फोन भी बोलता है किम जोंग उन की भाषा, साउथ कोरिया को बताता है Puppet State; जानिए क्या-क्या मिला जवाब

एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि उत्तर कोरिया के स्मार्टफोन केवल इंटरनेट नहीं रोकते, बल्कि लोगों की सोच तक को नियंत्रित करते हैं. ‘ओप्पा’ जैसे शब्द ‘कॉमरेड’ में बदल दिए जाते हैं और फोन हर 5 मिनट में स्क्रीनशॉट लेकर निगरानी रखता है. यह तकनीक तानाशाही का सबसे उन्नत डिजिटल हथियार बन चुकी है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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उत्तर कोरिया से तस्करी कर लाए गए एक स्मार्टफोन के विश्लेषण से खुलासा हुआ है. वहां की तकनीक नागरिकों की निगरानी से कहीं आगे बढ़ चुकी है. यह फोन एंड्रॉइड के एक संशोधित संस्करण पर चलता है, जो किसी भी तरह की बाहरी जानकारी की पहुंच को पूरी तरह अवरुद्ध करता है. इंटरनेट की जगह उपयोगकर्ताओं को केवल "क्वांगम्योंग" नामक इंट्रानेट से जुड़ने की अनुमति है, जिसमें केवल वही कंटेंट होता है जिसे सरकार ने मंजूरी दी हो.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, इस फोन की एक हैरान करने वाली विशेषता यह है कि यह उपयोगकर्ताओं द्वारा टाइप किए गए शब्दों को स्वतः सरकारी प्रोपेगैंडा के अनुरूप बदल देता है. जैसे ही कोई "ओप्पा" लिखता है, फोन चेतावनी देता है और शब्द को "कॉमरेड" में बदल देता है. "दक्षिण कोरिया" जैसे शब्दों को "कठपुतली राज्य" में रूपांतरित कर दिया जाता है. यह केवल शब्दों की सेंसरशिप नहीं, बल्कि सोच की दिशा तय करने का प्रयास है.

हर 5 मिनट में खींचती है तस्वीर

फोन यूजर को पता भी नहीं चलता और हर पांच मिनट में एक स्क्रीनशॉट चुपचाप खींच लिया जाता है. ये तस्वीरें एक ऐसे फोल्डर में सेव होती हैं जो उपयोगकर्ता को दिखाई नहीं देता, लेकिन राज्य के अधिकारी उसे कभी भी एक्सेस कर सकते हैं. इसका मतलब है कि आप क्या देख रहे हैं, क्या सोच रहे हैं- सबकुछ सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज होता जा रहा है.

सोचने की आज़ादी भी अपराध

इस तरह के फोन का उद्देश्य केवल सेंसरशिप नहीं, बल्कि चेतना पर नियंत्रण है. बीबीसी की रिपोर्ट में एक तकनीकी विश्लेषक ने साफ तौर पर कहा, "यह केवल इंटरनेट बंद करने की बात नहीं है, यह लोगों के सोचने और बोलने के तरीके को फिर से लिखने की कोशिश है." यानी फोन अब विचारों का भी संरक्षक बन चुका है. सरकार की विचारधारा से अलग कुछ भी अपराध की श्रेणी में आता है.

'डिजिटल दीवार' के पीछे छुपी असली तस्वीर

उत्तर कोरिया में इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल केवल सुरक्षा या नियंत्रण के नाम पर नहीं हो रहा. यह सत्ता की वैचारिक दीवार को बचाने का माध्यम है. दक्षिण कोरिया को "दुश्मन" मानने की नीति को डिजिटल रूप में लागू किया जा रहा है, ताकि कोई भी नागरिक विचार से विचलित न हो सके. यहां तक कि स्नेहपूर्ण शब्द भी प्रतिबंधित हैं, ताकि भावनाएं भी राज्य के ढांचे में ढली रहें.

डर को स्थायी बनाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल

1953 के कोरियाई युद्ध के बाद से अब तक कोई शांति संधि नहीं हुई, लेकिन उत्तर कोरिया ने तकनीक के ज़रिए एक स्थायी युद्ध विचारों का अपने नागरिकों पर थोप दिया है. इस तरह के स्मार्टफोन सिर्फ निगरानी नहीं करते, बल्कि यह सुनिश्चित करते हैं कि हर नागरिक सरकार की आंखों से ही दुनिया को देखे. यह 'डिजिटल बंदीगृह' भविष्य की एक डरावनी झलक है, जिसमें इंसान खुद को सिर्फ स्क्रीन पर ही नहीं, विचारों में भी कैद पाता है.

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