खाली अस्पताल, सूने दफ्तर… पढ़े-लिखे लोग छोड़ रहे देश, 'ब्रेन गेन' पर आसिम मुनीर की पाकिस्तानियों ने लगाई क्लास
पाकिस्तान आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां देश की सड़कों, अस्पतालों और दफ्तरों से ज्यादा उसके एयरपोर्ट व्यस्त नजर आ रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि यहां आने वालों की नहीं, बल्कि देश छोड़कर जाने वालों की लंबी कतारें हैं. डॉक्टर, इंजीनियर, अकाउंटेंट-यानी वो दिमाग जिनसे किसी भी मुल्क का भविष्य बनता है, अब पाकिस्तान में रुकना नहीं चाहते.;
पाकिस्तान की सड़कों से लेकर अस्पतालों और दफ्तरों तक एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ है. जहां कभी इलाज, योजना और विकास की उम्मीदें पलती थीं, वहां अब खाली कुर्सियां और अधूरी व्यवस्थाएं नजर आती हैंय वजह साफ है है कि देश के डॉक्टर, इंजीनियर और दूसरे पढ़े-लिखे प्रोफेशनल लगातार पाकिस्तान छोड़कर जा रहे हैं.
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इसी बीच सेना प्रमुख आसिम मुनीर का इस पलायन को ‘ब्रेन गेन’ बताना लोगों को नागवार गुजरा है. सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी जनता ने इस बयान को लेकर सरकार और फौज दोनों को आड़े हाथों लिया है. सवाल उठ रहे हैं कि अगर दिमाग देश से बाहर जा रहा है, तो फायदा आखिर किसे हो रहा है?
पाकिस्तान का खाली होता दिमाग
पाकिस्तान की सच्चाई अब किसी आरोप से नहीं, बल्कि उसके अपने सरकारी रिकॉर्ड से सामने आ रही है. सिर्फ पिछले दो सालों में लगभग पांच हजार डॉक्टर, ग्यारह हजार इंजीनियर और तेरह हजार चार्टर्ड अकाउंटेंट देश छोड़कर बाहर चले गए हैं. ये वे लोग नहीं हैं जो रोज़गार की तलाश में मजबूरी में निकलते हैं, बल्कि वे हैं जिनकी शिक्षा पर राष्ट्र ने वर्षों तक भारी निवेश किया. साल 2024 में ही सात लाख से अधिक नागरिकों ने विदेश में काम करने के लिए पंजीकरण कराया, जबकि 2025 में नवंबर तक यह संख्या लगभग उसी स्तर पर पहुंच चुकी है. ये आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि आम लोगों का विश्वास न केवल मौजूदा व्यवस्था से उठ चुका है, बल्कि उन्हें अपने ही देश में आने वाले कल की कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही.
हेल्थ सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर
सबसे बड़ा झटका पाकिस्तान की हेल्थ सिस्टम को लगा है. नर्सों के विदेश पलायन के आंकड़े सचमुच चौंकाने वाले हैं. 2011 से 2024 के बीच नर्सों के विदेश जाने की दर में दो हजार प्रतिशत से अधिक की तेजी देखी गई. वहीं, पाकिस्तान खुद को फ्रीलांसिंग का वैश्विक केंद्र मानता रहा, लेकिन लगातार इंटरनेट बंदी और अस्थिर सरकारी नीतियों ने करीब 23 लाख ऑनलाइन रोजगारों को गंभीर खतरे में डाल दिया और अरबों डॉलर के वित्तीय नुकसान का कारण बना.
राजनीति और फौज की प्राथमिकताएं
पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था लंबे समय से सामान्य नागरिकों और आर्थिक विकास से ज्यादा सत्ता संघर्ष और सेना की दखलअंदाजी में उलझी रही है. नतीजा यह हुआ कि शिक्षित और कुशल वर्ग खुद को न केवल बेकार और असुरक्षित महसूस करने लगा, बल्कि उसकी आवाज़ भी दबती रही. जहां आम लोग बेरोजगारी और महंगाई के बोझ तले दबे हैं, वहीं देश की प्रभावशाली संस्थाएं केवल अपनी खुद की प्रशंसा और आलोचना को नियंत्रित करने में लगी हैं.
‘ब्रेन ड्रेन’ या ‘ब्रेन गेन’?
मामला तब और मजाक बन गया, जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख, आसिम मुनीर ने विदेश में रहने वाले पाकिस्तानी समुदाय को बताया कि यह कोई ‘ब्रेन ड्रेन’ नहीं है, बल्कि ‘ब्रेन गेन’ है. इस बयान ने सोशल मीडिया पर जबरदस्त उपहास और तंज को जन्म दिया. लोग सवाल करने लगे कि अगर देश का प्रतिभाशाली दिमाग बाहर जा रहा है, तो इसका वास्तविक लाभ किसे मिल रहा है? आम जनता का मानना है कि जो बचा हुआ दिमाग है, वह या तो आतंक को सही ठहराने में बिजी हैं या फिर सीधे सेना की जी-हुजूरी में लगा हुआ है.
एयरपोर्ट पर सख्ती, लेकिन भरोसा खत्म
सरकार ने पलायन रोकने के लिए एयरपोर्ट पर सख्ती बढ़ाई. 2025 में 66 हजार से ज्यादा यात्रियों को उड़ान भरने से रोका गया. ‘पेशेवर भिखारियों’ और अधूरे कागज़ वालों पर बैन लगा. लेकिन असली सवाल यह है कि क्या डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेशनल भी भिखारी हैं? जब सिस्टम ही काम नहीं करता, तो रोक-टोक समाधान नहीं बन सकती.
क्यों देश छोड़ रहे पढ़े-लिखे लोग?
क्योंकि उन्हें वहां कोई भविष्य नजर नहीं आता है. न स्थिर राजनीति, न मजबूत अर्थव्यवस्था, न अभिव्यक्ति की आज़ादी और न ही सम्मान- उनके सामने दो ही रास्ते हैं या तो चुपचाप सिस्टम का हिस्सा बनें, या देश छोड़ दें. पाकिस्तान आज जिस संकट से गुजर रहा है, वह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि बौद्धिक और नैतिक संकट है. एक तरफ आतंकवाद और सैन्य वर्चस्व की छाया है, दूसरी तरफ खाली होते कॉलेज, अस्पताल और दफ्तर. जब किसी देश का दिमाग निकल जाता है, तो सिर्फ शरीर बचता है और शरीर बिना दिमाग के ज्यादा देर तक नहीं चल सकता.