गए पाकिस्तान के सबसे बड़े विरोधी.
उन्होंने कहा था - ये पाकिस्तान वो नहीं है, जो हमने सोचा था. ये पंजाबिस्तान है.
अब हमें अपना देश चाहिए – सिंधुदेश!
कहां से शुरू हुआ सिंधुदेश मूवमेंट?
पाकिस्तान बनने के बाद सिंध की ज़मीन पर सबसे ज्यादा असंतोष पंजाबियों के प्रभुत्व से हुआ. कराची, जो कभी सिंध की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी थी, वहां उर्दू भाषी मोहाजिरों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय सिंधियों को तंग किया. नौकरियों से लेकर राजनीति तक, पंजाबियों और मोहाजिरों का वर्चस्व बढ़ता गया, जबकि सिंधी युवा बेरोज़गार होते रहे. सिंध की भाषा, परंपराएं, और सांस्कृतिक प्रतीक जैसे अजरक, बंधनी, झूलेलाल की पूजा, धीरे-धीरे दबाने की कोशिश की गई. कराची और हैदराबाद जैसे शहर अब सिंध की जगह पाकिस्तान के पंजाबी-मोहाजिर प्रभाव वाले केंद्र बन गए.
ये सब दबाव और अपमान सिंध में अलगाववाद की आग लगने का कारण बने. जी.एम. सैयद ने 1972 में खुलकर ‘सिंधुदेश’ की मांग की, पहला सिंधुदेश का नक्शा पेश किया. एक ऐसा अलग राष्ट्र जो पाकिस्तान से स्वतंत्र हो. इसके बाद संगठन जैसे JSMM, JSSF और SRA ने अस्तित्व लिया, जो अपने-अपने स्तर पर पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ लड़ रहे हैं. SRA जैसे ग्रुप्स की हिंसक गतिविधियां बढ़ी हैं, जबकि पाकिस्तान उनकी लड़ाई को भारत की खुफिया एजेंसियों से जोड़ने की कोशिश करता है. सच्चाई ये है कि ये आंदोलन पाकिस्तान के अंदर लंबे समय से दबाई जा रही आवाज़ों का परिणाम हैं.
तब से लेकर अब तक, JSQM, JSMM, SRA जैसे ग्रुप्स पाकिस्तान की सरकार से टकरा रहे हैं. Shafi Burfat जैसे लीडर्स exile में बैठकर आंदोलन चला रहे हैं और अब तो Sindhudesh Revolutionary Army ने बंदूक भी उठा ली है.
सिंध को पाकिस्तान से क्या दिक्कत है?
- पंजाबी आर्मी और ब्यूरोक्रेसी का वर्चस्व – सिंधियों को हर पावर सर्कल से दूर रखा गया
- कराची कमाता है, पंजाब खाता है – सिंध की आमदनी का बड़ा हिस्सा इस्लामाबाद चला जाता है
- मोहाजिरों का डेमोग्राफिक हमला – भारत से आए उर्दू स्पीकिंग लोग कराची और हैदराबाद को कंट्रोल करने लगे
- कल्चर का गला घोंटना – सिंधी भाषा और इतिहास को स्कूलों से गायब कर दिया गया
- कट्टरपंथी इस्लामीकरण – सूफ़ी विचारधारा को दबा दिया गया, ज़िया-उल-हक़ के दौर से ही
2025 में क्या हालात हैं?
आज SRA खुलेआम कह रहा है - हम CPEC के दुश्मन हैं, हम पाक आर्मी के टारगेट हैं, और हम सिंध की आज़ादी के सिपाही हैं. अब railway lines उड़ाई जा रही हैं, गैस पाइपलाइन पे हमले हो रहे हैं, और कराची जैसे शहर में पाकिस्तान की हुकूमत को चैलेंज मिल रहा है.
India Angle – अगर सिंधुदेश बना, तो हमारे लिए क्या?
सिंध की सांस्कृतिक विरासत भारत में बसे सिंधियों के दिलों में आज भी जिंदा है. मुंबई, दिल्ली, भोपाल से लेकर राजस्थान तक फैले सिंधी अपने इतिहास, भाषा और त्योहारों के प्रति बेहद गर्व महसूस करते हैं. वे पाकिस्तान के इस्लामीकरण और पंजाबी प्रभुत्व से त्रस्त होकर आज़ादी के सपने देखते हैं.
भारत के लिए सिंधुदेश का मामला जटिल है. एक तरफ सिंध की भौगोलिक स्थिति, कराची का बंदरगाह, और सिंधी डायस्पोरा के कारण यह एक मौका है, दूसरी तरफ चीन का सी-पेक प्रोजेक्ट और पाकिस्तान के आंतरिक असंतोष के चलते इसे भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती भी माना जाता है. अगर सिंध का अलगाव हुआ तो भारत को नरमी और सख्ती दोनों दिखानी होगी.
फायदे:
- सिंधी भारत में पहले से मौजूद हैं - बड़े व्यापारी, नेता, समाज में सम्मानित
- कराची जैसे पोर्ट्स अगर दोस्त बनें, तो Arabian Sea में भारत की पकड़ मज़बूत हो
- पाकिस्तान का एक और टुकड़ा गिरा, तो कश्मीर और PoK पर भारत की दावेदारी और पक्की होगी
चैलेंज:
- अगर सिंधुदेश पर चीन का असर बढ़ा, तो वो भारत के लिए नया सिरदर्द बनेगा
- एक नया मुस्लिम राष्ट्र बनने की चाह में anti-India सोच को बढ़ावा मिल सकता है
RAW का नाम हर बयान में...
बम फटे - RAW.. पर्चा छपा - RAW..झंडा लहराया - RAW
पाकिस्तान का एक ही रट्टा - India is behind this.
पाकिस्तान की जुबान पर रोज़ एक नाम होता है - RAW सिंध में एक्टिव है
चाहे कोई बम फटे या पर्चा छपे - ठीकरा भारत पर
मगर भारत आज तक चुप है - Strategic Silence
पर दुनिया जानती है, कि जहां पाकिस्तान जले, वहां भारत की माचिस ज़रूर गुम होती है…
आज सिंध की युवा पीढ़ी पढ़ाई-लिखाई के अधिकार से वंचित है, उनकी भाषा को दबाया जा रहा है, और ‘सिंधुदेश ज़िंदाबाद’ जैसे नारे लगाने वालों को आतंकवादी घोषित किया जाता है. लेकिन इतिहास ने बार-बार साबित किया है कि दबाव से बगावत जन्म लेती है. सिंधुदेश की कहानी सिर्फ एक अलगाववादी आंदोलन नहीं, बल्कि पाकिस्तान के टूटने की शुरुआत हो सकती है.
सिंध अब जले हुए घर में दिया नहीं जलाना चाहता.
वो अपना नया घर, अपनी नई रौशनी, और अपनी आज़ादी चाहता है.
Pakistan Pregnant - अगली कड़ी में हम बात करेंगे - Balochistan - जहां बारूद से इंकलाब निकलता है, और आज़ादी सिर्फ़ ख्वाब नहीं, मिशन बन चुकी है