ISI ने ही करवाया अपने ‘गाजी’ का क़त्ल! आतंकी संगठनों की फूट ले गई सैफुल्लाह की जान

अबू सैफुल्लाह की सिंध में हत्या पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क में बढ़ती खींचतान और ISI की बदलती रणनीति की ओर इशारा करती है. जिस आतंकी को कभी सुरक्षा दी गई थी, वही अब साजिशों का शिकार बन गया. यह घटना बताती है कि अब आतंकी खुद पाकिस्तान में भी महफूज नहीं हैं और ISI की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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आतंकी अबू सैफुल्लाह की हत्या एक सामान्य आपराधिक वारदात नहीं थी, बल्कि एक गुप्त ‘ऑपरेशन क्लीयरेंस’ जैसा लग रहा है, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI खुद शामिल हो सकती है. जिसे कभी ISI ने ‘गाजी’ का दर्जा दिया था, वही व्यक्ति अब सिंध की सड़कों पर गोलियों का शिकार बन गया. यह घटना उस मोड़ की ओर इशारा करती है जहां आतंकी अब पाकिस्तानी धरती पर भी महफूज नहीं हैं.

सैफुल्लाह का पाकिस्तान में अस्तित्व एक समय ISI की रणनीतिक सफलता माना जाता था. उसे नेपाल से लाकर सिंध के मतली इलाके में बसाया गया था, जहां वह आतंकी संगठन जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा के संचालन में मदद करता था. मगर जैसे-जैसे अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की सख्ती आई, ISI को अपने ही बनाए साए भारी लगने लगे.

जिहादी इकोसिस्टम में मची खलबली

पाकिस्तान में सक्रिय लगभग 30 आतंकी संगठन अब एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं. लश्कर, जैश, TTP, IS-K, BLA सभी के बीच नेतृत्व, इलाके और फंडिंग को लेकर संघर्ष गहरा गया है. ऐसे में ISI का 'पिटारा' अब नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है, और सैफुल्लाह जैसे चरमपंथी नेता इस आंतरिक लड़ाई के आसान शिकार बन रहे हैं.

आतंकी की वैश्विक यात्रा

अबू सैफुल्लाह की आतंकी शुरुआत भारत में 2001 के रामपुर CRPF कैंप हमले से हुई. उसके बाद वह बेंगलुरु के IISc और नागपुर में RSS हेडक्वार्टर को टारगेट करने की साजिशों में शामिल रहा. भारत से बच निकलने के बाद वह बांग्लादेश और फिर नेपाल के काठमांडू में छिपता रहा, जहां कथित तौर पर वह एक नया मॉड्यूल खड़ा कर रहा था. यह स्पष्ट है कि उसका नेटवर्क केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं था.

ऑपरेशनल ब्रेन या वफादार कमांडर?

सैफुल्लाह सिर्फ एक आतंकी नहीं, बल्कि जमात-उद-दावा के ऑपरेशनल योजनाओं का केंद्र था. वह युवाओं की भर्ती, हथियारों की आपूर्ति, भारत विरोधी साजिशों की प्लानिंग और फंडिंग चैनलों का मास्टरमाइंड था. उसे ISI ने हाई वैल्यू एसेट मानकर सीमित मूवमेंट और विशेष सुरक्षा दी थी, मगर शायद अब वही सुरक्षा उसके लिए सबसे बड़ा धोखा बन गई.

पुराने मोहरे अब बोझ?

यह सवाल अब बार-बार उठ रहा है कि क्या ISI अब अपने पुराने मोहरों से पीछा छुड़ा रही है? जिन आतंकियों को उसने दशकों तक संरक्षण दिया, क्या उन्हें अब रणनीतिक 'लाइसेंस टू किल' के तहत खत्म किया जा रहा है? सैफुल्लाह की हत्या कहीं अंतरराष्ट्रीय दबाव में ISI द्वारा पेश की गई ‘कुर्बानी’ तो नहीं थी?

अब सुरक्षित नहीं कोई ठिकाना

सिंध, खासकर कराची, हैदराबाद और बदीन जैसे इलाके अब तक आतंकियों के लिए सुरक्षित ज़ोन माने जाते थे. लेकिन अब वही क्षेत्र आतंकी गुटों की आपसी रंजिश और हिंसा का केंद्र बन रहे हैं. यह संकेत है कि ISI का आतंकी संरक्षण मॉडल अब दरक चुका है, और उसके बनाए गढ़ अब उसे ही निगलने को तैयार हैं.

जाल में फंस चुका है पाकिस्तान

अबू सैफुल्लाह की मौत महज़ एक व्यक्ति का अंत नहीं है. यह उस सिस्टम की दरकती नींव है, जिसे पाकिस्तान ने खुद खड़ा किया था. आज न ISI की सुरक्षा गारंटी है, न संगठनों की वफादारी. आतंकी अब वहां भी सुरक्षित नहीं जो एक समय उन्हें पनाह देता था. यह एक नई शुरुआत है अंदर से सड़ते हुए पाकिस्तान के आतंकी ढांचे की खुदबुझती तबाही की.

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