है कथा संग्राम की...बंटवारे के बाद पहली बार लाहौर की कक्षाओं में गुंजेगा महाभारत और गीता के श्लोक!

पाकिस्तान के शैक्षणिक इतिहास में इस हफ्ते ऐसा नजारा देखने को मिला, जो बंटवारे के बाद कभी नहीं देखा गया था. लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ (LUMS) के एक क्लासरूम में पहली बार महाभारत और भगवद गीता के संस्कृत श्लोक पढ़े गए. छात्रों ने न सिर्फ प्राचीन ग्रंथों के मंत्र सुने, बल्कि वह प्रसिद्ध पंक्ति-'है कथा संग्राम की.;

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By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 12 Dec 2025 11:10 PM IST

पाकिस्तान के शैक्षणिक इतिहास में इस हफ्ते ऐसा नजारा देखने को मिला, जो बंटवारे के बाद कभी नहीं देखा गया था. लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़ (LUMS) के एक क्लासरूम में पहली बार महाभारत और भगवद गीता के संस्कृत श्लोक पढ़े गए. छात्रों ने न सिर्फ प्राचीन ग्रंथों के मंत्र सुने, बल्कि वह प्रसिद्ध पंक्ति-'है कथा संग्राम की'- का उर्दू संस्करण भी सीखा, जो महाभारत टीवी सीरीज का प्रतिष्ठित थीम सॉन्ग है.

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तीन महीने के एक विशेष संस्कृत वर्कशॉप को मिले अभूतपूर्व रिस्पॉन्स के बाद यह पहल अब एक औपचारिक विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में बदल चुकी है. LUMS ने इसे आगे बढ़ाते हुए 2027 तक इसे एक पूर्ण वर्षीय कोर्स बनाने की योजना भी तैयार कर ली है.

कैसे शुरू हुआ पाकिस्तान में संस्कृत का पुनर्जागरण?

पाकिस्तान में संस्कृत अध्ययन को पुनर्जीवित करने की इस पूरी मुहिम के केंद्र में हैं प्रोफेसर शाहिद रशीद, जो फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं. The Tribune की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस कदम को "छोटा लेकिन बेहद महत्वपूर्ण प्रयास" बताया, जो इस पूरी भारतीय उपमहाद्वीपीय सभ्यता की दार्शनिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक जड़ें समझने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

रशीद कहते हैं, 'हम इसे क्यों न सीखें? यह वह भाषा है जो पूरे क्षेत्र को जोड़ती है. पाणिनि का गांव यहीं था. सिंधु घाटी काल में भी यहाँ बहुत कुछ लिखा गया. हमें इसे अपनाना चाहिए. यह हमारी भी धरोहर है; यह किसी एक धर्म से बंधी नहीं है.' उन्होंने याद दिलाया कि संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि गंधार क्षेत्र के निवासी थे, जो आज का ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत है.

छात्रों का डर कैसे बदला उत्साह में

रशीद बताते हैं कि शुरू में छात्रों को संस्कृत कठिन और डरावनी लगी, लेकिन कुछ ही दिनों में उनका दृष्टिकोण बदल गया. पहले सप्ताह की कक्षा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि 'जब मैं 'सुभाषित' पढ़ा रहा था, तो छात्र यह जानकर हैरान रह गए कि उर्दू पर संस्कृत का कितना गहरा प्रभाव है. कुछ तो यह भी नहीं जानते थे कि संस्कृत, हिंदी से अलग भाषा है.' भाषा की तार्किक संरचना समझते ही छात्रों का झुकाव तेजी से बढ़ने लगा और संस्कृत सीखना उन्हें रोमांचक लगने लगा.

पंजाब विश्वविद्यालय की धूल खा रही पांडुलिपियों को मिलेगा नया जीवन

गुरमानी सेंटर के निदेशक डॉ. अली उस्मान क़ासमी ने बताया कि पाकिस्तान के पास पंजाब विश्वविद्यालय में संस्कृत की विस्तृत, लेकिन वर्षों से अनदेखी पड़ी पांडुलिपियों का बड़ा संग्रह है. हालांकि, अब हालात बदलने वाले हैं. क़ासमी ने कहा कि विश्वविद्यालय स्थानीय शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की तैयारी में है और आने वाले महीनों में यह पहल और गति पकड़ सकती है. उनके शब्दों में '10–15 साल में हम पाकिस्तान से गीता और महाभारत के विद्वान उभरते हुए देख सकते हैं.

2027 तक पूरे वर्ष का कोर्स, पाकिस्तान में नई सांस्कृतिक बहस की शुरुआत

संस्कृत को औपचारिक रूप से शिक्षण में शामिल किया जाना पाकिस्तान में एक नई सांस्कृतिक बहस भी शुरू कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न सिर्फ भाषा अध्ययन बल्कि भारत–पाकिस्तान के साझा इतिहास, साहित्य और सांस्कृतिक विरासत को समझने में भी अहम भूमिका निभाएगा. अगर यह गति बनी रही, तो 2027 में पाकिस्तान पहली बार विश्वविद्यालय स्तर पर पूर्ण संस्कृत अध्ययन कार्यक्रम शुरू कर सकता है और यह दक्षिण एशियाई पहचान की गहरी परतों को फिर से समझने का अवसर बनेगा.

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