बांग्लादेश के सरकारी स्‍कूलों में अब नहीं होंगे म्‍यूजिक और पीटी टीचर, इस्‍लामिक दबाव के आगे यूनुस सरकार ने टेके घुटने

बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने इस्लामिक संगठनों के दबाव में आकर सरकारी स्कूलों से म्यूजिक और फिजिकल एजुकेशन शिक्षकों के पद समाप्त कर दिए हैं. धार्मिक समूहों ने इस कदम को “इस्लाम विरोधी” बताते हुए विरोध प्रदर्शन किए थे. विशेषज्ञ इसे कट्टरपंथियों के बढ़ते प्रभाव और देश की सांस्कृतिक विरासत पर खतरे के रूप में देख रहे हैं.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 4 Nov 2025 12:10 PM IST

कभी भारत के भरोसेमंद पड़ोसी रहे बांग्‍लादेश में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा और इस्‍लामिक कट्टरपंथ वहां लगातार हावी होता जा रहा है. ताजा मामला वहां के स्‍कूलों से जुड़ा है. नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इस्‍लामिक संगठनों के भारी दबाव के आगे झुक गई है. सरकार ने सरकारी प्राथमिक विद्यालयों से संगीत (Music) और शारीरिक शिक्षा (Physical Education) के शिक्षकों के पद खत्म करने का फैसला लिया है. धार्मिक कट्टरपंथियों का कहना था कि स्कूलों में संगीत और नृत्य सिखाना “इस्लाम विरोधी” है.

सोमवार को बांग्लादेश के प्राथमिक और जन शिक्षा मंत्रालय (Ministry of Primary and Mass Education) ने नई नियुक्ति नीति जारी करते हुए बताया कि अब सहायक शिक्षक के पदों में म्यूजिक और पीटी (Physical Education) की कैटेगरी शामिल नहीं होगी। मंत्रालय के अधिकारी मासूद अख्तर खान ने कहा, “अगस्त में जारी नियमों में चार कैटेगरी थीं, लेकिन संशोधित नियमों में केवल दो कैटेगरी रखी गई हैं. म्यूजिक और फिजिकल एजुकेशन शिक्षकों के पद इसमें नहीं हैं.”

जब उनसे पूछा गया कि क्या यह निर्णय धार्मिक संगठनों के दबाव में लिया गया है, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, “आप खुद जांच कर सकते हैं.”

महीनों से चल रहा था इस्लामिक विरोध

इस फैसले की जड़ें पिछले कई महीनों के विरोध प्रदर्शनों में हैं. इस्लामिक संगठनों जैसे जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश, खिलाफत मजलिस, और हिफाजत-ए-इस्लाम ने सरकार के उस फैसले का जमकर विरोध किया था जिसमें प्राथमिक शिक्षा में संगीत और नृत्य को शामिल करने की बात कही गई थी. सितंबर में ढाका में एक बड़ी रैली के दौरान इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश के प्रमुख सैयद रेजाउल करीम ने कहा था, “आप म्यूजिक टीचर रखना चाहते हैं? वे बच्चों को क्या सिखाएंगे? आप हमारी आने वाली पीढ़ी को बिगाड़ना चाहते हैं, उन्हें बेअदब और चरित्रहीन बनाना चाहते हैं? हम यह कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे.” करीम ने यह भी चेतावनी दी थी कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो “इस्लाम प्रेमी लोग” सड़कों पर उतर आएंगे. इस्लामिक नेताओं ने आरोप लगाया कि यह कदम “नास्तिक विचारधारा” को बढ़ावा देने की साजिश है, जो आने वाली पीढ़ी को “ईमान से दूर” करने की कोशिश कर रही है.

यूनुस सरकार पर बढ़ता कट्टरपंथी दबाव

विश्लेषकों का कहना है कि यूनुस सरकार का यह कदम धार्मिक कट्टरपंथियों के सामने आत्मसमर्पण जैसा है. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासन में जो संगठन सीमित दायरे में थे, वे अब खुलकर सक्रिय हैं और सरकार पर नीतिगत दबाव डाल रहे हैं. इन्हीं संगठनों ने हाल ही में इस्कॉन (ISKCON) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसे उन्होंने “चरमपंथी संगठन” कहा. इसके अलावा, महिला सुधार आयोग की सिफारिशें लागू करने पर भी उन्होंने हिंसा की धमकी दी थी.

धर्म बनाम संस्कृति: बांग्लादेश की बदलती तस्वीर

कभी अपनी धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत के लिए पहचाना जाने वाला बांग्लादेश आज धार्मिक कट्टरपंथ की ओर तेजी से झुकता नजर आ रहा है. संगीत और खेल जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों को “इस्लाम विरोधी” बताकर शिक्षा व्यवस्था से बाहर करना देश के सामाजिक ताने-बाने में गहरी वैचारिक दरार का संकेत है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो बांग्लादेश अपनी उस पहचान को खो सकता है जो कभी उसे दक्षिण एशिया का सबसे प्रगतिशील मुस्लिम देश बनाती थी.

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