तुर्की के बाद ईरान ने भी दिया झटका तो बदले शहबाज के सुर! विदेश से ही भारत को क्यों भेजा 'शांति प्रस्ताव'?
ईरान में भारत को अप्रत्याशित शांति प्रस्ताव देने वाले शहबाज शरीफ के बदले सुर संकेत हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान दबाव में है. सेना प्रमुख संग तेहरान पहुंचे शरीफ ने कश्मीर, आतंकवाद और व्यापार पर वार्ता की बात की, पर भारत ने दो टूक कहा- बात तभी होगी जब एजेंडा हो पीओके और आतंकवाद का स्थायी समाधान.;
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सुर बदलने लगे हैं. पाक पीएम ने ईरान में भारत के लिए अप्रत्याशित शांति प्रस्ताव रखा है. तेहरान में ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन के साथ मुलाकात के बाद शरीफ ने कहा कि वह भारत के साथ कश्मीर, आतंकवाद, जल विवाद और व्यापार जैसे मुद्दों पर बातचीत को तैयार है. लेकिन साथ ही उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि अगर भारत युद्ध का रास्ता चुनता है, तो पाकिस्तान भी जवाब देने में पीछे नहीं हटेगा. इस कथन में शांति की भावना से ज़्यादा रणनीतिक मजबूरी की गूंज सुनाई दी.
हालिया भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव के दौरान पाकिस्तान ने दावा किया कि वह चार दिन की लड़ाई में विजयी रहा. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना द्वारा किए गए टारगेटेड हमलों ने पाकिस्तान की सैन्य संरचनाओं को काफी नुकसान पहुंचाया. इस सैन्य तनाव के बाद अब शरीफ की तरफ से शांति वार्ता की बात करना संकेत देता है कि इस संघर्ष ने इस्लामाबाद को कूटनीतिक रूप से असहज स्थिति में ला खड़ा किया है.
सिर्फ PoK और आतंकवाद पर होगी बात
भारत ने शरीफ के बयान पर स्पष्ट प्रतिक्रिया देते हुए दो टूक कहा है कि कोई भी वार्ता तभी संभव है जब वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की वापसी और आतंकवाद के खात्मे पर केंद्रित हो. भारत सरकार ने हाल ही में पहलगाम हमले के बाद जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को खत्म कर दिया था. भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि अब शांति का अर्थ केवल स्थायी समाधान है, न कि राजनीतिक दिखावा.
ईरान से रिश्तों की आड़ में भारत को संदेश
तेहरान में ईरानी राष्ट्रपति के साथ प्रेस वार्ता के दौरान शरीफ ने ईरान के साथ व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई. यह पहल सिर्फ ईरान-पाक रिश्तों तक सीमित नहीं थी, बल्कि भारत को यह दिखाने की भी कोशिश थी कि पाकिस्तान क्षेत्रीय समर्थन हासिल कर रहा है. शरीफ ने राष्ट्रपति पेजेशकियन और ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची के हालिया समर्थन का हवाला देते हुए यह भी जताने की कोशिश की कि पाकिस्तान क्षेत्रीय रूप से अलग-थलग नहीं है.
सेना प्रमुख की मौजूदगी ने बढ़ाई गंभीरता
इस दौरे में शरीफ के साथ सेना प्रमुख असीम मुनीर और उप प्रधानमंत्री इशाक डार भी मौजूद थे, जो यह संकेत देता है कि पाकिस्तान का शांति प्रस्ताव सैन्य और राजनीतिक दोनों स्तरों पर एक सामूहिक रणनीति हो सकती है. यह यात्रा केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि एक योजनाबद्ध कदम भी है ताकि पाकिस्तान युद्ध के बाद की स्थिति में खुद को संयमित, ज़िम्मेदार और वार्ता के इच्छुक राष्ट्र के तौर पर पेश कर सके.
तुर्की से कूटनीतिक शुक्रिया
शरीफ अपनी चार देशों की यात्रा की शुरुआत तुर्की से कर चुके हैं. राष्ट्रपति एर्दोआन से मुलाकात में उन्होंने भारत से संघर्ष के समय पाकिस्तान का साथ देने के लिए धन्यवाद दिया. हालांकि, तुर्की ने सैन्य मदद देने से साफ इनकार कर पाकिस्तान को निराश किया. यह यात्रा अब अजरबैजान और ताजिकिस्तान तक जाएगी, लेकिन जानकार मानते हैं कि इन देशों से पाकिस्तान को केवल सांकेतिक समर्थन मिलेगा. असली मुद्दा अब भारत के रुख पर टिका है और भारत ने संकेत साफ कर दिया है कि, "बात वहीं होगी, जहां दर्द है- आतंकवाद और पीओके."