ईरान की धमकी और भारत की तैयारी, होर्मुज स्ट्रेट बंद करने के ऐलान से क्या-क्या बदलेगा? जानिए सभी सवालों के जवाब
अमेरिकी हमलों के जवाब में ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य बंद करने की मंजूरी दे दी है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति संकट गहरा सकता है. भारत ने वैकल्पिक स्रोतों और रणनीतिक भंडार से खुद को पहले ही तैयार किया है. हालांकि कीमतों में अस्थिरता बनी रह सकती है, लेकिन घरेलू आपूर्ति फिलहाल सुरक्षित है. अमेरिका और ईरान के तनाव ने पूरी दुनिया को चिंतित कर दिया है.;
ईरान इजरायल और अमेरिका के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है. अमेरिकी हमले के जवाब में ईरान अब सबसे बड़ा दांव खेलने की ओर बढ़ रहा है. होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का. रविवार को ईरानी संसद ने इसे मंजूरी भी दे दी, हालांकि अंतिम फैसला सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के हाथ में है. यह वही होर्मुज है जहां से दुनिया का एक चौथाई समुद्री तेल व्यापार गुजरता है.
इस कदम का असर भारत, चीन जैसे ऊर्जा-निर्भर देशों पर पड़ सकता है, लेकिन भारत ने पिछले वर्षों में अपनी रणनीति इस तरह तैयार की है कि ऐसे किसी भू-राजनीतिक झटके से उसकी ऊर्जा आपूर्ति बाधित न हो. इस विवाद को समझने के लिए हमने इसे सवाल-जवाब के रूप में छह बिंदुओं में रखा है. आइये जानते हैं इन सवालों के जवाब
होर्मुज स्ट्रेट है क्या और ये इतना अहम क्यों है?
होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है, जो आगे अरब सागर तक खुलता है. यह समुद्री मार्ग केवल 33 किलोमीटर चौड़ा है और आने-जाने की दिशा में केवल 3 किलोमीटर चौड़ी लेन है. यह जलमार्ग ईरान और ओमान के जलसीमा के बीच स्थित है, और यहां से सऊदी अरब, ईरान, यूएई और कतर जैसे देशों का तेल पूरी दुनिया में पहुंचता है. इसलिए यहां कोई भी अवरोध वैश्विक ऊर्जा सप्लाई को हिला सकता है.
अगर ईरान स्ट्रेट को बंद करता है, तो कौन-कौन प्रभावित होगा?
2024 के आंकड़ों के मुताबिक, होर्मुज से गुजरने वाले कच्चे तेल का 69% चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देशों की ओर जाता है. साथ ही, वैश्विक एलएनजी व्यापार का 20% हिस्सा भी इसी जलमार्ग से गुजरता है. चीन और भारत जैसे देश जो भारी मात्रा में ऊर्जा आयात करते हैं, सीधे प्रभावित होंगे. लेकिन बंदी की स्थिति में बीमा, मालभाड़ा और सुरक्षा लागत भी बढ़ेगी, जिससे दुनियाभर में महंगाई की लहर उठ सकती है.
क्या ईरान सच में होर्मुज स्ट्रेट बंद करेगा?
इतिहास बताता है कि ईरान ने कभी भी युद्ध के दौरान भी जलडमरूमध्य पूरी तरह से बंद नहीं किया. हालांकि वह बारूदी सुरंग, मिसाइल या साइबर हमले जैसे विकल्प जरूर इस्तेमाल कर सकता है. ईरान भी इस मार्ग पर निर्भर है और चीन जैसे अपने करीबी ग्राहकों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेगा. लेकिन अमेरिका के सीधे सैन्य हस्तक्षेप के बाद अब इस 'अंतिम हथियार' का उपयोग होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
भारत पर इसका सीधा असर क्या होगा?
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए अब कई स्रोतों पर निर्भर है. हालांकि भारत का लगभग 1.5-2 मिलियन बैरल प्रतिदिन का आयात होर्मुज से आता है, लेकिन भारत अब रूस, अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका से भी कच्चा तेल खरीदता है. भारत के पास 74 दिनों का रणनीतिक तेल भंडार है और LPG का 50% घरेलू स्रोतों से आता है. ऐसे में अल्पकालिक असर सीमित होगा, हालांकि लंबी अवधि में कीमतों में उतार-चढ़ाव जरूर देखे जा सकते हैं.
भारत ने इस स्थिति से निपटने के लिए क्या तैयारी की है?
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने साफ कहा है कि भारत कई आपूर्ति स्रोतों और मार्गों पर काम कर रहा है. अब भारत 40 देशों से कच्चा तेल मंगा रहा है, पहले ये संख्या 27 थी. साथ ही, भारत के पास खुद के 500 तेल कुएं और 42 बिलियन बैरल रिजर्व मौजूद है. एलएनजी के लिए भी कतर, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकल्पों पर काम किया जा रहा है.
क्या पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी?
संभावना कम है. भले ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल महंगा हो जाए, लेकिन भारत में पेट्रोलियम मंत्रालय कीमतों को स्थिर रखने के लिए हर दिन समीक्षा कर रहा है. पिछले तीन वर्षों में भारत ने तीन बार पेट्रोल के दाम घटाए हैं. अगर जरूरत पड़ी तो भारत निर्यात को रोककर घरेलू आपूर्ति को प्राथमिकता देगा. यानी जनता के लिए फिलहाल खतरे की कोई घंटी नहीं बजी है.