NATO के रक्षा बजट में बढ़ोतरी से दुनिया में शांति को खतरा! भारत पर कितना पड़ेगा असर?
अमेरिका के लगातार दबाव के आगे आखिर नाटो (NATO) के सदस्य देशों ने सरेंडर कर ही दिया. अब नाटो ने 'डिफेंस बजट' 5 प्रतिशत तक बढ़ाने का एलान किया है. माना जा रहा है कि इससे दुनिया में अशांति और युद्ध को बढ़ावा मिलेगा. जलवायु संकट, ग्लोबल वार्मिंग और अन्य मानवीय सहायता और आधारभूत विकास के कार्यकम रुक जाएंगे. गरीबी, बेरोजगारी और तनाव को बढ़ावा मिलेगा.;
कोरोना वायरस संकट के समय से ही दुनिया में युद्ध का दौर जारी है. रूस और यूक्रेन के बीच करीब चार साल से युद्ध जारी है. मध्य पूर्व देशों में पहले से वार जैसे हालात हैं. इस बीच भारतीय सेना का आतंक के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' ने भू-रजनीति को बदल कर रख दिया है. उसके बाद ईरान इजरायल युद्ध और गाजा में जारी बमबारी ने पूरी दुनिया नए युद्ध के मुंहाने पर है. यूक्रेन के राष्ट्रपति ने चेतावनी दी है कि रूस नाटो क्षेत्र पर सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहा है.
इन सबके बीच नीदरलैंड्स में नाटो देशों की बैठक के बीच डिफेंस बजट में 5 फीसदी तक की बढ़ोतरी चौंकाने वाला है. नाटो के इस फैसले पर अब सवाल उठाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन का सबसे चर्चित मंत्र 'शक्ति के माध्यम से शांति का विचार', को इससे दुनिया भर में बढ़ावा मिलेगा. नाटो ने डिफेंस बजट बढ़ाकर उसी पर मुहर लगाई है.
2035 तक रक्षा बजट 5 प्रतिशत करने का एलान
अल जजीरा ने ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट के रिसर्चर निक बक्सटन के एक लेख के हवाले से बताया है कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन का 76 साल से अमेरिका ने नेतृत्व करता आया है. डोनाल्ड ट्रंप नाटो को सैन्य कवर प्रदान करने के लिए अमेरिका पर निर्भर रहने के लिए तीखी आलोचना करते आये हैं. यही वजह है कि नाटो के सदस्य देशों ने 2035 तक अपने सैन्य खर्च को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 5 फीसदी तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की.
इस समय नाटो देशों का डिफेंस बजट औसतन 3 प्रतिशत से कम है. नाटो ही नहीं बल्कि भारत, पाकिस्तान और जापान ने भी हाल के महीनों में अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी की है. अमेरिका दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगियों पर भी सुरक्षा पर अपना खर्च बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहा है. यह सब उस समय हो रहा है जब जब वैश्विक अर्थव्यवस्था उथल-पुथल के दौर में है.
नाटो के महासचिव मार्क रूटे ने डिफेंस बजट में बढ़ोतरी को 'बड़ी छलांग' बताया है. उन्होंने कहा कि यह नाटो देशों में रहने वाले एक अरब लोगों को 'स्वतंत्रता और सुरक्षा' की गारंटी देगा. यह निश्चित रूप से सैन्य वृद्धि के मामले में ऐतिहासिक है, लेकिन क्या इससे सुरक्षा मिलेगी? अगर मिलेगी, किस कीमत पर?
नाटो ने पहली बार 2002 में अपने 2 प्रतिशत जीडीपी लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन 2021 तक इसके केवल छह सदस्य ही इसे हासिल कर पाए थे. फिर भी तीन साल बाद 23 सदस्यों ने लक्ष्य हासिल कर लिया और उम्मीद है कि 2025 के अंत तक सभी 32 सदस्य इसका अनुपालन करेंगे.
2030 तक NATO का रक्षा बजट होगा 13.4 ट्रिलियन
चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले साल नाटो ने सेना पर 1.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए. यानी वैश्विक सैन्य खर्च के आधे से भी अधिक. यदि सदस्य 2030 तक कोर 3.5 प्रतिशत लक्ष्य का अनुपालन करते हैं, तो इसका मतलब होगा कि सैन्य व्यय में कुल 13.4 ट्रिलियन डॉलर.
शांति को खतरा कैसे?
डिफेंस बजट में बढ़ोतरी से नाटो ही नहीं आने वाले दिनों में सभी देश सुरक्षा खतरों को देखते हुए रक्षा बढ़ाएंगे. इसका सीधा सर यह होगा कि सामाजिक और पर्यावरणीय योजना पर काम रुक जाएंगे. यूरोपीय देशों में 30 प्रतिशत लोगों को गुजारा करने में कठिनाई हो रही है. जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस (34.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य से नीचे रखने के लिए हमारे पास दो साल बचे हैं.
पेंटागन पर 1 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव
सामाजिक और पर्यावरणीय व्यय पहले में पहले से ही कटौती जारी है. फरवरी में ब्रिटेन ने घोषणा की थी कि वह सैन्य व्यय वृद्धि के लिए अपनी सहायता बजट को सकल घरेलू उत्पाद के 0.3 प्रतिशत तक कम करेगा. बेल्जियम, नीदरलैंड और फ्रांस ने भी यही किया और विकास योजना पर 25 से 37 प्रतिशत की कटौती की. ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने अपनी विदेशी सहायता और जलवायु कार्यक्रमों को खत्म कर दिया. पेंटागन पर रिकॉर्ड 1 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव रखा.
भारत के लिए सुनहरा अवसर कैसे?
दरअसल, भारत में निर्मित हथियार अब सिर्फ घरेलू इस्तेमाल तक सीमित नहीं हैं. ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम, पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, तेजस फाइटर जेट और स्वदेशी ड्रोन जैसे अत्याधुनिक हथियारों की अब मांग अमेरिका, रूस, इजरायल, फ्रांस, जर्मनी व अन्य देश भी करने लगे हैं. भारतीय हथियार रखरखाव के मामले में काफी किफायती हैं और जंग के मैदान में टेस्टेड हैं. रूस और चीन भले ही बड़े हथियार उत्पादक हों, लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक हालात में इनसे खरीदारी नाटो के लिए असंभव है. ऐसे में भारत न केवल सभी के लिए बेहतर विकल्प है बल्कि रणनीतिक रूप से माकूल भी.