हर पल घर छिन जाने का डर और इजरायली सैनिकों की दरिंदगी... कहानी No Other Land की
फिलिस्तीनी डायरेक्टर हमदान बल्लाल की डॉक्यूमेंट्री नो अदर लैंड को ऑस्कर मिल चुका है. उन्हें लोगों ने पीटा, जिसके बाद पुलिस ने हमदान को हिरासत में ले लिया. इस दौरान लगभग दो दर्जन लोगों ने उनके गांव पर हमला किया, जिनमें से कुछ नकाबपोश थे. कुछ के पास बंदूकें और कुछ के पास इजरायली वर्दी थी.;
इजरायल के लोगों ने ऑस्कर विनर डॉक्यूमेंट्ररी फिल्न 'नो अदर लैंड' के फिलिस्तीनी को-डायरेक्टर हमदान बल्लाल को सोमवार के दिन वेस्ट बैंक पर पीटा, जिसके बाद इज़रायली सेना ने उन्हें हिरासत में लेने के तीन दिन बाद रिहा कर दिया. इस दौरान उन्हें कोई खास मेडिकल हेल्प नहीं मिली, जब वह पुलिस स्टेशन से बाहर आए, तो उनके चेहरे पर चोट के निशान थे और उनके कपड़ों पर खून लगा हुआ था. अब ऐसे में सवाल बनता है कि आखिर इस डॉक्यूमेंट्री में ऐसा क्या था, जिसके कारण उनके साथ लोगों ने मारपीट की.
इस डॉक्यूमेंट्री को फिलिस्तीनी एक्टिविस्ट बेसल अद्रा, हमदान बल्लाल, इजरायली जर्नलिस्ट युवल अब्राहम और राहेल सोर ने मिलकर डायरेक्ट किया है. इस फिल्म को 2019 और 2023 के बीच रिकॉर्ड के बीच रिकॉर्ड किया गया है, जिसमें कब्जे वाले वेस्ट बैंक में एक फिलिस्तीनी समुदाय के साथ हो रहे विनाश को दिखाया गया है, जो अपनी जगह पर एक इजरायली "फायरिंग ज़ोन" के एलान के बाद जबरदस्ती हटाए जाने का विरोध कर रहा था. चलिए जानते हैं इस डॉक्यूमेंट्री की कहानी से लेकर इस जगह के इतिहास के बारे में.
नो अदर लैंड की कहानी
यह कहानी बेसल अद्रा नाम के एक फिलिस्तीनी एक्टिविस्ट की है, जो अपने लोगों को इज़रायली सेना द्वारा कब्जे वाले वेस्ट बैंक के एक जगह मासफ़र याट्टा में जबरन विस्थापित किए जाने का विरोध बचपन से ही कर रहा है. वह अपनी जमीन पर हो रहे विनाश को रिकॉर्ड करता है, जहां इज़रायली सैनिक घरों को तोड़ रहे हैं और अपने निवासियों को बेदखल कर रहे हैं, ताकि एक अदालती आदेश को लागू किया जा सके जिसमें कहा गया है कि इस क्षेत्र को इज़रायली सैन्य फायरिंग ज़ोन के रूप में नामित करना इज़रायली कानून के तहत लीगल है. जहां बेसेल की दोस्ती एक यहूदी इज़रायली जर्नलिस्ट से हो जाती है, जो उसके संघर्ष में उसकी मदद करता है. दोनों का रिश्ता गहरा हो जाता है, लेकिन उनकी दोस्ती को उनके रहने की स्थिति के बीच बड़े अंतर से चुनौती मिलती है. बेसल को लगातार उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है, जबकि युवल स्वतंत्रता और सुरक्षा का आनंद लेता है.
इजरायल ने बसाई कई बस्तियां
इज़राइल ने 1967 के मध्यपूर्व युद्ध में गाजा पट्टी और पूर्वी यरुशलम के साथ-साथ पश्चिमी तट पर कब्जा कर लिया था. फिलिस्तीनी अपने भविष्य के राज्य के लिए तीनों को चाहते हैं और बस्तियों के विकास को दो-राज्य समाधान के लिए एक बड़ी बाधा के तौर पर देखते हैं. इजराइल ने 100 से ज़्यादा बस्तियां बनाई हैं, जहां 500,000 से ज़्यादा बसने वाले लोग रहते हैं, जिनके पास इजराइली नागरिकता है. पश्चिमी तट पर तीन मिलियन फिलिस्तीनी लोग खुले तौर पर इजराइली सैन्य शासन के अधीन रहते हैं, जहां पश्चिमी समर्थित फिलिस्तीनी प्राधिकरण आबादी वाले केंद्रों का प्रशासन करता है.
हर पल घर छिन जाने का डर
यह बात 1980 के दशक की है, जब इजरायल की सेना ने दक्षिणी पश्चिमी तट पर मासाफ़र यट्टा को लाइव-फ़ायर ट्रेनिंग एरिया का नाम दिया और वहां रहने वाले लोगों को निकालने का आदेश दिया. इनमें ज्यादातर लोग अरब बेडौइन थे. इस जगह पर 1000 से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन सैनिक रोजाना घरों, तंबू, पानी की टंकियों और जैतून के बागों को उजाड़ने आते रहते हैं. इसके कारण फिलिस्तीनियों को डर है कि कभी भी उन्हें पूरी तरह से निकाल दिया जा सकता है.
क्या है इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष
इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष पूर्व अनिवार्य फिलिस्तीन के क्षेत्र के भीतर भूमि और सेल्फ डिटरमिनेशन के बारे में चल रहा एक सैन्य और राजनीतिक संघर्ष है संघर्ष के प्रमुख पहलुओं में वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा, यरुशलम की स्थिति, इजरायली बस्तियां, सीमाएं, सुरक्षा, पानी का अधिकार,परमिट व्यवस्था, फिलिस्तीनी आंदोलन की स्वतंत्रता और फिलिस्तीनी वापसी का अधिकार शामिल हैं.