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'चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना अपराध': सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चाइल्ड अश्लील सामग्री का भंडारण मात्र यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध है. सुप्रीम कोर्ट ने संसद को POCSO अधिनियम में संशोधन के लिए एक कानून लाने का सुझाव दिया है, जिसमें " चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द को "बाल यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री" से बदल दिया जाए.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना अपराध: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 23 Sept 2024 1:18 PM IST

SC on Child Pornography: सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर बड़ा फैसला सामने आया है. कोर्ट का कहना है कि बाल अश्लील सामग्री का भंडारण मात्र यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत अपराध है. सुप्रीम कोर्ट ने संसद को POCSO अधिनियम में संशोधन के लिए एक कानून लाने का सुझाव दिया है, जिसमें 'चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी' शब्द को 'बाल यौन शोषण और अपमानजनक सामग्री' से बदल दिया जाए. आगे कहा, 'संशोधन लागू होने तक केंद्र सरकार इस आशय का अध्यादेश ला सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि वे "चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द का इस्तेमाल न करें'.


मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को किया रद्द

कोर्ट ने POCSO अधिनियम में संशोधन की संस्तुति की. जिसमें बाल पोर्नोग्राफी शब्द को बाल यौन शोषण और शोषणकारी चीजों से बदलाने का प्रस्ताव था. यह फैसला जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस द्वारा याचिका से निकाला जो गैर सरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जो बाल कल्याण पर नरम फैसलो के संभावित प्रभाव के बारे सोचता है.

बीते 11 दिन पहले हाई कोर्ट ने 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील वीडियो डाउनलोड करने का आरोप था. हाईकोर्ट ने कहा था कि आज कल के बच्चे पोर्नोग्राफी देखने के गंभीर मुद्दे से जूझ रहे हैं और उन्हें दंडित करने के बजाय, समाज को उन्हें शिक्षित करने के लिए “पर्याप्त रूप से परिपक्व” होना चाहिए.

कोर्ट के इस फैसले में दो याचिकाकर्ता संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का द्वारा पेश किए गए तर्कों पर ध्यान दिया था. जिसमें कहा गया था कि हाइकोर्ट का फैसला इस संबंध में कानूनों के विपरीत है. इसके साथ फरीदाबाद के एक वकील ने कहा कि NGO जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और नई दिल्ली स्थित बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से अदालत में पेश हुए. ये संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं.

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