ट्रंप ने पाकिस्तान डील के लिए भारत-अमेरिका रिश्तों की कुर्बानी दी? पूर्व अमेरिकी NSA का बड़ा आरोप
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने डोनाल्ड ट्रंप पर गंभीर आरोप लगाया है. उनका कहना है कि ट्रंप ने अपने परिवार के पाकिस्तान से हुए कारोबारी सौदों को बढ़ावा देने के लिए भारत के साथ दशकों से बन रहे रणनीतिक रिश्तों को नुकसान पहुंचाया. सुलिवन ने इसे ट्रंप की विदेश नीति का सबसे कम रिपोर्ट किया गया लेकिन खतरनाक पहलू बताया. उनका कहना है कि इससे न सिर्फ भारत-अमेरिका साझेदारी कमजोर हुई, बल्कि दुनिया में अमेरिका की विश्वसनीयता भी डगमगा गई.;
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जेक सुलिवन ने डोनाल्ड ट्रंप पर सनसनीखेज आरोप लगाया है. उनका कहना है कि ट्रंप ने अपने परिवार के पाकिस्तान से हुए कारोबारी सौदों को आगे बढ़ाने के लिए भारत के साथ अमेरिका के दशकों पुराने रणनीतिक रिश्तों को कमजोर कर दिया. सुलिवन ने इस घटनाक्रम को ट्रंप की विदेश नीति का “सबसे कम रिपोर्ट किया गया लेकिन सबसे गंभीर पहलू” बताया है.
जेक सुलिवन, जो बाइडेन प्रशासन में भी महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं, ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते लंबे समय से द्विदलीय समर्थन के साथ आगे बढ़ाए गए हैं. चाहे रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में रही हो या डेमोक्रेट्स, दोनों ही दलों ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखा है.
उन्होंने कहा, “भारत के साथ तकनीक, प्रतिभा, अर्थव्यवस्था और खासकर चीन के खिलाफ रणनीतिक मोर्चे पर गठजोड़ को मजबूती देने में काफी प्रगति हुई थी. लेकिन ट्रंप काल में इस रिश्ते को अचानक ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.”
पाकिस्तान के साथ ट्रंप परिवार के कारोबारी रिश्ते
सुलिवन का आरोप है कि पाकिस्तान की सरकार और कारोबारी समूह ट्रंप परिवार को निजी सौदे ऑफर करने के लिए तैयार थे. यही वजह रही कि ट्रंप ने भारत की बजाय पाकिस्तान को प्राथमिकता दी. उन्होंने कहा, “पाकिस्तान की इन तैयारियों ने ट्रंप को भारत से दूरी बनाने के लिए प्रेरित किया. यह कदम न केवल भारत-अमेरिका रिश्तों के लिए झटका था, बल्कि अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीतिक स्थिति को भी कमजोर करने वाला साबित हुआ.”
रणनीतिक नुकसान और वैश्विक असर
सुलिवन ने कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर दुनिया के कई हिस्सों पर पड़ता है, उनके मुताबिक, “जब जर्मनी, जापान या कनाडा जैसे देश देखते हैं कि अमेरिका ने भारत जैसे महत्वपूर्ण साझेदार को किनारे कर दिया, तो वे भी यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि कल अमेरिका हमें भी छोड़ सकता है. यह धारणा अमेरिकी विदेश नीति के लिए खतरनाक है.”
“अमेरिका पर भरोसा डगमगाया”
सुलिवन ने चेतावनी दी कि इस रवैये से दुनिया भर में अमेरिका की विश्वसनीयता पर असर पड़ा है. उन्होंने कहा, “हमारा वचन ही हमारी ताकत रहा है. जब हम कहते हैं कि हम किसी के साथ खड़े हैं, तो दुनिया को भरोसा होना चाहिए कि अमेरिका पीछे नहीं हटेगा. लेकिन भारत के साथ जो हुआ, उसने यह संदेश दिया कि अब अमेरिका पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता.”
चीन पर कड़ा प्रहार करने का मौका खोया
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-अमेरिका साझेदारी एशिया में चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करने का सबसे मजबूत साधन थी. ट्रंप की नीतियों ने उस गति को रोक दिया, जो ओबामा काल के बाद तेज हुई थी. सुलिवन ने भी इस बात पर जोर दिया कि, “भारत को किनारे करके ट्रंप ने वास्तव में चीन को रणनीतिक लाभ दिया. जबकि यही वह समय था, जब अमेरिका को भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए था.”
भारत के लिए क्या मायने?
भारत की दृष्टि से देखें तो यह आरोप कई सवाल खड़े करता है. मोदी सरकार और ट्रंप प्रशासन के बीच 2019 में ‘Howdy Modi’ जैसे बड़े कार्यक्रमों के जरिए रिश्तों को मजबूत दिखाया गया था. लेकिन पर्दे के पीछे अगर कारोबारी हितों ने कूटनीति को हरा दिया, तो इसका मतलब यह है कि भारत को अमेरिकी राजनीति की आंतरिक खींचतान का खामियाजा भुगतना पड़ा.
बाइडेन प्रशासन की प्राथमिकता
सुलिवन ने संकेत दिया कि मौजूदा बाइडेन प्रशासन भारत-अमेरिका रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने के लिए काम कर रहा है. लेकिन ट्रंप काल में आई दरार को भरना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि भारत के साथ मजबूत साझेदारी सिर्फ रणनीतिक ही नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था के संतुलन के लिए भी जरूरी है.