‘नेपाल में पोर्न बैन पर क्या हुआ, देखा?’ सुप्रीम कोर्ट ने पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने की याचिका खारिज करते हुए दी नसीहत
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका को सुनने से फिलहाल इनकार कर दिया और नेपाल में हुए हालिया युवा प्रदर्शनों का उदाहरण देते हुए कहा, “देखिए नेपाल में बैन पर क्या हुआ.” अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर जल्दबाजी नहीं की जाएगी और मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद की जाएगी. मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी की, जबकि गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.;
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत फिलहाल इस याचिका को सुनने के पक्ष में नहीं है. न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा, “हम अभी इस मामले पर कोई अंतरिम आदेश नहीं देंगे. पहले देखिए नेपाल में बैन को लेकर क्या हुआ था.”
मुख्य न्यायाधीश का यह बयान सितंबर 2025 में नेपाल में हुए युवा प्रदर्शनों की ओर इशारा था, जहां सरकार द्वारा सोशल मीडिया और पोर्न वेबसाइट्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद ‘जनरेशन Z’ के युवाओं ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए थे. इन प्रदर्शनों ने न केवल प्रशासन को हिला दिया था, बल्कि देश में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नैतिकता’ की बहस भी छेड़ दी थी.
चार हफ्ते बाद फिर होगी सुनवाई
अदालत ने हालांकि यह भी कहा कि यह मामला पूरी तरह खारिज नहीं किया जा रहा है. इस पर चार हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों में कहा कि डिजिटल युग में पोर्नोग्राफी हर उम्र के लोगों की पहुंच में है - “शिक्षित हो या अशिक्षित, हर कोई एक क्लिक में इस सामग्री तक पहुंच सकता है.” याचिका में कहा गया कि कोविड-19 के दौरान बच्चे ऑनलाइन क्लासेस के लिए डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करने लगे, लेकिन उन डिवाइसों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी जो पोर्न साइट्स तक पहुंच को सीमित कर सके.
देश में 20 करोड़ से ज्यादा अश्लील वीडियो
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि सरकार ने खुद स्वीकार किया है कि इंटरनेट पर ‘अरबों’ वेबसाइट्स अश्लील सामग्री उपलब्ध करा रही हैं. साथ ही यह भी कहा गया कि देश में 20 करोड़ से ज्यादा अश्लील वीडियो या क्लिप्स, जिनमें से कई बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री हैं, ऑनलाइन बिक्री के लिए उपलब्ध हैं.
उनका तर्क था कि भारत में ऐसा कोई प्रभावी कानून नहीं है जो इस बढ़ती समस्या को रोक सके. “13 से 18 वर्ष की उम्र के किशोरों पर पोर्नोग्राफी का गहरा मानसिक और सामाजिक असर पड़ रहा है,” याचिका में कहा गया.
IT Act की धारा 69A के तहत ऐसे वेबसाइट्स हो सकते हैं बैन
कानूनन, सरकार के पास सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 69A के तहत ऐसे वेबसाइट्स को सार्वजनिक रूप से ब्लॉक करने की शक्ति है. हालांकि सरकार ने पूर्व में कई साइट्स पर रोक लगाने के प्रयास किए हैं, लेकिन टेक्नोलॉजी की तेज़ रफ्तार और नए प्लेटफॉर्म्स की बाढ़ के बीच यह रोक कारगर साबित नहीं हो पाई है.
केवल कानूनी प्रतिबंध पर्याप्त नहीं होंगे
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी टिप्पणी की कि माता-पिता के पास बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए कई तरह के सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं, जिनसे कंटेंट फ़िल्टरिंग की जा सकती है. अदालत ने यह संकेत दिया कि समस्या के समाधान के लिए सामाजिक और तकनीकी दोनों स्तरों पर कदम उठाने होंगे, केवल कानूनी प्रतिबंध पर्याप्त नहीं होंगे.
अगली सुनवाई अब चार हफ्ते बाद होगी, जहां अदालत इस विषय पर केंद्र सरकार से जवाब मांगेगी कि वह पोर्नोग्राफी से जुड़े साइबर खतरों को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठा रही है.